मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

बिना किसी मंहगे परिक्षणों के रोग की पहचान व निदान


       बिना किसी मंहगे परिक्षणों के रोग की पहचान व निदान
    पश्चिमोन्मुखी विचारधारा के अंधानुकरण ने कई जनोपयोगी उपचार विद्याओं को अहत ही नही किया बल्की उनके अस्तित्व को भी खतरे में डाल रखा है । स्वस्थ्य दीर्ध आरोग्य जीवन एंव रोग उपचार हेतु सदियों से प्राकृतिक उपचार विद्याओं का सहारा लिया जाता रहा है  और इसके सुखद एंव आशानुरूप परिणाम भी मिले है !
    प्राकृतिक सुलभ उपचार , उपचारकताओं के सदियों की खोज का परिणाम था । जिसके आशानुरूप उत्साहवर्धक सफल परिणामों की वजह से यह जन सामान्य में लोकप्रिय रही तथा विश्व के हर कोने में किसी न किसी रूप में ये उपचार विद्यायें प्रचलन में रही है । इस प्रकार की सरल सुलभ एंव उचित परिणाम देने वाले प्राकृतिक उपचार जो कभी जन समान्य की जुबानों में रटे बसे थे । हमारी बीमार पश्चिमोन्मुखी विचारधारा के अंधानुकरण ने इस जनोपयोगी कल्याणकारी उपचार विद्या के पतन मे अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया ।
   हम केवल अपने देश की अमूल्य धरोहर आयुर्वेद, प्राकृतिक उपचार ,योगा की ही बात नही करते बल्की विश्व में इसी प्रकार की अन्य अमूल्य उपचार विधियॉ किसी न किसी पद्धतियों के नाम से प्रचलन में रहते हुऐ, रोग उपचार करती रही है, उपचार के सफल परिणामों की वजह से लोकप्रिय भी रही !
  कई इस प्रकार की उपचार विधियॉ अपने उचित परिणामों की वजह से इतनी अधिक लोकप्रिय हुई की कुछ स्वार्थी उपचारकर्ताओं ने अपने लाभ के लिये इसे गोपनीय रखा एंव इसके सफल परिणामों से धन व यश अर्जित करते रहे । लोक कल्याणकारी इस विद्या को अपने तक सीमित रखने का भविष्यात परिणाम यह हुआ कि इस पर वैज्ञानिक शोध, अनुसंधान आदि न हो सके, धीरे धीरे यह लुप्त होती चली गयी  । आज सम्पूर्ण विश्व में लगभग सौ से भी अधिक उपचार पद्धतियॉ प्रचलन में है । परन्तु इनमें से कुछ मान्यता के अभाव में दम तोड रही है तो कुछ वैज्ञानिक परिणामों के अभाव में अपनी अन्तिम सॉसे गिन रही है , तथाकथित शेष उपचार विधियॉ पश्चिमोन्मुखी चिकित्सा पद्धतियों के व्यवसायीक भंवर जाल का शिकार होकर हथयार डाल चुकी है । चूंकि सम्पूर्ण विश्व में जैसा कि पूर्व में कहॉ जा चुका है कि लगभग 100 से भी अधिक उपचार विधियॉ प्रचलन में है । उनमें से विभिन्न राष्ट्रों ने अपने अपने राष्ट्रों में कुछ गिनी चुनी चिकित्सा पद्धतियों को मान्यतायें दे रखी है शेष चिकित्सा पद्धतियों की मान्यता न होने के कारण न तो उनका विकास हो सका न ही उन पर वैज्ञानिक शोध, अनुसंधान आदि किया जा गया । यह बात तो दूर है इस प्रकार की शेष चिकित्सा एंव उपचार विधियों को तर्कहीन एंव अवैज्ञानिक कह कर सभ्य व पढे लिखे समाजों ने इसका उपहास उडायॉ तथा ठुकरा दिया, इसका परोक्ष परिणाम उस समय के उपचारकताओं पर पडना स्वाभाविक था, जो मान्यता के अभाव में चिकित्सा कार्य कर रहे थे उन्हे फर्जी उपचारकर्ता जैसे सम्बोधनों के साथ कानूनी दॉवों पेचों का सामना करना पडता, ऐसी बिषम परस्थितियों में इस प्रकार के उपचार के बारे में एंव इस उपचार को अपना भविष्य बनाने के बारे में कोई भी विचार नही कर सकता था, इन्ही सभी परस्थितियों कि वजह से इस प्रकार की उपचार विधियों का लुप्तप्रायः होना कोई बडी बात नही है ।
     यहॉ पर हम दो ऐसे उपचार विधियों पर चर्चा करने जा रहे है, जो सरल होने के साथ रोग निवारण की अमोध व अचूक उपचार विधि है साथ ही आज के पश्चिमी चिकित्सा की तरह से रोग की पहचान करने हेतु बडे बडे मंहगे परिक्षणों की आवश्यकता नही होती । इन दोनो उपचार विधियों का मानना है कि समस्त प्रकार की बीमारीयॉ पेट से प्रारम्भ होती है ।

नाभी स्पंदन:- यहॉ पर हम हमारे प्राचीनतम आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के नाभी स्पंदन से रोगो की पहचान व निदान, विषय पर चर्चा करेगे यह उपचार विधि सदियों पुरानी उपचार विधि थी, जिसमें यह माना जाता है कि नाभी के स्पंदन का अपने स्थान से सूई के नोक के बराबर भी खिसक जाने से कई प्रकार की बीमारीयॉ होती हैं । इस विधि के उपचारकर्ता नाभी स्पंदन को यथास्थान लाकर गम्भीर से गम्भीर असाध्य से असाध्य बीमारीयों का उपचार आसानी से कर देते है, आज भी कई इस प्रकार की बीमारीयॉ जो पश्चिमी चिकित्सा पद्धतियों की समक्ष में नही आती, ऐसी बीमारीयों का उपचार नाभी चिकित्सक बडे ही सरल तरीके से कर देता है । यहॉ पर मुक्षे एक धटना याद है उस वक्त हमारा कैम्प एक ब्लाक स्तर पर लगा हुआ था, विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सक उस निःशुल्क कैम्प में अपनी सेवाये दे रहे थें । एक महिला जिसकी उम्र लगभग 30.या 35 वर्ष के आस पास होगी वह शादीसुदा थी, उसे दो व्यक्ति पकड कर लाये थे, उसकी मानसिक स्थिति ठीक नही थी । उसके पति ने बतलाया कि कई मानसिक चिकित्सको से उपचार करा लिया परन्तु कोई लाभ नही हुआ । डॉ0 कविता शर्मा जो नाभी स्पंदन विशेषज्ञ थी उन्होने उस महिला के नाभी स्पंदन का परिक्षण किया उसका स्पंदन ऊपर की तरफ खिसका हुआ था एंव इससे नाभी वृत का आकार भी ऊपर की तरफ स्पष्ट दिख रहा था । डॉ0 कविता जी ने नाभी धारीयों का परिक्षण करते हुऐ जो लक्षण बतलाये वे सभी उस महिला से मिल रहे थे, जैसे पेट में आवाज आना भूख का समय पर न लगना कब्ज की शिकायत पेट में गैस का बनना ,चिडचिडापन , तनाव ,मारने पीटने को दौडना, मानसिक कई प्रकार के ऐसे लक्षण बतलाये जो बिलकुल उस मरीज से मिलते थे । उन्हानें उस महिले की नाभी स्पंदन को यथास्थान लाने हेतु नाभी पर एक जलता हुआ दिया रखा उपर से एक खाली बर्तन को उस पर रख दिया बेक्युम की वहज से बर्तन पेट पर बुरी तरह से चिपक गया । करीब पॉच दस मिनट बाद बर्तन को निकाला फिर पेट का मिसाज किया नाभी स्पदन पुनः न खिसके इस लिये उन्होने एक कपडे से नाभी पर एक दिया रख कर बॉध दिया । कैम्प तीन दिन चलना था, इस लिये दूसरे दिन वह महिला आई परन्तु इस वक्त उसे कोई पकडे नही था, वह शॉन्त मुद्रा में थी, उससे सवाल जबाब करने पर उसने शान्ती से अच्छी तरह से जबाब दिया उसके आदमी ने बतलाया कि अब वह ठीक है खाना भी ठीक से खा रही है चिडचिडापन, क्रोध व मानसिक परेशानीयॉ अब नही है । पुनः नाभी स्पंदन का परिक्षण कर उसे पुनः उपचार दिया गया । अतः कहने का अर्थ यह है कि इस सरल उपचार पद्धति ने एक मानसिक बीमारी का उपचार इतने जल्दी कर दिया यह आश्र्चय नही तो और क्या है । नाभी स्पंदन से समस्त प्रकार की बीमारीयों का उपचार संभव है । नाभी स्पंदन उपचारकर्ता यह मानते है कि समस्त प्रकार की बीमारीयॉ पेट से ही प्रारम्भ होती है नाभी पर 72000 नाडीयों का संगम स्थल होता है एंव समस्त प्रकार की शारीरिक एंव भावनात्मक संसूचना प्रणाली इसी मार्ग से हो कर गुजरती है । इस नाभी स्पंदन उपचार से हिदय रोग, मधुमेह, पचनतंत्र की बीमारीयॉ, बॉक्षपन ,किडनी रोग, तथा सौन्र्द्धय सम्बन्धित प्रत्येक समस्याओं का बिना किसी औषधियों व परिक्षण के किया जा सकता है । इस उपचार विधि का मानना है कि पाचनतंत्र ठीक होगा तो हमारे शरीर के रस रसायन उचित तरीके से काम करेगे, इससे किसी भी प्रकार की बीमारी नही होगी, शारीरिक विकास उचित तरीके से होगा एंव मनुष्य स्वस्थ्य दीर्ध आयु का होगा । नाभी स्पंदन उपचारकर्ता विभिन्न प्रकार के रोगों का परिक्षण नाभी स्पंदन एंवं नाभी बनावट तथा धरीयों के परिक्षण से आसानी से बतला दिया करते है । 
ची नी शॉग:- ची नी शॉग, चीन गणराज्य की परम्परागत प्राकृतिक उपचार पद्धति है । इस उपचार में बिना किसी दबा दारू के गम्भीर से गम्भीर असाध्य से असाध्य बीमारीयों की पहचान एंव उपचार किया जाता है । ची नी शॉग उपचार हमारे भारत की प्राचीन चिकित्सा नाभी स्पंदन से बहुत कुछ मिलती जुलती है । नाभी स्पंदन से रोग निदान का उल्लेख हमारे प्राचीनतम आयुर्वेद चिकित्सा में है परन्तु इसे र्दुभाग्य ही कहेगे कि हम हमारी इस अमूल्य धरोहर को न सम्हाल सके, सम्हालना तो दूर की बात है पढा लिखा सभ्य समाज इसकी उपेक्षा करता रहा, इतना ही नही इसका उपहास उडाते न थकता । भारत प्रवास के दौरान बौद्ध भिक्षुओं ने इस उपचार की विशेषताओं को देखा, बिना किसी लम्बे चैडे परिक्षणों के नाभी उपचारकर्ता बीमारीयों को आसानी से नाभी व पेट के परिक्षण के बाद पहचान जाते एंव बिना किसी दबा दारू के पेट की नसों व पेट पर पाये जाने वाले अंतरिक अंगों को मिसाज कर सक्रिय कर बीमारीयों को ठीक कर दिया करते । उन्होने इस जादूई सरल उपचार की विशेषताओं एंव उसकी उपयोगिता को समक्षा व अपने साथ चीन व जापान ले गये । चीन व जापान में इस उपचार विधि के संतोषजनक परिणामों ने इसे परम्परागत एंव प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में एक पहचान दी, परन्तु इसे वैज्ञानिक आधुनिक नये स्वरूप में लाने का श्रेय मास्टर मोन्टेक को जाता है । शरीर में होने वाली विभन्न प्रकार की बीमारीयों की पहचान व निदान इस उपचार विधि से किया जाने लगा अपने आशानुरूप परिणामों की वजह से इसका उपयोग बीमारीयों के अतरिक्त स्वस्थ्य ,दीर्धायु एंव शरीर की सर्विगिं, रोग परिक्षण के साथ सौन्‍द्धर्य समस्याओं के निदान में किया जाने लगा । चूंकि यह उपचार विधि पेट के मिसाज की एक टेक्नीक है, जिसमें पेट पर पाये जाने वाले आंतरिक अंगों को पहचान कर उसे सक्रिय किया जाता है । इस उपचार पद्धति का सिद्धान्त है 1- पेट पर शरीर के समस्त प्रमुख अंग पाये जाने है जिनके निष्क्रिय या सुसप्तावस्था में आने से मनुष्य बीमारीयों की चपेट में आने लगता है । 2-शरीर के रस रसायनों की असमानता की वजह से समस्त प्रकार की बीमारीयॉ उत्पन्न होती है । जिसका प्रारम्भ पेट से होता है । 3-नाभी का सम्बन्ध मानसिक एंव भावनाओं से होता है । नाभी जीवन ऊर्जा का केन्द्रक है जिसे ची कहते है, यह अपने दो विरूद्ध ऊर्जा येन एंव याग की समानता को बनाये रखता है, इन दोनो ऊर्जाओं में से किसी भी एक ऊर्जा की असमानता की वजह से विभिन्न प्रकार की बीमारीयॉ उत्पन्न होती है । ची नी शॉग उपचार में पेट पर पाये जाने वाले आंतरिक अंग चित्र में बतलाये अनुसार होते है ।  ची नी शॉग उपचार से विभिन्न प्रकार की बीमारीयों का उपचार तथा बीमारीयों की पहचान की जाती है, स्वस्थ्य अवस्था में भविष्य में होने वाली बीमारीयों से सुरक्षा हेतु इस उपचार को लिया जाता है इससे शरीर की सर्विसिंग हो जाती है । साधन सम्पन्न राष्ट्रों में फाईब स्टार होटल्स एंव मिसाज पार्लस में स्वस्थ्य व्यक्तियों द्वारा अपने शरीर एंव पेट को स्वस्थ्य रखने हेतु माह दो माह में ची नी शॉग उपचार कराते है । गर्भ से पूर्व महिलाओं द्वारा चीनी शॉग उपचार कराने से गर्भावस्था में जितनी भी समस्याये होती है उसका निदान हो जाता है बच्चों का विकास पूर्ण रूप से होता है, बच्चा निरोगी तीब्र बुद्धि का स्वस्थ्य होता है एंव प्रसव आसानी से हो जाता है । प्रसव पश्चात पेट पर स्ट्रेच मार्क के निशान भी नही बनते न ही पेट लटकता है । चीनी शॉग उपचार से पाचन तंत्र स्वस्थ्य रहता है मानसिक बीमारीयॉ नही होती । मोटापा नही बढता साथ ही स्त्रीयों में स्त्री सुलभ अंगों का विकास पूर्ण रूप से होता है । त्वचा स्निग्ध गोरी मुलायम हो जाती है, बाल स्वस्थ्य लम्बे धने होते है बाल जल्दी सफेद नही होते । त्वचा पर झुरूरीयॉ नही पडती इन्ही कारणों व इसके चमत्कारी परिणामों की वहज से यह चीन जापान से होता हुआ अब पश्चिमी राष्ट्रों में काफी उन्नती कर रहा है । हमारे देश में अभी इनके जानकारों का व्याप्त अभाव है । नेट पर इसकी जानकारीयॉ एंव वीडियों उपलब्ध है जो ची नी शॉग टाईप कर देखे जा सकते है । इसकी जानकारीयॉ इन साईडो पर भी उपलब्ध है ।
उक्त दोनों उपचार विधि का परिक्षण एंव अध्ययन निःशुल्क इस साईड https://jjehsociety.blogspot.com पर दिया जाता है । आप इस ईमेल इंजजमसल2/हउंपसण्बवउ पर इसकी जानकारीयॉ प्राप्त कर सकते है।
ऐसे चिकित्सक या ब्युटी पार्लर संचालक, मिसाज पार्लर, जो इन उपचार विधियों का लाभ उठाना चाहते हो या प्रशिक्षण या अध्ययन घर बैठे करना चाहते हो,  वे इन साईड या ईमेल पर सम्पर्क कर सकते है 


                                डॉ0 कृष्ण भूषण सिंह
 मो-9926436304                                                                                    krishnsinghchandel@gmail.com                                                              
                          



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