विश्व प्रचलित वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियो की जानकारी उनकी मान्यतायें तथा चिकित्सा अधिकारों की विस्तृत जानकारीयॉ होम्योपैथिक ,एक्युपंचर, इलैक्ट्रोहोम्योपैथिक, न्यूरोथैरापी ,प्राकृतिक चिकित्सा,आयुर्वेद ,तथा अन्य वैकल्पिक चिकित्साओं की जानकारीयॉ
2-बहुत से टेस्ट करा करा करा कर परेशान हो चुके है
,
3-इलाज व दवाओं से कोई फायदा नही हो रहा है , तो एक बार होम्योपैथिक, होम्योपंचर, तथा एक्युपंचर की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी पर आधारित,एंव बिना किसी मंहगें
टेस्ट के सस्ते सुलभ उपचार, हेतु हमारे चैरेटेबिल क्लीनिक पर एक बार अवश्य
पधारे ।
4-जन जागरण क्लीनिक एक चैरिटेबिल संस्था है, जिसमें जरूरत मंदों
का उपचार बहुत ही कम मूल्य पर किया जाता है
5-पथरी , बबासीर जैसी बीमारीयों को उपचार बिना अपरेशन
के दवाओं से ही ठीक किया जाता है
6-मस्से, मुंहासे,चहरे पर दॉग धब्बे, अत्याधिक
सावलापन, अत्याधिक मोटापा, बालों का समय से पहले सफेद होना या झाडना, अन्य त्वचा रोगों
7-मिरर्गी, हिस्टीरियॉ, बच्चों का जिद्द करना, तोतलाना, हकलाना, देर से
चलना व बोलना सीखना
खुलने का समय सुबह 11-00 बजे से शाम 4-00 बजे तक
पता- जन जनगरण क्लीनिक हीरो शोरूम के बाजु से संगम टेन्ट हॉऊस के पास
नर्मदा बाई स्कूल बण्डा रोड मकरोनिया सागर म0प्र0 मो0 91 9589717322, 9752283857
समय के साथ हर चीजें बदलती है । ब्युटी पार्लर मे सौन्द्धर्य श्रृंगार के साथ सैलून जैसा कार्य बचा है फिर यह गली चौराहों से लेकर घरों घर खुलने से इसमें कम्पटीशन अधिक होने के कारण मुंनाफा बहुत कम है ।
ब्युटी क्लीनिक, ब्युटी पार्लर की अत्याधुनिक तकनीकी है , इसमे सौन्द्धर्य समस्याओं जैसे मस्से,मुँहासे, बालों का झडना , सफेद होना ,स्टेच मार्क , दांग धब्बे, अनावश्यक मोटापा, बौनापन , जैसी समस्याओं का हर्बल उपचार के साथ कपिग ,होम्योपंचर, नेवलपंचर,नेवल होम्योपंचर , नीशेप क्लीनिक , पिर्यसिंग ,टैटू , बाडी लैग्वेंज ,पर्सनैलिटी डब्लपमेन्ट , जैसे कई नई नई तकनीकी के ब्रांच इसमें उपलब्ध है । इसका अध्ययन घर बैठे किया जा सकता है । नेट पर इसकी बहुत सी जानकारी उपलब्ध है ,आप अपनी सुविधानुसार इसकी ब्रांच का अध्ययन कर इसकी ब्रांच खोल सकते है । ब्युटी क्लीनिक अभी केवल महानगरों तक सीमित होने के कारण इसमे काम्टीशन नहीं है एवंम मुंनाफा अत्याधिक है ।
हिस्टीरिया एक ऐसा मानसिक रोग
है जो प्राय: महिलाओं में अधिक होता है, इस रोग के लक्षण इस प्रकार होते है, कि प्राय: व्यक्तियों को ऐसा लगता है कि
रोगी पर किसी दुष्ट आत्मा, भूत प्रेत का
साया है या फिर किसी ने जादू टोना कर दिया है ।हिस्टीरियाग्रस्त रोगी रोगावस्था में कभी
एकटक निहारती है, तो कभी नाचने
गाने लगती है, कभी कभी तो विचित्र मुद्राओं
में विभिन्न प्रकार की हरकतें करने लगती है, उसकी इस प्रकार की हरकतों से घर वालों को लगता है कि उसे कोई शारीरिक
बीमारी नही है, बल्की इस पर किसी भूत प्रेत
आदि का प्रभाव है, इसलिये कुछ
व्यक्तियों में यह धारणा बन जाती है कि इस प्रकार के रोगी को किसी तांत्रिक को
दिखला कर झाड फूंक कराना चाहिये, जबकि यह एक प्रकार का मानसिक रोग है ,अत: झाडफूक के चक्कर में न पड कर
ऐसे रोग का उचित उपचार किया जाना चाहिये ।
हिस्टीरिया रोग ऐसी स्त्रीयों को अधिक होता है
जो परिवार में अधिक लाडली होती है । यदि ऐसी बच्चीयों की शादी ऐसे परिवार में हो
जाती है, जहॉ उसे पूरा प्यार नही मिलता
या फिर ऐसी लडकीयॉ जो शादी से पूर्व किसी दूसरे से प्यार करने लगती है , एंवउनकी शादी उनके मन पसंद लडके से नही होती , इसी
प्रकार की और भी कई समस्यायें है, जो उसके मस्तिष्क में घर कर जाती है । इससे उसके मस्तिष्क में तनाव
होने लगता है हार्मोस स्त्राव तथा सिम्फाईटम पैरासिम्फाईटिक तथा वेगस नर्व की
असमानता के परिणाम स्वरूप उसका प्रभाव पाचन तंत्र प्रणाली पर देखा जाता है ।
इसमें उसकी संसूचना प्रणाली के साथ नर्वस तंत्र अनियंत्रित हो जाते है , इसका ही
परिणाम है कि वह कभी गाना गाने लगती है, तो कभी क्रोध से वस्तुओं को फेकने लगती
है, कभी कभी तो विभिन्न मुद्राओं में अश्लील हरकते भी करने लगती है ।
चीन व जापान की एक प्राकृतिक उपचार विधि ची नी
शॉग है , इसके उपचारकर्ताओं का मानना है कि इस रोग का मूल कारण तो रोगी के मस्तिष्क
की सोच होती है , परन्तु इसका प्रभाव उसके संसूचना तंत्र एंव नर्वस तंत्र पर होता
है । संसूचना एंव नर्वस तंत्र के संयुक्त प्रभावों का परिणामरोगी के पेट पर महसूश होता है, इसलिये प्राय:
इसके रोगी को पेट से एक गोला गले तक उठता हुआ प्रतीत होता है, इसके बाद ही उसे
हिस्टीरिया के दौरे पडने लगते है । नाभी चिकित्सकों का मानना है कि हिस्टीरिया
का कारण रोगी अपने असन्तुलित विचारों को नियंत्रित नही कर पाता, इसी के कारण उसका मानसिक तनाव इतना बढ जाता
है कि उसे पेट से गोले उठने या पेट में सिहरन की अनुभूतयॉ या कभी कभी र्दद उठता है,
इस रोग का उदगम स्थल नाभी है एंव नाभी स्पंदन का अपनी जगह से हट जाना है ,जिसकी
वहज से रस एंव रसायनों में असमानता होती है और यही इस रोग का प्रमुख कारण है ।
नाभी
स्पंदन से रोग निदान चिकित्सकों का मानना है कि नाभी का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क
व भावनाओं से होता है ।उक्त दोनों
चिकित्सा पद्धतियों में बिना किसी दवा दारू के कई प्रकार केमानसिक रोगों को ठीक कर दिया जाता है । ची नी
शॉग चिकित्सा में पेट पर पाये जाने वाले आंतरिक अंगों को टारगेट कर उसे सक्रिय कर
उपचार किया जाता है एंव नाभी चिकित्सा में नाभी स्पंदन का परिक्षण कर उसे यथास्थान
लाकर उपचार किया जाता है, इन दोनो
प्राकृतिक उपचार विधि में करीब करीब काफी समानतायें है, दोनो उपचार विधियों का
मानना है कि नाभी स्पंदन का अपने स्थान से हट जाने पर संसूचना प्रणाली एंव
मस्तिष्क पर प्रभाव पर प्रभाव पडता है, इससे रस एंव रसायनो का संतुलन बिगड जाता है । इसे आधुनिक चिकित्सा
विज्ञान में हार्मोन्स की असमानता भी कहते है ।
होम्योपैथिक
चिकित्सा एक लक्षण विधान चिकित्सा पद्धति है इसमें रोग के लक्षणों को औषधियों के
लक्षणों से मिलाकर औषधियों का निर्वाचन कर उपचार किया जाता है । हिस्टीरियाग्रस्त
रोगीयों का होम्योपैथिक औषधियों के लक्षणानुसार विवरण निम्नानुसार है ।
1-किसी
अप्रिय घटना या दु:ख को मन में दवा लेने से (इग्नेशिया):-किसी अप्रिय घटना जैसे किसी
प्रियजन या घर के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाना ,या प्रेमी का उसे छोड देना ,किसी शोक या दु:ख से उत्पन्न मानसिक रोग,
रोगी अपने दु:ख को अपने मन के अन्दर दवाये रहता है किसी से शेयर नही करती आदि
स्थिति के कारण हिस्टीरिया हो तो यह दवा उपयोगी है इसका रोगी एकान्त में बैठा
अपने दु:ख को सहा करता है वह अपना दुख दूसरों को नही बतलाता, इसके रोगी का स्वाभाव बदलते रहता है, एक क्षण रोना तो दुसरे ही क्षण हॅसने लगता
है यह हिस्टीरिया रोग की महौषधी है परन्तु डॉ0 डनहम का कथन है कि कोई भी औषधिय
हिस्टीरिया रोग के लक्षणों से इतनी नही मिलती जितनी यह मिलती है, परन्तु डॉ0
कैन्ट का कहना है कि यह हर प्रकार के हिस्टीरिया रोग को दूर नही करती, परन्तु यह ऐसे रोगियों को ठीक कर देती है
जो अत्यन्त बुद्धिमान हो ,कोमल तथा
मृदुस्वाभाव के नाजुक तथा अत्यन्त भावुक प्रवृति के हो किन्ही कारणों से अत्यन्त
उत्तेजित हो जाने पर उनका ऐसा व्यवहार हो जिसे वे स्ंवय न समक्ष सके । हिस्टीरिया
में उक्त लक्षणों के साथ सिर में तेज र्दद या मूर्छा हुआ करती है इसके साथ पेट से
एक गोला आकर गले में अटकता है ।यह सर्द प्रकृति की दवा है । इस दवा के विषय में
हैनिमैन सहाब का कहना है कि इस दवा को सोने से पहले देने से रोगी को बैचेने हो
सकती है । 30 ,200 पोटेंसी में दवा का प्रयोग
किया जा सकता है ।
2-पेट में अफारे के परिणाम से गोलें का उठता
श्वास लेने में कष्ट है (एसाफेटिडा):- यह दवा हींग से बनाई जाती है,पेट में
वायु संचय होने पर आयुर्वेदिक में हींग से बनी दवाओं का प्रयोग होता है, हिस्टीरिया में पेट से एक गोला उठता है जो
ऊपर की तरफ गले में आ कर रूकता है ,यह पेट में गैस बनने की बजह से जब गैस नीचे के रास्ते से न निकल कर ऊपर
गले की तरफ बढती है इसका परिणाम यह होता है कि रोगी को बार बार डकारे आती है । पेट
में गैस बनने एंव उसकी गति उर्ध्वगामी याने ऊपर की तरफ हो तो यह दवा हिस्टीरिया
रोग में प्रयोग की जा सकती है ।
3-आनन्द
नाचना गाना कभी क्रोधित दुखी पेट में गोला उठना(क्रोकस सैटाईवा)-यह दवा केशर से बनाई जाती है, हिस्टीरिया रोग में बहुत अधिक आनन्द होना, नाचना और गाना, कभी क्रोध तो कभी दु:खी होना आदि में इस
दवा का प्रयोग किया जाता है ,रोगी को पेट में कोई गोलाकार जिन्दा वस्तु धुमने
फिरने का अहसास होता है यह क्रोकस सैटाईवा का खॉस लक्षण है
इस दवा
को बार बार दोहराने की जरूरत पडती है अत: आवश्यकतानुसार इसकी निम्न शक्ति का
प्रयोग उचित है आवश्यकता पडने पर इसकी उच्च शक्ति का प्रयोग भी किया जा सकता है
परन्तु प्रारम्भ में निम्म शक्ति की दवाओं से ही उपचार करना उचित है ।
4-स्नायु
शूल न्यूरैल्जिया (साइप्रिपिडियम प्यूबिसेन्स) - हिस्टीरिया ग्रस्त महिलाओं में नर्तन
रोग, (कोरिया) स्नायु शूल (न्यूरैल्जिया)तथा
स्नायु सम्बन्धित रोगों में साइप्रिपिडियम प्यूबिसेन्स दवा निर्देशि है ।
मानसिक खराबी आदि लक्षण रहने पर यह दवा उपयोगी है । कभी कभी कुछ चिकित्सक हिस्टीरिया
रोग में अन्य सुनिर्वाचित औषधियों के साथ मानसिक गडबडी के लक्षणों के उपचार के
लिये इसका प्रयोग करते है दवा को आवश्यकतानुसार निम्न या उच्च शक्ति में प्रयोग
किया जा सकता है ।
5-हिस्टीरिया
में पेट से गोले का उठना जो गले में आकर अटकता हो (कोनियम मेक):-पेट से एक गोला उठता है जो गले
में आकर अटकता है, जिसे रोगी
बार बार निगलने का प्रयास करती है जिसे ग्लोबस हिस्टेरिकस कहते है ,परन्तु वह गोला नीचे खिसक कर पुन: गले में आ जाता है ,इस औषधिय में ग्रन्थियों का कडा होना है जो
स्तन गाठ , कैंसर टयूमर आदि में हो सकती
है प्रोस्टेट में भी यह स्थिति निमिर्त होती है डॉ सत्यवृत जी ने लिखा है कि जब
स्त्रीयों को अपने शरीर की ग्रांथियों का कडापन देखकर मासूसी, नउम्मीद, होने लगे तब इस प्रकार का गोला पेट से उठा करता है
। इसमें जबरजस्त संयम के बुरे मानसिक परिणाम के लक्षण भी देखे जाते है ,इस औषधिय का विलक्षण लक्षण यह है कि रोगी के
ऑख बन्द करते ही पसीना आने लगना तथा ऑखे खुलते ही पसीने का बन्द हो जाना यह दवा
सर्द प्रकृति की है ।
दवा 6 ,30,200 पोटेंसी में प्रयोग करने के
निर्देश है ।
6-तेज
सिर र्दद या मूर्छा के साथ पेट से गोला उठे रोग एक जगह टिक न सके (बेलेरियम)-: सख्त सिर र्दद, सामान्य कारण से मूर्च्छा होने के साथ
पेट से गर्म भांप की तरह गोला उठे, रोगी का पूरा स्नायु संस्थान उत्तेजित तथाचिन्ताग्रस्त होता है रोगी को स्नायुविक
बैचेनी घेर लेती है । यह दवा स्नायु संस्थान की ऐसी बैचेनी, उत्तेजना तथा चिन्ता को ठीक कर देती है
इससे रक्त संचार की उत्तेजना भी कम हो जाती है एंव उसे शान्ति का अनुभव के साथ
नींद आने लगती है । इस औषधिय का प्रधान लक्षण बैचैनी है इसी बैचेनी का परिणाम यह
होता है कि रोगी एक जगह पर टिक कर नही बैठ सकता वह जगह बदलते रहता है यहॉ वहॉ चलता
फिरता है बातों में भी वह किसी एक विषय पर केन्द्रित नही होता इसका परिणाम यह
होता है कि वह एक विषय से हट कर दूसरे विषय पर छलॉग लगाता है दिमाक तेज विचारों से
भरा रहता है । परन्तु मन में काल्पनिक वस्तुऐ दिखालाई देने लगती है स्वयम को
वह समक्षती है कि जो वह है वह नही है वह कोई और ही है । इस दवा का विलक्षण लक्षण
यह है कि वह जब तक बैठी या लेटी रहती है तब तक उसके मन में ऐसे विचार आया करते है
ज्योही वह उठकर चलने फिरने लगती है उसके ये विचार गायब हो जाते है । रोगी अपने को
हल्का महसूस करती है , रोगी को सिर
पर वर्फ की तरह ठंडामहसूस होता है,इस प्रकार के हिस्टीरिग्रस्त लक्षणों में
इस दवा का मूल अर्क (मदर टिंचर) या 6 , 30 शक्ति की दवा को दिन में तीन बार देना चाहिये ।
7-बैंचेनी, घबराहट सम्पूर्ण अंग में रोगी
अपने को तथा दूसरों को चोट पहुंचाता है शरीर की मांसपेशीयों में कम्पन्न -(टेरेन्टुला
हिस्पैनिका)-यह
मकडी के विष से बनाई जाने वाली दवा है । इस दवा में सम्पूर्ण शरीर में बैचेनी
रहती है तथा मॉसपेशीयों में कम्पन्न के लक्षण पाये जाते है , इस दवा का एक प्रमुख लक्षण है वह यह कि
संगीत से रोगी के लक्षणों में कमी आती है , परन्तु कभी कभी संगीत से वह उत्तेजित होकर नाचने गॉने लगती , रोगी को कभी भी दौरे पड जाते है एंव वह स्वयम
को या दूसरों को चोट पहुचाने का प्रयास करती है,रोगी की मॉसपेशीयों में कम्पन्न् होता है इससे
वह फडकती है हाथ पैर हिलते रहते है झटके लगते है ऐठन पडती है इस उग्र दशा में रोगी
बिना होश के अजीब तरह की हरकत करता है हाथ पैरों को नाचने की सी अवस्था में बनाता
रहता है । इस औषधिय का एक विशेष लक्षण ध्यान रखने योग्य है वह है जब रोगी की तरफ
ध्यान दिया जाता है तब ही उसे हिस्टीया के दौरे या आक्रमण होता है , रोग का एक निश्चित समय पर होना ,रोगी हर बात में जल्दी जल्दी करता है जो
काम हो उसे भी जल्दी जल्दी पूरा करना चाहता है जल्दबाजी के लक्षणों को भी ध्यान
में रखना चाहिये इस औषधि की रोगणी को बहुत दिनों तक स्थाई फिट आते है जल्दी जल्दी
फिट आते है (एपिलेप्टि फार्म) अत: यह दवा एपिलेप्टि फार्म हिस्टीरिया की विशेष
दवा है । दवा सर्द प्रकृति के रोगीयों के अनुकूल है ।
यहॉ पर
मै थोडा सा होम्योपैथिक प्रुविंग से हट कर इस दवा को याद रखने के लिये एक सामान्य
सा उदाहरण पेश कर रहा हूं आप सब ने मकडी को देखा ही होगा वह शांत नही बैठती उसके
हाथ पैरों में हमेशा फडकन व कम्पन्न होता रहता है किसी भी कार्य को वह तीब्रता
से करती है तथा हमेशा बैचैनी जैसी स्थिति में दिखलाई देती है ,उसकी तरफ देखा जाये तो उसके शरीर की समस्थ हरकते बढ जाती है वह कॉपने
धरधराने लगती है उसके हॉथ पैरों में कम्पन्न होने लगता है वह नाचने वा भागने का
प्रयास करती नजर आती है , हर कार्य में
उसे शीध्रता रहती है । हिस्टीरिया ग्रस्त
रोगीयों को यह दवा 6, 30, 200 पोंटेंसी में देना चाहिये ।
नशे की आदते और उसके दुष्परिणाम (होम्योपैथिक के च...
.
5-नशे की आदते और उसके दुष्परिणाम
6-शराब छोडने के लिये
लेखक की शीध्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक
होम्योपैथिक के चमत्कार भाग-2
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल बी0एच0एम0एस0
अध्यक्ष जन जागरण ऐजुकेशनल एण्ड हेल्थ वेलफेयर सोसायटी सागर म0प्र0
क्र0
रोग
औषधिय
शराब छोडने के लिये
1-
व्हीस्की छोडने के लिये
(सल्फर):-
2-
बियर छोडने के लिये
(सीपिया):-
3-
ब्रान्डी छोडने के लिये
(कास्टिकम)
4-
सूरापान की उत्कृष्ट इक्च्छा को सफलतापूर्वक दबाई जा सकती है
(सल्फूरिक ऐसिड)
5-
मदरापान की आदत को काबू में करने के लिये
(स्टर्क्यूलिया क्यू)
6-
शराब की उत्कृष्ट इक्च्छा पर काबू
(सिनकोना रूबा क्यू)
7-
पुराने पियक्कडों के लिये
(क्वेरकस ग्लण्डियम स्पिरिटस क्यू)
8-
शराब व अन्य नशा करने से स्वास्थ्य खराब
(हाईड्रैस्टिस कैन क्यू ):-
9-
शराब पी कर बकवास करना
(कैनाबिस इंडिका 200)
10-
शराब छूडाना
(सल्फर1एम):-
बीडी सिगरेट ] तम्बाखू की आदत
1
तम्बाखू एंव अफीम छोडने के लिये
(आरम म्यूर 12 एक्स
2
तम्बाखू खाने की प्रबल इक्छा
(डेफिन इंडिका ऐवाना सिटाईवम क्यू0
3
जर्दा खाने के कारण उत्पन्न दोष
(आसैनिक एल्ब 30)
4
तम्बाखू खाने के कारण दन्तशूल (
क्लिमेटिस और प्लैण्टेगो)-
5-नशे की आदते और उसके दुष्परिणाम
नशा किसी भी प्रकार का हो इससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पडता है ,आज के इस बदलते दौर में नशा एक फैशन बनता जा रहा है । आज हमारे देश में ही नही बल्की पूरा विश्व नशे जैसी महामारी का शिकार होता जा रहा है , शराब हो या बीडी ,सिगरेट,तम्बाखू से निर्मित वस्तुयें ,गॉजा,भॉग आदि आप को यह जानकर आर्श्चय होगा कि हमारे देश में बाल मजदूर ,रल्वे या अन्य जगहों पर कार्य करने वाले बच्चों यहॉ तक की बडों या महिलाओं के द्वारा नशा लेने के लिये कई प्रकार के धातक वस्तुओं का सेवन किया जा रहा है । उनमें से प्रमुख है तम्बाखू ,खैनी,के साथ वाईटनर,आयोडेक्स,पेट्रोल ,आयुर्वेदिक एंव होम्योपैथिक की कई ऐसी औषधियॉ जिनमें एलकोहल होती है उसका प्रयोग नशे के रूप में किया जा रहा है ,चूंकि ये वस्तुयें एक तो आसानी से उपलब्ध हो जाती है दूसरा ये शराब की कीमत से सस्ती होती है यह तो बात नशे की हुई । बच्चों से लेकर बडे बूंढो और तो और महिलाओं तक में तम्बाखू या तम्बाखू से निर्मित पान मसाले खॉने व खिलाने का प्रचलन आम हो गया है । लगातार तम्बाखू के सेवन के परिणाम भी सामने आने लगे है इसके लगातार सेवन से मुंह में छॉलों की शिकायत शुरू हो जाती है धीरे धीर यह कैंसर जैसी घातक बीमारी में परिवर्तित हो जाती है और जब तक इस बीमारी का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । हमारी संस्था जो नशामुक्ति के क्षेत्र में कार्य कर रही है हमाने बाल मजदूरो से लेकर बडे बूढों तक को इस आदत में लिप्त देखा है ,यहॉ तक कि कुछ लोगों को मुह में बार बार छॉल होने यहॉ तक की खाने पीने में परेशानी होने पर भी वे तम्बाखू नही छोड पा रहे थे । कई लोगों को कैंसर डिक्लेयर होने के कारण डॉ0 ने तम्बाखू सिगरेट तम्बाखू छोडने को कहॉ परन्तु सब कुछ जानते हुऐ भी वे इस नशे से निजात नही पा रहे थे ।
हमारी संस्था हर संभव प्रयास कर रही है ,जिसमें तम्बाखू व तम्बाखू से निर्मित पान मसाले के सेवन करने से मुंह आदि के छॉलों के उपचार में होम्योपैथिक उपचार के साथ अलसी एंव पनीर तथा विटामिन्स चिकित्सा एंव प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग कर गरीब,बेसहारा लोग जो आज की आसमान छूती चिकित्सा कराने में असमर्थ है उन्हे हमारी संस्था द्वारा नि:शुल्क परामर्श एंव औषधियॉ उपलब्ध कराई जा रही है । हमारी संस्था का निवेदन है कि नशामुक्ति के क्षेत्र में नि:शुल्क चिकित्सा सेवा मरीजों को उपलब्ध कराने की महान कृपा करे ।
6-शराब छोडने के लिये
1-व्हीस्की छोडने के लिये (सल्फर,लीडम पाल):- ऐसे शराब के आदि व्यक्ति जो व्हीस्की पीने के आदि है उन्हे सल्फर 30 शक्ति में कुछ दिनों तक देना चाहिये, इससे उन्हे शराब के प्रति अरूचि हो जाती है धीरे धीरे शराब पीने की आदत कम होती जाती है । कुछ चिकित्सक सल्फर 200 शक्ति की दवा देने के पक्षधर है । डॉ0 सत्यवृत जी ने अपनी मेटेरिया मेडिका में लिखा है कि लीडम पाल विस्की के प्रति अरूचि पैदा कर देता है तथा यह तम्बाखू खाने की आदत को भी छुडा देता है ।
2-बियर छोडने के लिये (सीपिया):- ऐसे शराब के आदि व्यक्ति जो बियर पीने के आदि हो उन्हे नक्स वोमिका 30 या सीपिया 30 में देना चाहिये , उक्त दोनो दवाओं को प्रर्यायक्रम में भी दिया जा सकता है इससे ऐसे व्यक्तियों की यह आदत बदल जाती है ।
3-ब्रान्डी छोडने के लिये (कास्टिकम) :- वैसे तो शराब पीने के आदि व्यक्तियों में ब्रान्डी पीने के आदि व्यक्ति कम ही होते है परन्तु यदि कुछ व्यक्तियों में यदि ब्रान्डी पीने की आदत हो तो उन्हे कास्टिकम 30 शक्ति में कुछ दिनो तक देना चाहिये प्रारम्भ में इस दवा को 30 पोटेंशी में देना चाहिये फिर 200 शक्ति की दवा सप्ताह में एक बार देना चाहिये इससे ब्रान्डी के प्रति अरूची पैदा हो जाती और धीरे धीर यह आदत बदल जाती है ।
4- सूरापान की उत्कृष्ट इक्च्छा को सफलतापूर्वक दबाई जा सकती है (सल्फूरिक ऐसिड):- डॉ बोरिक ने अपनी मेटेरिया मेडिका में स्पष्ट लिखा है कि सल्फूरिक ऐसिड की दस से पन्द्रह बूंद की मात्रा दिन में ती बार कुछ दिनों तक देने से सुरापान की उत्कृष्ट इक्च्छा सफलतापूर्वक दबाई जा सकती है ,और एक दो माह में ही रोगी का शराब पीना पूर्णत: छुडया जा सकता है ।
5-मदरापान की आदत को काबू में करने के लिये (स्टर्क्यूलिया क्यू) :- स्टर्क्यूलिया क्यूकी दस दस बूंद दिन में तीन बार देने से मदिरापान की आदत को काबू में रखा जा सकता है यह दवा भूंख व पाचन शक्ति को बढाती है यदि दस दस बूंदो से परिणाम न मिले तो इस दवा की एक ड्राम तक ली जा सकती औ उसे रोज दिन में तीन बार दिया जा सकता है ।
6-शराब की उत्कृष्ट इक्च्छा पर काबू (सिनकोना रूबा क्यू) :- डॉ0 क्लार्क ने लिखा है कि सिनकोना रूब्रा क्यू की तीस तीस बूंद देने से भी शराब की उत्कृष्ट इक्च्छा पर काबू पाया जा सकता है ।
7-पुराने पियक्कडों के लिये (क्वेरकस ग्लण्डियम स्पिरिटस क्यू) :- पुराने पियक्कडों के लिये यह दवा क्यू में दस दस बूंद की मात्रा में रोज दिन में तीन बार कई माह तक देने से यह सुरापान की इक्च्छा को भी दूर किया जा सकता है इसके अलावा प्लीहा शोथ को भी यह दवा ठीक कर देती है
8-शराब व अन्य नशा करने से स्वास्थ्य खराब (हाईड्रैस्टिस कैन क्यू ):- शराब व अन्य नशा करने वाले व्यक्ति जिनका स्वास्थ्य खराब हो गया हो पाक स्थली यकृत की क्रिया में विकृति हो गयी हो इसका रोगी बहुत ही दुर्बल व कमजोर और हर समय अपनी बीमारी के विषय में बात करने वाला होता है कब्ज,अजीर्ण ,कलेजा धडकतना,सर्दी ,खॉसी और धॉव यह सब रोग में यह दवा दी जा सकती है । यह दवा क्यू पोटेंशी में दस दस बूंद दिन में तीन बार देना चाहिये ।
9-शराब पी कर बकवास करना (कैनाबिस इंडिका 200) :- कई शराबी व्यक्ति शराब पी कर अनावश्यक बकवास करते है उन्हे कैनाबिस इंडिका 200 की एक मात्रा सप्ताह या तीन तीन दिन में अन्तर से देना चाहिये । इससे शराब पीकर बकवास करने की आदत में सफलता मिलती है । यह दवा 30 पोटेंशी में भी दिन में तीन तीन बार दी जा सकती है ।
10-शराब छूडाना (सल्फर1एम):- ऐसे लोग जो रात दिन शराब पीते है उन्हे सुबह खाली पेट सल्फर 1 एम की एक खुराक लगाता कई दिनो तक देना चाहिये यह सोरा दोष नाशक दवा है ,अत: यदि मरीज में सोरा दोष के लक्षण देखे जाते हो तो इस दवा को देना उचित है ।
अभिमत :- शराब या तम्बाखू, बीडी, सिगरेट के आदि व्यक्तियों को इसकी आदत छुडाने के लिये सर्वप्रथम कैलेडियम जैसी दवाओं का उच्च शक्ति में प्राय: सी एम शक्ति का एक डोज देने के बाद जो भी दवाये निर्वाचित हो देना चाहिये, साथ ही तम्बाखू सेवन के दोष से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने के लिये आसैनिक तथा टोबेकम दवा का भी प्रयोग बीच बीच में करना चाहिये ।
7-बीडी सिगरेट (स्मोकिग), तम्बाखू की आदत करने की आदत
चैन स्मोकर की आदत :- ऐसे व्यक्ति जो बीडी सिगरेट एक के बाद एक पीते जाते है उन्हे चैन स्मोकर कहते है ऐसे व्यक्तियों कैलेडियम सी एम का एक डोज देना चाहिये साथ ही एवोना सिटाईवम क्यू में देना चाहिये इससे उनकी यह आदत धीरे धीरे बदलना शुरू हो जाती है एंव धीरे धीरे नशे की आदत कम हो जाती है । डॉ0 सत्यवृत जी ने अपनी मेटेरिया मेडिका मे लिखा है कि कैलेडियम दवा से ध्रूमपान की इक्च्छा के प्रति अरूची पैदा हो जाती है यहॉ तक की तम्बाखू खाने की आदत भी छूट जाती है । फॉसफोरस व सल्फर की कमी से तम्बाखू व नशा करने की इक्च्छा होती है , इसलिये सल्फर व फॉसफोरस की उच्च शक्ति का प्रयोग अन्य दवाओं के साथ करना चाहिये
तम्बाखू की आदत
1-तम्बाखू एंव अफीम छोडने के लिये (आरम म्यूर 12 एक्स) :- तम्बाखू एंव अफीम एक ऐसा नशा है जिसे नशा करने वाला व्याक्ति सब कुछ जानते हुऐ भी छोडने में असमर्थ होता है । डॉ0 हेल का कथन है कि आरम म्यूर 12 एक्स का कुछ दिनों तक सेवन किया जाये तो तम्बाखू एंव अफीम खाने की आदत छूट जाती है ।
2-तम्बाखू खाने की प्रबल इक्छा (डेफिन इंडिका ऐवाना सिटाईवम क्यू0) :- ऐसे आदती व्यक्ति जिन्हे तम्बाखू खाने की प्रबल इक्चछा होती है ऐसे व्यक्तियों को डेफिन इंडिका 1 एक्स या मूल अर्क शाक्ति की दवा कुछ दिनों तक नियमित दी जाये तो उनकी तम्बाखू खाने की प्रबल इक्छा कम हो जाती है एंव धीरे धीर यह आदत छूट जाती है । यदि इस दवा के साथ ऐवाना सिटाईवम क्यू0 में लिया जाये तो धीरे धीरे तम्बाखू के प्रति अरूचि हो जाती है एंव व्यक्ति धीरे धीरे तम्बाखू छोड देता है ।
3-जर्दा खाने के कारण उत्पन्न दोष (आसैनिक एल्ब 30) :- नियमित रूप से तम्बाखू खाने के दोषों को दूर करने के लिये जिसमे चक्कर आये , घबराहट हो ,मरीज एक जगह स्थिर न रहता हो , शारीर में जलन हो उल्टी की इक्च्छा हो तो आसैनिक एल्ब 30 पोटेंशी की दवा का प्रयोग दिन में तीन बार कुछ दिनों तक करना चाहिये ,इससे उत्पन्न तम्बाखू खाने से उत्पन्न दोषों में लाभ होता है ।
4-तम्बाखू खाने के कारण दन्तशूल (क्लिमेटिस और प्लैण्टेगो)- तम्बाखू खाने से वैसे तो कई प्रकार के दोष उत्पन्न होते है परन्तु यदि नियमित तम्बाखू सेवन से दन्तशूल होता हो तो क्लीमेटिस या प्टैण्टेगो दवा 30 पोन्टशी में दिन में तीन तीन बार कुछ दिनों तक प्रयोग करने से इस समस्या पर निजात पाई जा सकती है ।
मुंह में छाले होना कोई बीमारी नही है यह प्राय: पेट की खराबी या कब्ज की वजह से भी हो सकती है, जिसका उपचार कब्ज दूर करने से प्राय: हो जाता है ,। परन्तु यदि बार बार लम्बे समय तक मुंह में छाले बने रहते है तो यह समस्यॉ आगे चल कर मुंह के कैंसर का करण बन सकती है परन्तु इस प्रकार की समस्या प्राय: ऐसे लोगों को होती है जो लगातार लम्बे समय तक तम्बाखू का सेवन करते है । ऐसे व्यक्तियों को मुंह में छॉले होते है ।
1- मुंह में छॉले (मार्कसाल) :- डॉ0 ज्हार लिखते है कि मुंह के छालों के लिये मार्कसाल मुख्य औषधि है मुंह के छॉले तो क्या पेट तथा ऑतों की श्लैष्मिक झिल्ली के धॉवों तक के लिये भी यह उत्तम औषधिय है । अगर मार्क साल से लाभ शुरू होकर पॉच छै: दिन के बाद रूक जाये तो सल्फर देने से तुरन्त लाभ होता है । यदि सल्फर से भी पूरा लाभ शुरू होकर पॉच छै: दिन के बाद रूक जाये तो सल्फर देने से तुरन्त लाभ होता है । यदि सल्फर से भी पूरा लाभ न हो तो कैल्कैरिया कार्ब देना काफी चाहिये इस प्रकार मार्क सॉल ,सल्फर तथा कैल्कैरिया कार्ब इस रोग की रोक थाम कर देता है (डॉ0 सत्यवृत रोग और उनकी चिकित्सा )
2-मुंह के छॉलो के साथ हाथों पर भी छॉले उभरे(नेट्रम म्यूर):- अगर मुंह के छॉलों के साथ हाथों पर भी छाले उभर आये तो नेट्रम म्यूर 30 शक्ति में दिन में तीन बार देना चाहिये ।
3-मसूढो के अन्दर क्षतयुक्त कैंसर (रमैनस कैलि):- डॉ0 घोष ने लिखा है कि ओठों एंव मसूढे के अन्दर क्षत युक्त कैंसर मे रैमनस कैलि दवा का प्रयोग करना चाहिये ।
4-ओठों का कोने के फटने पर (एन्टी क्रूड, नेट्रम म्यूर, नाईटिंक ऐसिड):- ओठों के कोने फटने पर वैसे तो नाईट्रिक ऐसिड 30 में दिन में तीन बार देने से ठीक हो जाते है । नेट्रम म्यूर या एन्टी क्रूड दवा 30 पोटेंशी में दिन में तीन बार देने से ओठों के फटना प्राय: ठीक हो जाता है ।
5-श्लैस्मिक झिल्ली का क्षय (स्कूकम चूक 3 एक्स ):- स्कूकम चूक यह एक एण्टि सोरिक औषधि है चर्मरोग व श्लैस्मिक झिल्ली के ऊपर इसकी प्रधान क्रिया होती है मध्य कर्ण के प्रदाह आदि में भी इसका उपयोग होता है ।
6-तम्बाखू चबाने की आदत (कैलेडियम, ऐवाना सिटावम क्यू):- ऐसे व्यक्ति जो आदती तम्बाखू चबाते रहते है । इसके नियमित सेवन से गालों के अन्दर मुंह मे छॉले हो जाते है एंव कैंसर होने की संभावना बढ जाती है ,एक बार यदि तम्बाखू खाने की लत लग गयी तो समक्षों इसे छोडना प्राय: नमुमकिन होता है ,परन्तु ऐसा नही है कि इसे छोडा न जा सके दृढ इक्च्छा शक्ति से इसे छोडा जा सकता है । यहॉ पर यह बात सर्वविदित है कि तम्बाखू सेवन करने वाले व्यक्ति को यह मालुम होता है कि इसके नियमित व लम्बे समय तक तम्बाखू के सेवन से जानलेवा कैंसर हो सकता है इसके बाद भी वह इसे नही छोड सकता ऐसे व्यक्तियों को तम्बाखू छोडने के लिये प्रथम दिन सल्फर 200 शक्ति की एक मात्रा दुसरे दिन कैलेडियम 200 शक्ति में तथा इसी दवा को प्रारम्भ में तीन तीन दिन के अन्तर से एक मात्रा बाद में इसकी प्रति सप्ताह एक मात्रा इसके साथ एवाना सिटावम क्यू की पन्द्रह से बीस बूद दिन में तीन बार लगातार कुछ दिनों तक लेने से तम्बाखू के प्रति अरूचि पैदा हो जाती है और धीर धीर इसकी आदत कम होने लगती है
7-पान तम्बाखू के सेवन से मुंह में छॉले (कैलेन्डुला],इचिनेशिया, हाईड्रास्टीस केन):- मुंह में छालें कई कारणों से होते है ,परन्तु उसमें अधिकाशत: पान तम्बाखू,चूना मिश्रित पान मसाले, सुपारी आदि प्रमुख है । इस प्रकार के मुंह के छॉलों पर कैलेन्डुला क्यू ( यह दवा गेंदे से बनाई जाती है जो धॉव के लिये एक सर्वश्रेष्ट दवा है) दूसरी दवा है इचिनेशिय क्यू यह दवा भी छॉल व म्यूकस मेम्बरे के क्षय पर अच्छा कार्य करती है तीसरी दवा है हाईड्रास्टिस केन क्यू इन तीनों दवाओं के मदर टिंचर को समान मात्रा में ले कर किसी शीशी में भर कर उसे अच्छी तरह से मिला ले इसके बाद एक गिलास पानी में बीस से पच्चीस बूंद मिला कर उसे मुंह में कुछ देर तक भरे रहे बाद में कुल्ला कर ले इससे मुंह के धॉव छॉले आदि ठीक हो जाते है ।
8-पान तम्बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छॉले (करक्यूमा लॉन्गा क्यू ओसिमम सेनेक्टम क्यू0 तथा कैलेन्डुला ):-पान तम्बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छॉले होने पर करक्यूमा लोन्गा क्यू, यह दवा हल्दी से बनाई जाती है हल्दी में करक्यूमा पाया जाता है, जो कैंसर कोशिकाओं को फैलने से रोकता है एंव कैंसर के उपचार की यह एक अचूक दवा है । दूसरी दवा है ओसिमम सेनेक्टम यह दवा तुलसी से बनाई जाती है, इसके प्रयोग से कैंसर व छॉलों में लाभ होता है तीसरी दवा है कैलेन्डुला यह दवा धॉव व छॉले से मुंह के कटने छिलने पर उपयोगी है । उक्त तीनों दवाओं को मदर टिंचर अर्थात क्यू में बराबर मात्रा में ले कर उसे किसी शीशी में रख कर अच्छी तरह से मिला ले फिर इसकी बीस से पच्चीस बूंदे एक गिलास पानी में ले उसे मुंह में भर कर कुछ देर मुंह में रख कर कुल्ल करते जाये, बाद में दस दस बूंद आधे कप पानी में मिला कर उसे पी जाये इससे छॉले व मुंह के धॉल जल्दी भर जाते है ।
9-कैंसर होने पर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये (टिनोस्पोरा कार्डीफोलिया क्यू) :- शरीर में कैंसर इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण होता है इसलिये आयुर्वेद में कैंसर के उपचार में अन्य निर्वाचित दवाओं के साथ गिलोय, जिसे अमृता, भी कहॉ जाता है का प्रयोग किया जाता है । इस दवा के सेवन से शरीर में इम्यूनिटी शक्ति एंव रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है इससे कैंसर आगे नही बढता । हमारे होम्योपैथिक में भी गिलोय से बनने वाली दवा का नाम है टिनोस्पोरा कार्डीफोलिया इस दवा को मदर टिंचर में ले एंव इसकी बीस से पच्चीस बूंदे आधा कम पानी में मिला कर इसे दिन में तीन से चार बार प्रयोग अन्य निर्वाचित दवाओं के साथ करना चाहिये । यह दवा बार बार आने वाले बुखार एंव वृद्धावस्था में भी अच्छा कार्य करती है
10-रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये (अश्वगंधा):- जैसा कि हमने पहले भी कहॉ है कि कैंसर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने की वजह से होता है एंव शरीर में फैलता है , इसलिये मुंह में छॉले होने पर अधिकतर संभावना रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण होती है, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिये गिलोय एंव अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है । होम्योपैथिक चिकित्सा में अश्वगंधा क्यू में उपलब्ध है, इस दवा का प्रयोग मदर टिंचर में बीस बीस बूंद आधे कप पानी में दिन में तीन चार बार या आवश्यकतानुसार किया जा सकता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि अश्वगंधा के प्रयोग इम्यूनिटी शक्ति बढ जाती तथा इसके उपयोग से कैंसर को खत्म किया जा सकता है ।
11- कैंसर की रोकथाम (कार्सिनोसिन):- कैंसर होने की किसी भी अवस्था में या परिवार में कैंसर का इतिहास पाये जाने पर कार्सिनोसिन दबा का प्रयोग किया जाता है कार्सिनोसिन दवा के बिना कैंसर का उपचार संभव नही है, अत: कैंसर की रोकथाम व कैंसर होने पर कार्सिनोसिन दवा का प्रयोग करना चाहिये । ध्रुमपान तम्बाखू चबाने आदि की वजह से मुंह में छॉले होते हो तो अन्य सुर्निवाचित दवाओं के साथ इस दवा की उच्च शक्ति का प्रयोग सप्ताह या माह में एक दो बार करना चाहिये यह दवा कैसर से बनाई जाती है ।
12-मुंह में छॉले की सर्वप्रधान औषधि (सल्फयूरिक ऐसिड):- सल्फयूरिक ऐसिड या जितने भी ऐसिड होते है उनमें कमजोरे के लक्षण प्रधान होते है सल्फयूरिक ऐसिड का मरीज जल्दबाज होता है उसे हर काम में जल्दी रहती है कमजोरी के बाद जल्दबाज होना यह इस औषधिका विलक्षण लक्षण है । बच्चों व उसकी मॉ के मुंह में सफेद छॉले हो जाते है । मुंह के भीतरी भाग सफेद नजर आती है ये छॉले मुंह से पेट तथा गुदा तक जा सकते है गले के परिक्षण में सफेद रंग के छॉले दिखलाई पडते है ,मुंह के छाले में मार्कसाल बोरेक्स देने से भी लाभ होता है परन्तु इन औषधियों में सल्फूरिक ऐसिड की तरह से कमजोरी व जल्दबाजी के लक्षण नही होते है यह दवा मुंह के छॉले की सर्वप्रधान औषधि है ।
सहायक उपचार व अभिमत:- मूंगफली एण्टी आक्सिडेन्टस का अच्छा स्त्रोंत है एंव उसमें विटामिन ई का भंडारण साथ ही इसमें कैल्शियम और विटामिन डी प्रर्याप्त मात्रा में होती है । यह कैंसर एंव ह्रिदय सम्बन्धित बीमारीयों का खतरा कम कर देती है, यह कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होती है । विटामिन बी-6 या बी काम्प्लेक्स विटामिन ई सी एंव डी का प्रयोग प्राकृतिक स्त्रोंतों से ही करना चाहिये । ये त्वचा के धंब्बों को भरने तथा कोशिका निर्माण में सहायक होती है ।
अलसी के बीज :- अलसी के बीज में ओमेगा-3 पाया जाता है यह कोई विटामिन नही है परन्तु मानव शरीर के लिये अत्याधिक उपयोगी है ओमेगा-3 फैटी ऐसिड शरीर में एच डी कोलेस्ट्रॉल को बनाये रखता है ,इसके प्रयोग से कैंसर का खतरा कम हो जाता है । अलसी में महत्वपूर्ण पोष्टिक तत्व लिगनेन होता है लिगनेन जीवाणुरोधी ,विषाणुरोधी एन्टी फंगल तथा कैंसररोधी है यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ एंव शक्तिशाली बनाता है । डॉ0 योहाना बुडविज का कैंसररोधी प्रोटोकाल सन 1931 में ओटो बारबर्ग ने सिद्ध कर दिया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है यदि कोशिकाओं को प्रर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव नही है इसके लिये उन्हे नोबल पुरूस्कार भी मिला परन्तु तब बारबर्ग यह पता नही कर सके कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये डॉ0 योहान ने अपने परिक्षणों से यह सिद्ध कर चुकी थी की अलसी के तेल में वि़द्यमान इलेक्ट्रान युक्त असंतृप्त ओमेगा-3 वसा कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकृर्षित करने की अपार क्षमता रखता है पर मुख्य समस्या रक्त में अधुलनशील अलसी के तेल को कोशिकाओं तक पहुंचाने की थी वर्षो तक शेध करने के बाद वे मालूम कर पाई कि सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के तेल को धुलनशील बना देता है और तेल सीधे कोशिकाओं तक पहुंचकर आक्सीजन को कोशिकाओं में खीचता है व कैसर को खत्म कर देता है । डॉ0 योहाना ने अलसी के तेल पनीर कैसर और सब्जियो से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविज प्रोटोकोल के नाम से प्रचलित हुआ वे 1951 से 2003 तक सभी प्रकार के कैंसर रोगियों का उपचार सफलता पूर्वक करती रही ,जिसमें इन्हे लगभग 90 प्रतिशत सफलता मिलती रही इसके अलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हे अस्पताल से यह कहकर छोड दिया जाता था कि अब वे दुआ करे , अर्थात यदि कैंसर की शिकायत है तो s होम्योपैथिक की निर्वाचित दवा के साथ अलसी पनीर का संयुक्त प्रयोग कर कैंसर से बचा जा सकता है । अलसी के बीज को बारीक पीस कर उसमें पनीर मिला कर प्रतिदिन प्रयोग करना चाहिये केवल अलसी के प्रयोग से कैंसर ठीक नही होता इसलिये उसमें पनीर को मिलाकर प्रयोग प्रतिदिन नियमित रूप से करना चाहिये इससे कैंसर के उपचार में सफलता मिलती है।तम्बाखू के नियमित सेवन से कैंसर
तम्बाखू के नियमित सेवन से कैंसर होने की संभावना बढती जा रही है । हमारे देश में इसकी संख्या चौकाने वाली है । बच्चों से लेकर बडे बुर्जूर्गो में तम्बाखू खाने के प्रकरण हमारे देश में अधिक मिलेगे । तम्बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छाले होने लगते है धीरे धीरे यह फाईब्रोसेस कैंसर की अवस्था में तबदील होने लगते है जब तक इसका पता चलता है बहुत देर हो चुंकी होती है । अत: समय रहते तम्बाखू का सेवन बन्द कर देना चाहिये । परन्तु यह इतना आसान नही है एक बार तम्बाखू सेवन की लत लग जाये तो इससे बचना प्राय असंभव है । परन्तु दृड इक्च्दा शक्ति एंव कुछ नये प्रयासों से इससे बचा जा सकता है ।
बचाव :- यदि तम्बाखू खाने की प्रबल इक्च्छा हो एंव मुंह में छाले हो रहे हो तो आप निम्न प्राकृतिक साधन का प्रयोग कर कैसर एंव तम्बाखू खाने की प्रबल इक्च्छा से बच सकते है । अदरक एंव नीबू में कैंसर ग्रोथ एंव कैंसर सेल्स को खत्म करने का अदभुत गुण होता है । इसके नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से कैंसर से बचा जा सकता है ।
तम्बाखू खाने की प्रबल इक्च्छा:- ऐसे व्यक्ति जिन्हे तम्बाखू खाने की प्रबल इक्च्छा हो उन्हे अदरक के गुटका का प्रयोग करना चाहिये । इसे आप अपने घर पर बना सकते है इसके लिये आप अदरक को छोटे से छोटे टुकडे में कॉट लीजिये इसके बाद इसमें नीबू का रस इतना मिलाये जिससे यह पूरी तरह से उसमें डूब जाये इसमें इतना सेधा नमक मिलाये तथा इसे छाये में सूखने के लिये रख दीजिये परन्तु ध्यान इस बात का रखे कि इसे ढके नही अन्यथा अदरख खराब हो जायेगा उसमें फॅफूदी पड सकती है इसलिये इसे बिना ढॅके छॉये में सूखने दे गर्मीयों के दिनों में यह तीन चार दिन बाद यह पूरी तरह से सूख जायेगा । इसके बाद जब आप को पूरी तरह से विश्वास हो जाये कि यह पूरी तरह से सूख गया है अब इसे आप कि खाली बन्द डिब्बे में रख लीजिये । आप का अदरक व नीबू का खुटका तैयार है ।
जब भी आप को तम्बाखू खाने की इक्च्छा हो इसकी इतनी मात्रा जितनी आप तम्बाखू की लेते है मुंह में डाल कर धीरे धीरे चूंसते जाये व अन्त में इसे चबा ले । इसका स्वाद बहुत अच्छा लगेगा । इसे रात्री में सोते समय भी मुंह में रख कर चूसते रहे एंव सुबह इसे अच्छी तरह से चबा कर खॉ लीजिये ।
इसके नियमित सेवन से मुंह के छाले एंव कैंसर से मुक्ती मिल जायेगी । यह अजमाया हुआ नुस्खा है । इससे काफी लोगों को लाभ हुआ है । फिर इसमें खर्च ही कितना है फिर इसे एक बार अजमाने में नुकसान क्या है ।