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गुरुवार, 9 मई 2019

नाभी से चमत्कार डॉ0 जीनत खॉन

                          


बास्तु शास्त्र में जिस प्रकार से स्थान व दिशाओं का विषेश महत्व होता है, ठीक इसी प्रकार से शरीर के अंगो का भी अपना विषेश महत्व है । शरीर के कुछ स्थानों को शुभ माना गया है । जैसे मस्तिष्क का मध्य बिन्दू एंव शरीर का मध्य भाग जहॉ पर चन्दन लगाया जाता है , दहिना हाथ, दायें हाथ की अनामिका अंगुली को पवित्र मानते है । पुजा आदि के समय इनका प्रयोग किया जाता है । उक्त स्थानो में दो स्थान मस्तिष्क का मध्य बिन्दू एंव शरीर का मध्य बिन्दू नाभि इन स्थानो का विशेष महत्व है ।
जिस प्रकार से मस्तिष्क को देख कर मनुष्य के ज्ञान का बोध होता है , ठीक उसी प्रकार नाभि को देख कर मनुष्य के भविष्यात भाग्य व होने वाली बीमारीयो के बारे में बतलाया जा सकता है । अध्यात्म में नाभि पर मणिपूरण चक्र के बारे विस्‍तार से बतलाया गया है एंव इस बिन्दू पर ध्यान केन्द्रित करने से कई प्रकार की उपलब्धियॉ प्राप्त की जा सकती है । इस विद्या को जानने वालो ने इसके प्रत्यक्ष लाभ उठाये है । परन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहॅना चाहिये, कि इस विद्या को उन्होने अपने तक ही सीमित रखा और उनके साथ यह विधा भी लुप्त होती जा रही है । ज्योतिष हो या आध्यात्म या विशेष चमत्कारों की बातें, कही भी, किसी भी, ग्रन्थो में इसके बारे में प्रायः कम ही उल्लेख देखने को मिलता है । चूकि यह एक सरल व सर्वत्र बिना किसी खर्च व गुरू के विद्यमान है तथा इसके ज्ञान से  आशा के अनुरूप परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है । इस विधा को जानने वालो ने दूसरो को इस विद्या के बारे में इस लिये नही बतलाया कि एक तो यह अत्यन्त सरल है, फिर हर व्यक्तियों के गले से यह बात नही उतरती , कहने का अर्थ इस पर आसानी से विश्वास नही किया सकता । इसी का परिणाम है कि धीरे धीरे इसका अपना महत्व खत्म होता गया । इसके जानकारो ने इसको रहस्य रख सर्वागीण विकास तथा कई प्रकार की बीमारीयों का उपचार कर घन व यश लाभ प्राप्त करते रहे   

आप सभी इस विद्या का लाभ उठा सकते है । इसके लिये सब से जरूरी है आप पहले पूरी तरह से इस पर विश्वास करें, तभी आप को उचित परिणाम मिलेगा । मन में इसके प्रति पूर्ण समर्पित हो अन्यथा परिणाम नही मिलेगा । इसके परिणाम अत्यन्त उत्सावर्धक व आशानुरूप है बस आप को थोडा अभ्यास व विश्वास करना है । प्रत्येक प्राणीयो मे दो प्रकार की उर्जा होती है । जिसे हम सकारात्मक उर्जा एंव दूसरे को नकारात्मक उर्जा कहते है । इसे धनात्मक शक्ति व ऋणात्मक उर्जा भी कहॉ जाता है । इसी प्रकार से हमारे विचार भी दो प्रकार से होते है । इन्ही सकारात्मक एंव नकारात्मक विचारो को हम पहले अपने मन में स्थान देते है । फिर उन्हे कार्य रूप में परिणत करते है  जिसका प्रभाव हमारे जीवन में स्पष्ट दिखाता है । जैसे आप डॉ या इन्जीनियर या एक सफल व्यक्ति है तो यह आप की सकारात्मक सोच का परिणाम है, वही कुछ लोग चोर मवाली या गरीब है, तो यह उनके नेगेटिव या नाकारात्मक सोच का ही परिणाम है । इसका प्रभाव जीवन भर होता है , शरीर से दो प्रकार की उर्जा निकलती है । एक सकारात्मक जिसे हम धनात्मक ऊर्जा भी कहते है  एंव दुसरी है नकारात्मक या ऋणात्मक उर्जा । बृहमाण ऊर्जा का स्त्रोत है । हमारे शरीर का मध्य बिन्दू जिसे हम नाभि कहते है । यह बृहमाण से सकारात्मक ( धनात्मक ) ऊर्जा गृहण करती है । ऊर्जा बृहमण्य की प्रत्येक बस्तुओ में विद्यमान है । हम कह सकते है कि हम एक बृहमाणीय जीव है । अतः हम जो कुछ भी लेते है , इस बृहमाण्य से प्राप्त करते है । हमारे शरीर में बृहमण्य की सारी वस्तुओ का समावेश है । मुख्य रूप से जो ऊर्जा हम प्राप्त करते है , वह पंच तत्वो से प्राप्त करते है जैसे हवा पानी अग्नी आकाश एंव पृथ्वी इसके बाद प्राणीयो की सकारात्मक या नकारात्मक दृष्टि का प्रभाव हमारे जीवन पर होता है । हम ऑखें से या दृष्टि से किसी अंग या वस्तु स्थान की विषेश ऊर्जा को गृहण करते है जिसका प्रभाव हमारे कार्याे व जीवन पर होता रहता है । इसमें मस्तिष्क व नाभी प्रमुख है । मस्तिष्क के खुले होने के कारण मस्तिष्क साकारत्मक एंव नकारात्मक दोनो प्रकार की ऊर्जा को गृहण कर सकता है उसी के अनुरूप कार्य करता है । परन्तु हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग जिसे हम नाभी कहते हेै । यह अपने नाम के अनुरूप हॉ और न के मध्य अपना अस्तित्व को बनाये रखता है । (नाभि अर्थात न से नही एंव भी से हॉ का सम्बोधन )। प्राचीन समय में हमारी नाभी सीधे प्राकृति से जुडी रहती थी चूंकि हम नाभी को खूली रखते थे परन्तु आज कल हम नाभी को कपडों से ढक देते है इसका परिणाम यह होता है कि हमारा सम्बन्ध बृहमाण या प्रकृति से टूट जाता है ।  इससे नाभी तक  ऊर्जा नही पहुच पाती कपडे से ढके होने के कारण उस पर सकारात्मक उजा्र्र का प्रभाव  कम हो जाता है ।   नाभी हमेशा सकारात्मक उर्जा को गृहण करती है जबकि शरीर के अन्य अंग दोनो प्रकार की ऊर्जा को गृहण करते है । कुछ विद्ववानों का मानना है कि मस्तिष्क पुरूष प्रर्याय एंव नाभी स्त्रीय प्रर्याय है । मस्तिष्क सकारात्मक एंव नकारात्म दोनो प्रकार की ऊर्जा को ग्रहण करता है  यह सामर्थ केवल मस्तिष्क में है । परन्तु नाभी जो स्त्रीयी प्रर्याय है  केवल सकारात्क ऊर्जा को ग्रहण करती है । ऋणात्मक ऊर्जा को ग्रहण नही करती ।  नाभी के द्वारा सकारात्मक उर्जा के न मिलने से कई प्रकार की भौतिक बीमारीयॉ होती है उनमें प्रमुख है । मानसिक रोग तनाव हिस्टीरिया  मृगी तथा विचारभ्रम पागलपन जैसी बीमारीयाॅ दूसरे प्रकार की बीमारीयो को हम सूक्ष्म बीमारी कहते है जो दिखलाई नही देती यह मन व विचारों से उत्पन्न होती है  चूंकि इसका क्षेत्र मस्तिष्क है अर्थात पहले मन में विचार आता है बाद में वही विचार कार्य में परिणीत होते है । जैसे विचार आयेगे कार्य उसी रूप में परिणीत होगा एंव मनुष्य इसी के वशीभूत हो कर अच्छे व बुरे कार्य करता है । इससे तनाव  धन की हानि कलह व्यापार में हानि  छात्रो का पढने में मन का न लगना या जितना परिश्रम किया है  परिणाम उससे कम मिलना  आदि । जीवन में नाभी के द्वारा धनात्मक उर्जा का गृहण किया जा सकता है । नाभी का कार्य सम्पूर्ण बृहमाण एंव बृहमाण की प्रत्येक वस्तुओ से धनात्मक ऊर्जा ग्रहण करते रहना है।  इसका ज्ञान प्राचीन ऋषि मुनियो व देवी देवताओ को था । इसीलिये  पुरूष व स्त्रीयॉ हमेशा वस्त्र नाभी से नीचे पहना करते थे एंव नाभी को खुला प्रकृतिक के प्रभाव में बना रहने देते थे, आज की तरह से नही । अतः यदि हमेशा सकारात्मक परिणाम चाहते हो तो नाभी को बृहमाण में खुला ( बृहमाण्य के पंच तत्व में जैसे सूर्य  आकाश , वायु , पानी पृथ्वी आदि ) रखना चाहिये । मनुष्य दृष्टि में सकारात्मक उर्जा विरूद्व लिंग के व्यक्तियो के प्रति होती है , जैसे स्त्री के नाभी के प्रति पुरूष की दृष्टि सकारात्मक होगी , इसमें स्त्रीय की नाभी को पुरूष देखता है तो स्त्री की नाभी , उसकी दृष्टि से धनात्मक उर्जा को खीच लेती है । इसी प्रकार यदि स्त्री पुरूष की नाभी को देखती है तो  पुरूष की नाभी से स्त्री सकारात्मक उर्जा को खीचे लेती है  । देखने वाले की दृष्टि नाभी से धनात्मक उर्जा लेती है , कहने का अर्थ दोनो को सकारात्म ऊर्जाये मिलेगी । महाभारत में एक उदाहरण है जिसमें एक ऋषी ने वियोग से केवल महिला की नाभी में अपनी दृष्टी डाल कर उसे गर्भ धारण करा दिया था । यहॉ पर एक उदाहरण का दिया जाना उचित होगा , कुछ आदिवासी समाजो में एक प्रथा है उस कबीले का सरदार किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिये जाता है तो कबीले की ऐसी औरतो को निर्देश होता है कि वह अपनी नाभी को खुला रखते हुये भरा धडा लेकर रास्ते से निकले ताकि सरदार की दृष्टि उसकी नाभी पर पडे । नाभी का र्दशन अति शुभ होते है और कहा जाता है कि जिस कार्य के लिये जा रहे हो , यदि किसी स्त्री की नाभी दिख जाये तो कार्य पूर्ण होता है । इसमें यदि महिला भरा धडा लेकर आ रही हो तो समक्षो और भी शुभ है । यदि कम गहरी नाभी के र्दशन हो तो कार्य सन्देह पूर्ण होता है । डण्ढल की तरह ऊपर को उठी या जख्म के निशान की तरह अनाकृषक नाभी हो तो समक्षो कार्य बनने में सन्देह अधिक है । यदि पूर्ण गोलाकार एंव अत्यन्त गहरी नाभी के र्दशन हो , तो समक्षो कार्य पूर्ण होगा  इसमे कोई सन्देह नही है । आकृषक नाभी के र्दशन जितनी देर तक हो समक्षो कार्य की असफलता का प्रतिशत भी उतना ही अधिक होगा है । नाभी विज्ञान व नाभी ज्ञान में इसका उल्लेख मिलता है यह एक जादूई करिश्मा है । इसमें किसी प्रकार के सन्देह की गुंजाईश नही है परिणाम आप स्वयम देख ले इसके बाद ही विश्वास करे । जिस प्रकार से पुरूष द्वारा स्त्री नाभी के र्दशन शुभ होते है ठीक उसी प्रकार से स्त्री द्वारा पुरूष नाभी के दृर्शन भी शुभ होते है ।  नाभी को अध्यात्म का केन्द्र माना गया है ।
नाभी से कई प्रकार के असाध्य रोगो का उपचार बिना किसी दबाईयो के किया जा सकता है । नाभी साधना व नाभी के जादूई परिणामो के लिये इसका नियमित अभ्यास अति आवश्यक है । इसके लिये नाभी को हमेशा खुला रखने का प्रयास करे । यदि किसी व्यक्ति के द्वारा नाभी के र्दशन किये जाते है तो उस समय आप नाभी पर संवेदना या स्पन्दन आदि महसूस करते है या नाभी की कोशिकाओ में हलचल खुशी का अहसास होता है तो समक्षे की आप नाभी के जादूई परिणामो को प्राप्त करने में सफल है । उस वक्त आप को अपनी सफलता के कार्यो का मनन करना है । इस समय आप जो भी सोचेगे वह कार्य बिना किसी बॉधा के पूर्ण हो जायेगा । परन्तु यह सिद्वि आप को एकदम से प्राप्त नही हो सकती । इसके लिये कुछ दिनो तक नियमित अभ्यास करना होगा । धीरे धीरे कुछ दिनो में एक एक क्राम से जैसे पहले नाभी के आस पास  संवेदना आनन्द की अनुभूति या मात्र अहसास की अनुभूति होगी इसके बाद नाभी की कोशिकाओ में हलचल फिर वहॉ के रोगटे खडे होने लगेगे  बाद में नाभी के अन्दर एक संवेदना की अनुभूति होगी । अन्त में नाभी के अन्दर मध्य बिन्दू पर जब स्पन्दन होने लगे तब समक्षे की आप इस साधना में पूर्ण सफल हो चूके है। यह साधना किसी भी वक्त जब सहूलियत व बिना किसी बाधा के नाभी र्दशन का माहौल मिले इसे किया जा सकता है । जब उक्त कार्य पूर्ण हो जाये और आप समक्षे की आप इसमें सफल हो चुके है । उपरोक्तानुसार महसूस होने लगे, उस वक्त आप को अपने मन में वह यह विचार जिसकी सफलता आप चाहते है करना चाहिये । नाभी र्दशन के  समय आप जो भी विचार मन मे करेगे वह निःसन्देह पूर्ण होगा  इसमें कोई सन्देह नही है ।
     
    सकारात्मक ऊर्जा का गृहण करना:-
    हमारे शरीर में दो प्रकार की ऊर्जा का संचार निरंतर होता रहता है । जो प्राण ऊर्जा के माध्यम से होता है, इसे साकरात्म या धनात्मक ऊर्जा एंव दुसरे को नकारात्मक ऊर्जा या ऋणात्मक ऊर्जा कहते है । चाईनीज चिकित्सा पद्वति में ची जो अपने दो ऊर्जा यान और येग के माध्यम से शरीर में र्निबाध गति से प्रभावित होती रहती है । जब तक ये दोनो ऊर्जाये समान रूप से संचारित होती रहती है । प्राणी निरोग व दीर्ध आयु होता है । परन्तु जब कभी इन दोनो ऊर्जाओ में असमानता आने लगती है उस समय प्राणी का शरीर रोगो की चपेट में आने लगता है । प्राचीन आयुर्वेद में रोग के उत्पति के कारणो में मन को प्रधान माना गया है । वही होम्योपैथिक चिकित्सा में भी रोग की उत्पति का मूल कारण मन को बतलाया गया है । कहॉ गया है कि पहले बीमारी का आक्रमण मन पर होता है, इसके बाद धीरे धीरे भौतिक शरीर में परिलक्षित होने लगता है । अब यहॉ पर प्रश्न यह उठता है  आखिर यह मन है क्या  इसका बीमारी से क्या सम्बन्ध है  इसका सीधा सा उत्तर है मन अर्थात आप के अपने विचार । मन व विचारो का प्रभाव केवल भौतिक शरीर में ही नही बल्की आप के पूरे जीवन में होता है । आप के व्यवहार से ही आप के  आस पास का माहौल बनता है । जो आप के अपने विचारो व मन से होता है, इसमें कोई सन्देह नही है । मन में उत्पन्न होने वाले विचार दो प्रकार के होते है एक क्षणिक कुछ समय के लिये होता है । दुसरा स्थाई विचार होते है एक बार जो विचार बन गये  फिर उसे आसानी से बदलना संभव नही होता । जैसे यदि कोई बच्चा पढना न चाहे , तो फिर उसे पढाने का कितना भी प्रयास क्यो न किया जाये, वह नही पढेगा , ठीक इसी प्रकार से यदि कोई बच्चा यह ढान लेता है कि उसे जीवन मे कुछ करना है भले ही उसके पास साधनो का अभाव क्यो न हो, वह सामान्य बच्चो की अपेक्षा कुछ कर के ही रहता है । अतः उपरोक्त दोनो उदाहरण इस बात को स्पष्ट करते है कि पहले उनके मन में विचार आया जिसे उन्होने कार्य रूप में परर्णित किया । मन के विचार से एक अनपढ रह गया वही मन के विचारों से एक बच्चा पढ लिख कर कुछ करने लायक बन गया । यही है ! सकारात्मक विचारो का प्रभाव । सकारात्मक विचार, सकारात्मक ऊर्जा से प्राप्त होता है । सकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक वस्तुओ से प्राप्त होती रहती है  । प्राणी शरीर मे सकारात्म (धनात्मक) एंव नकारात्म ऊर्जा (ऋणत्मक) ऊर्जा विद्यमान है । जैसे विरूद्व लिंग के प्रति आक्रषण भाव इससे उत्पन्न कामवासनाये । इसी प्रकार स्थान का अपना महत्व होता है जैसाकि आप मन्दिर से निकले तो लोग आप को पुजारी व एक धर्म पर आस्था रखने वाला एक धार्मिक प्रवृति का इंसान समक्षेगा यदि आप शराब की दुकान या जुआ घर या वैश्यालय से निकलेगे तो आप को लोग बुरा इंसान समक्षेगे । इस विधा की अधिक जानकारी आप को अध्यात्म, नाभी चक्र ,नाभी योग नाभि मिमासा में मिलेगी जानकारी
                       


                                     डॉ जीनत खॉन
                                   राईट टाऊन जबलपुर