पेट से सम्बन्धित बीमारीयॉ –
आज के बदलते
लाईफ स्टाईल की वजह से सर्वप्रथम जो आम बीमारीयॉ या शिकायते हो रही है वह है पेट
से सम्बन्धित बीमारीयॉ । जैसा कि चिकित्सा विज्ञान में कहॉ जाता है कि पेट स्वस्थ्य
तो शरीर व मन स्वस्थ्य रहेगा यदि पेट बीमार हुआ तो शारीरिक व मानसिक व्याधियॉ
धीरे धीरे मनुष्य को रोग की चपेट में लेना प्रारम्भ कर देते है ,इसका प्रारम्भ
पाचनक्रिया दोषों से प्रारम्भ होता है जैसे पेट में हल्का र्दद ,भूंख का न लगना
,पेट भारी भारी ,कब्ज की शिकायत , शौच का पूरी तरह न होना , पेट से आवाज आना ,कभी
कभी किसी को उल्टी की इक्च्छा होना ,पेट में गैस बनना जिसकी वजह से हिदय में
पीडा या ह्रिदय रोग की संभावना ,कभी कभी किसी किसी को पतले दस्त हो जाना ,भोजन का
न पचना , या कुछ खाद्य पदाथों के खाने से स्वास्थ्य खराब हो जाना , चिडचिडापन ,
आलस्य , नींद का दिन में अधिक आना परन्तु रात्री में नींद न आना , बुरे बुरे ख्याल
आना खॉसकर यह शिकायत महिलाओं में अधिक पाई जाती है कुछ महिलाओं को पेट में गैस की
शिकायत के बाद ह्रिदय में र्दद उठता है आधुनिक चिकित्सा परिक्षणों में कुछ नही निकलता
,इसके साथ उन्हे मानसिक तनाव ,पेट में भारीपन ,कब्ज , गैस का बनान,पेट से वायु
का ह्रिदय की तरफ बढता हुआ महसूस होना यह प्राय: हिस्टीरिया के प्रकारणों में
देखा जाता है इससे वह महिला इस प्रकार की हरकते करने लगती है जैसे उस पर किसी
प्रेतात्मा या भूत प्रेत का साया हो वह एकटक निहारती है फिर बेहोश हो जाती है
थोडी ही देर में उसे होश भी आ जाता है । यह सब बीमारी पेट से प्रारम्भ होती है ।
अर्थात पेट से सम्बन्धित कई छोटे छोटे लक्षण है जिन्हे हम प्राय: नजरअंदाज कर
जाते है जो आगे चल कर किसी बडी बीमारी का कारण बनती है । चूंकि पेट से सम्बन्धित
बीमारीयों का मुंख्य कारण पेट के रस रसायनों की असमानता है , इसकी वजह से नाभी स्पंदन
अपने स्थान से खिसक जाता है (जैसा कि नाभी चिकित्सा में कहॉ गया है) । इस प्रकार
की बीमारीयों का उपचार नाभी चिकित्सा एंव ची नी शॉग चिकित्सा में बडा ही आसान व
प्राकृतिक है जिसमें किसी भी प्रकार के दवा दारू की आवश्यकता नही होती इसमें नाभी
स्पंदन की पहचान कर उसे यथास्थान बैठाल दिया जाता है एंव शरीर के अंतरिक प्रमुख
रोगअंगों की जाती है एंव उसे या उसके आस पास के ऐसे अंगों को पहचाना जाता है जो
सुस्पतावस्था में आ गये हो या निष्क्रिय होने लगे हो उसे पहचान कर उसे सक्रिय
कर देने से शरीर या पेट की क्रिया सामान्य रूप से कार्य करने लगती है एंव बीमारी
हमेशा हमेशा के लिये दूर हो जाती है ।
उपचार:- मरीज को सीधे लिटा
दीजिये उसकी नाभी पर तीन अंगूलियों को रख कर धीरे धीरे दबाव देते हुऐ महशूस करे की
नाभी की धडकन किस तरफ है । कभी कभी यह धडकन नाभी के बहुत नीचे पाई जाती है और ऐसी
स्थिति में नाभी पर अंगूलियों का दबाव बहुत गहरा देना पडता है नाभी जिस तरफ धडक
रही हो उसके ऊपर सीने की तरफ जहॉ पर छाती का पिंजडा प्रारम्भ होता है उसके पास जो
अंग पाये जा रहे हो उसे टारगेट किजिये ताकि उसी अंग पर आप को दबाव अधिक व बार बार
देकर उसे सक्रिय करना है । यदि नाभी पेडरू की तरफ धडकती हो तो आप नीचे के अंगों को
टारगेट करे । सर्वप्रथम आयल को नाभी पर डाल कर पूरे पेट का मिसाज इस प्रकार करे
ताकि पूरा पेट सक्रिय हो जाये अब जिस अंग की तरफ नाभी की धडकन है उसके आखरी छोर तक
नाभी से दबाव देते हुऐ जाये फिर पुन: आखरी छोर से नाभी तक आये इस क्रम को कई बार
कर । पेट के मिसाज करते समय मरीज से यह अवश्य पूछ ले कि उसे अपेन्डिस या हार्निया
तो नही है यदि है तो पेट की मिसाज सम्हल कर करे एंव दबाव अधिक न दे यदि नही है तो
पूरे पेट की मिसाज दबाब देते हुऐ करते जाये इससे पेट के अंतरिक अंगों की मिसाज
होने से समस्त अंग सक्रिय हो जाते है रस रसायनो की
असमानता ठीक हो जाती है मिसाज खाली पेट ही करना चाहिये । आप ने अभी तक दो कार्य
किये एक नाभी स्पंदन को पहचाना फिर उस अंग को टारगेट कर उसे मिसाज से सक्रिय किया
अब आप को सबसे महत्वपूर्ण कार्य करना है वह है नाभी स्पंदन को यथास्थान लाना
इसके लिये आप नाभी पर पुन: अपनी अंगूलियों से परिक्षण कर इसके बाद जिस तरफ नाभी
खिसकी है उसे अंगूलियों में तेल लगाकर उसे नाभी की तरफ दबाव देते हुऐ लाये जब वह
ठीक नाभी के बीचों बीच आ जाये तो उसके ऊपर एक दिया को उल्टा कर किसी कपडे से या
इलैस्टिक रिबिन से बांध दीजिये ताकि वह नाभी पर अच्छी तरह दबाब देते हुऐ बंधी रहे
अब रोगी को सीधा एक दो घंटे तक लेटे रहेने दीजिये । इससे उसके पेट से सम्बधित
समस्त प्रकार की बीमारीयों का उपचार आसानी से हो जाता है । परन्तु यहॉ पर एक बात
का और ध्यान रखना है वह यह है कि कुछ लोगों की नाभी उपचार से कुछ दिनों के लिये
ठीक हो जाती है परन्तु कुछ दिनों बाद पुन: टल जाती है इसलिये यह उपचार सप्ताह
में एक बार या जरूरत के अनुसार एक दो दिन छोड कर करना पडता है ,इसलिये इस उपचार को
घर वालो को सीख लेना चाहिये ताकि जरूरत पडे पर वह यह उपचार कर सके ।
शूल का र्दद
:- जिन महिलाओं को शूल का पेट र्दद होता हो वह खाली पेट नाभी स्पंदन
का परिक्षण करे यदि स्पिंदन ऊपर की तरफ है तो यह शूल का र्दद है यह अत्याधिक कष्टदायक
होता है एंव आधुनिक चिकित्सा परिक्षणों व दवाओं से भी ठीक नही होता । यदि नाभी स्पंदन
या नाभी नाडी की धडकन ऊपर की तरफ है तो आप सर्वप्रथम नाभी से एक अंगूल की दूरी पर
अपने दॉये हाथ का अंगूठा रखिये एंव उसके ऊपर बॉये हाथ का अंगूठे को रखे नाभी को
तेल से पूरी तरह से भर दीजिये ताकि आप अंगूठे से जब तेजी से दबाये तो नाभी पर भरा
तेल आप के अंगूठे को भर दे अंगूठे का दवाब इतना होना चाहिये ताकि नाभी का पूरे तेल
से अंगूठा पूरी तरह से डूब जाये , अब आप अंगूठे के दवाब को नाभी की तरफ तेजी से
दबाते हुऐ जाये इस क्रम का बार बार आठ से दस बार करें , इसके बाद पुन: नाभी पर तीन
अंगूलियॉ रखकर चैक करे यदि नाभी की धडकन नाभी के बीचों बीच आ गयी हो तो आप एक छोटा
सा दिया जिसकी साईज नाभी से थोडी बडी हो उसे नाभी पर इस प्रकार रखे ताकि पहले जो
धडकन थी वह दिये के खोखले भाग में आ जाये अब इसे दिये को आप किसी कपडे से या फीता
जैसे कपडे या इलैस्टिक फीते से अच्छी तरह से इस प्रकार लगाये ताकि दिया नाभी पर
अच्छी तरह से लगा रहे इसे लगा कर मरीज को घटे दो घंटे तक विश्राम करना चाहिये ।
इससे नाभी अपनी जगह आ जाती है परन्तु कभी कभी पुराने केशों में इस उपचार को सुबह
खाली पेट दो तीन दिन के अन्तर से जब तक करना चाहिये जब तक नाभी स्पंदन या नाभी
की धडकन नाभी के बीचों बीच नही आ जाती नाभी के धडकन के बीचों बीच आते ही शूल का
र्दद फिर नही उठता यदि किसी को पतले दस्त होते हो तो वह भी ठीक हो जाता है
।
नाभी उपचार हेतु हमारे ईमेल पर
अपनी समस्या लिख सकते है ।
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