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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2018

मनोयोग एक चमत्‍कार


              मनोयोग एक चमत्‍कार
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                              आप अपने जीवन में जो कुछ भी पाना चाहते है ,सब कुछ आप प्राप्‍त कर सकते है । इसमें कोई सन्‍देह नही है न ही यह कोई जादू या चमत्‍कार है । आप की लगन व महनत आप को वो सब कुछ दिला सकता है जिसकी आप को चाहत है । कुदरत की दिखने वाली अव्‍यवस्‍थ रचना में भी एक व्‍यवस्‍था है । जैसें आप चटटानों को ही देखे , इसमें भी एक व्‍यवस्‍था है फूल पत्‍ते ,तितलियों के पंख, आदि पर गौर करे तो आप पायेगे कि इनकी बनावट व रंगों आदि में एक क्रम एकरूपता जैसी व्‍यवस्‍था है । जैसे फूलों की पॅखुडियॉ एक क्रम से ऊपर की तरफ बढती है फिर नीचे की तरु छोटी व एक सी होती जाती है रंग भी इसी प्रकार होते है ,तितलीयों के पॅखो की बनावट आकार प्रकार व रगों में भी आप को एक क्रम व एकरूपता मिलेगी ,अर्थात कहने का अभिप्राय यह है कि कुदरत की रचना में एक सुनिश्चित व्‍यवस्‍था है ।यह तो एक मात्र भौतिक वस्‍तुओं का उदाहरण था ।  अब देखे हमारे आकाश गंगा में लाखों करोडों की संख्‍या में हमारी पृथ्‍वी से भी बडे बडे गृह है । जो एक दूसरे की परिक्रमा कर रहे है व एक दूसरे के आकृषण बल की वजह से खुले आकाश में स्थित है । गृहों का अपनी परिधी में एक दूसरे गृहों का चक्‍कर लगाने से मौसम बदलते है तथा प्राकृतिक का संतुलन बना रहता है कल्‍पना करे यदि हमारी पृथ्‍वी जो सूर्य की परिक्रमा करती है ,यदि बन्‍द कर दे तो क्‍या होगा ? या फिर अपनी आकृषण शक्ति का दुरूपयोग कर सूर्य के निकट पहुंच जाये तो क्‍या होगा  यदि ऐसा हुआ तो पृथ्‍वी पर जीवन का अन्‍त हो जायेगा । आकाश गंगा में दिखने वाले सभी गृह एक निश्चित व सुनियोजित कार्यो को अनावृत सदियों से बिना रूके करते चले आ रहे है ।  अब आप पूंछ सकते है आखिर ऐसा क्‍यों ?
तो इसका जबाब है ,इन सभी के पास अपने अपने कार्यो की सूचनायें संगृहित है इसी प्रकार का एक और उदाहरण है जिसे बतला देने से स्थिति और भी साफ हो जायेगी । जब बच्‍चा पैदा होता है तब उसके विकास को ही देखे तो आप देखेगे कि शरीर के समस्‍त अंग एक निश्चित क्रम में विकसित होते चले जाते है  जैसे बत्‍तीस दॉत है जिनमें से आगे के कुछ दॉतों की बनावट अलग है तो उसका विकास उसी क्रम में होगा हाथ या पैरों के विकास के समय क्‍या हम कभी डाक्‍टर के पास जा कर क्‍या पूंछते है कि डॉ0 सहाब देखे कि हमारे बच्‍चे के हाथ पैरों का बराबर एक सा विकास हो रहा है या नही ऐसा इसलिये चूंकि शरीर के समस्‍त अंग अपने अपने हिसाब से विकसित होते है एंसा नही है कि एक हाथ बडा हो जाये एंव दूसरा छोटा रह जाये या किडनी बडी हो जाये हिद्रय छोटा रह जाये । सभी अंग अपनी अपनी आवश्‍यकतानुसार विकसित होते रहते है ।  कहने का अर्थ है किसी भी प्राणी का विकास अपने आप होते रहता है । वैज्ञानिक समुदाय के पास इसका जबाब है । प्रत्‍येक प्राणीयों की कोशिकाओं के पास एक संदेश होता है उसे मालुम होता है कि उसे क्‍या करना है तथा वह अपने सन्‍देश का पालन बिना चूंके करता है इसी का परिणाम है कि प्राणीयों का विकास उसकी आवश्‍यकता के अनुसार होता रहता है उपरोक्‍त उदाहरणों में एक भौतिक निमार्ण व संरचना आदि के विषय में चर्चा की गयी है । दूसरे उदाहरण में बस्‍तुओं में संसूचना जिसे वैज्ञानिक समुदाय जीवित प्राणियों के विकास में इनफरमेशन संगृहण को उत्‍तरदायी मानता है । यही सूचना हमारे अध्‍यात्‍म से मिलती जुलती है हम सभी जीवित या अजीवित वस्‍तुओं में एक सूचना संगृहित होती है और उसी सूचना का परिणाम है कि जीवित अजीवित सभी वस्‍तुयें अपना अस्‍तीत्‍व बनाये हुऐ एक निश्चित समय तक विकासित होते है ,जीवित रहते है । यदि यह सूचना न हो तो किसी भी वस्‍तु का विकास एंव उसका अस्तित्‍व संभव नही है ।      यह सूचना एक तो प्राकृतिक प्रदत होती है एंव दूसरी संसूचना को प्राणी स्‍वयं अपनी आवश्‍यकता के अनुसार अर्जित करता है । प्राकृतिक प्रदत सूचना प्राणीयों के जीवित रहने उसके विकास तथा अन्‍त के लिये जबाबदार होती है अर्थात उत्‍पति व अन्‍त के लिये उनमें सूचनायें होती है जैसाकि हम सभी प्राय: इस बात को अच्‍छी तरह से जानते है कि किसी प्राणी की उम्र कितनी है । प्राकृतिक प्रदत सूचना प्राणीयों की उत्‍पति विकास व अन्‍त (मृत्‍यु) की सूचनायें संगृहित रखता है । अर्जित सूचना प्राणी स्‍ंवयम अर्जित करता है इसे हमारे धर्म शास्‍त्रों में ज्ञान कहते है । परन्‍तु वैज्ञानिक समुदाय इसे प्राणीयों के विकास एंव उसकी आवश्‍यकता हेतु आवश्‍यक समक्षती है । धर्म शास्‍त्रों में इस अर्जित सूचना को ज्ञान कहते ।    साधु महात्‍मा कहॉ करते है कि ज्ञान प्राप्‍त करते ही जीवन बदल जाता है । कभी कभी मै साध सन्‍यासीयों के प्रवचन आदि सुनने चला जाया करता था । उस समय मैने किसी साधु महात्‍मा के मुंह से सुना था कि ज्ञान प्राप्‍त करो ,तब मै सोचा करता था यह कैसा ज्ञान ? हम सभी के पास ज्ञान है फिर हम पढे लिखे है ,महराज किस ज्ञान की बाते करते है , उस समय मै शायद इस बात को न समक्ष सका ।
       आज हम जो शिक्षा गृहण करते है वह जीवकापार्जन हेतु अत्‍यन्‍त आवष्‍यक है इस ज्ञान के बिना आज के इस युग मे हमारा जीवन चलना संभव नही है यदि इस ज्ञान को हम प्राप्‍त न कर सके तो हमारा पढा लिखा समाज हमें अनपढ ग्‍वार कहता है । इस शिक्षा या ज्ञान में हमें यही सिखलाया जाता है जिससे हम अपने जीवन की आवश्‍यकताओं की पूर्ति हेतु धन कमा सकते है । इसलिये स्‍कूल कॉलेज में हम जो शिक्षा गृहण करते है वह एक ऐसा ज्ञान है जिससे हमें जीवकापार्जन हेतु घन की प्राप्‍ती होती है । इस ज्ञान के लिये हम एक व्‍यवस्थित व नियमित शिक्षा का अध्‍ययन एक लम्‍बे समय तक विषय के जानकारों साहित्‍यों के सैद्धान्तिक व प्रयौगिक अध्‍ययन से प्राप्‍त होती है । अत: यह ज्ञान भी अधुरा व एक पक्षीय है इसे हम सम्‍पूर्ण ज्ञान नही कह सकते ।   एक दूसरा ज्ञान ऐसा ज्ञान है जो सम्‍पूर्ण ज्ञान है, जिसके लिये किसी स्‍कूल कॉलेज या गुरू आदि की आवश्‍यकता नही है । यह ज्ञान ईश्‍वर प्रदत्‍त ज्ञान है जिसकी अवहेलना हम करते आ रहे है । यह ज्ञान ईश्‍वर का दिया एक ऐसा ज्ञान है जो सम्‍पूर्ण व सरलता व सहज ज्ञान है । जो आप को सरल सदाचारी व एक पूर्ण आचरण का एक ऐसा व्‍यक्ति बना देता है आप का जीवन सरल ,आनन्‍दमय सुखमय हो जाता है ।  यह ज्ञान स्‍वय मनुष्‍य अपने आप प्राप्‍त कर सकता है र्दशनिक ,विचारण आदि इसे अध्‍यात्‍म ज्ञान भी कहते है । इसे मै स्‍वा ज्ञान कहूंगा । अध्‍यात्‍म ज्ञान के लिये आज बडे बडे अध्‍यात्‍म केन्‍द्र या संस्‍थान आदि खुल गये है ।  विभिन्‍न प्रकार के समुदायों व धर्म आदि का प्रतिनिधित्‍व करते है इस अध्‍यात्‍म समुदायों में भी कही धर्म की तो कही समुदायों व अध्‍यात्‍म ज्ञान की राजनीति किसी न किसी रूप में फल फूंल रही होती है ।
   मै इस विषय में और अधिक चर्चा कर किसी विवादों में उलक्षना नही चाहता ।     मै केवल यहॉ पर इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि यह दूसरा ज्ञान जिसे हम अर्न्‍त आत्‍मा का ज्ञान कहते है ।यह ज्ञान सभी के पास सभी जगह उपलब्‍ध सरल ज्ञान है । इसे कही भी कभी भी बिना किसी शिक्षा व गुरू के प्राप्‍त किया जा सकता है । इस सरल सहज ज्ञान को कही भी किन्‍ही भी परस्थितियों में बिना किस आडम्‍बर व धन व्‍यर्थ किये प्राप्‍त किया जा सकता है । वैज्ञानिक समुदाय कहते है कि मनुष्‍य अपने दिमाक का तीन प्रति शत भाग का ही प्रयोग करता है शेष भाग सुशप्‍तावस्‍था में बेकार रह जाता है अब आप स्‍वय विचार करे कि हम अपने मस्तिष्‍क का केवल तीन प्रतिशत भाग का ही प्रयोग अपने जीवन में करते है शेष बेकार चला जाता है । इसका प्रतिशत कुछ व्‍यक्तियो में धट बढ सकता है 
 स्‍वाज्ञान:- स्‍वा ज्ञान या मनोयोग भी कह सकते है या इसे हम सरल ज्ञान भी कह सकते है क्‍योकि यह ज्ञान अर्न्‍तमन से प्राप्‍त होता है इसे अर्न्‍तआत्‍मा का ज्ञान भी कह सकते है क्‍योंकि यह ज्ञान भी कहॉ जाता है । यही एक पूर्ण व सम्‍पूर्ण ज्ञान है यही सम्‍पूर्ण र्दशन है । जिसके प्राप्‍त होते ही हमें ऐसा महसूस होता है कि हमारे पास कोई दु:ख नही है सुख की अनुभूति होती है हम तनाव मुक्‍त हो जाते है । यही एक ऐसा ज्ञान है जो हमें निर्मल व सरल सदाचारी बनाता है । अध्‍यात्‍म ज्ञान के समुदायों द्वारा बडी बडी बातें व बडे बडे सिद्धान्‍त इस प्रकार से प्रस्‍तुत किये गयें है जिसकी वजह से सामान्‍य मनुष्‍य क्‍या पढा लिखा समाज इसे प्राप्‍त करने के लिये उनकी शरण में आता है कुछ व्‍यक्तियों को यह प्रक्रिया अत्‍याधिक बोझिल व ऊबाउ तथा कठिन लगने के कारण वह इससे दूर ही रहना उचित समझता है । सम्‍प्रदायवाद व धर्मान्‍धता तथा व्‍यवसायिक विचारों ने इसे कठिन बना दिया है । जबकि यह ज्ञान सर्वत्र विद्यमान है सभी के पास है ,सरल है इसे कोई भी व्‍यक्ति कभी भी कही भी बिना किसी साधन व सहायता के प्राप्‍त कर सकता है । यहॉ पर छठी इंन्‍द्रीय या सिक्‍स सेन्‍सेसन के बारे में बतला देना मै उचित समक्षता हूं आप  लोगों ने सुना होगा कि कुछ लोगों के पास सिक्‍स सेन्‍सेसन होता है उन्‍हे यह आभास हो जाता है कि कौन सी घटना या कहॉ पर क्‍या है आदि या पूर्वाभास हो जाता है । यहॉ पर एक उदाहरण और है डिस्‍कवरी या नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर एक कार्यक्रम बतलाया जा रहा था जिसमें एक मंद बुद्धि बालक जो अपना समय बिताने के लिये रेल्‍वे लाईन या सडक के पास बैठ कर आने जाने वाली ट्रेनों को देखा करता था ट्रेनों व वाहनों के आने जाने के क्रम से वह इतना अभ्‍यस्‍थ हो गया था कि वह ऑखे बन्‍द कर यह बतला देता था कि अब कौन सी ट्रेन या वाहन आयेगा उसके द्वारा बतलाई गई बातें बिलकुल सही निकलती थी । इसी प्रकार कई ऐसे भी व्‍यक्ति होते है जिन्‍हे किसी घटनाओं के बारे में पूर्वाज्ञान हो जाता है । विज्ञान के पास भले ही इसके प्रमाण न हो वह भले इसे अवैज्ञानिक व तर्कहीन कहे परन्‍तु इसमें कुछ न कुछ तो है जो वैज्ञानिकों की पॅहूच से दूर है ठीक उसी प्रकार से जैसा कि इस पृथ्‍वीवासीयों ने अभी तक पृथ्‍वी के अतरिक्‍त अन्‍य गृहों पर जीवन को खोजने  में असफल रहे है । इतने बडे आकाश गंगा में जहॉ हमारी पृथ्‍वी से भी कई गुना बडे गृह है वहॉ पर जीवन नही होगा ? यदि है भी तो हमारे वैज्ञानिक व उनका विज्ञान वहॉ तक पहूंचने में असमर्थ रहा है ठीक इसी प्रकार इस ज्ञान की बातों को भले ही वह अस्‍वीकार कर दे परन्‍तु इस ज्ञान के जानकारों द्वारा आज भी ऐसे करिश्‍में किये जाते है जिसे देख कर दुनियॉ मुंह में अंगुलियॉ दबाने पर मजबूर हो जाता है । आप स्‍वंयम इसी प्रकार के कई करिश्‍में आसानी से कर सकते है जिसके परिणाम आप को आप के आशानुरूप ही मिलेगे । परन्‍तु इस विद्या को प्राप्‍त करने के लिये इस पर आप को पूरा पूरा विश्‍वास करना होगा ।   

  स्‍वाज्ञान प्राप्‍त करना :- ज्ञान शब्‍द की बात करते ही हमारे मन में एक प्रश्‍न आता है यह प्रश्‍न बार बार मेरे मन में जब जब आता रहा जब मै किसी ज्ञानी व्‍यक्ति साधु संत के मुख से यह सुनता था कि ज्ञान प्राप्‍त करो तभी तुम इस संसार को समक्ष सकते हो । तब मै सोचा करता था कि यह कौन सा ज्ञान है मैने तो विज्ञान से स्‍नातक किया है फिर मुक्षे किस ज्ञान की आवष्‍यकता है यह ज्ञान क्‍या है आदि आदि । वषो बाद जब इस ज्ञान से मेरा परिचय हुआ तो मुक्षे स्‍वंय महसूस हुआ कि यही एक सच्‍चा व सम्‍पूर्ण ज्ञान है जो हमें वर्षो पहले मिल जाना था । परन्‍तु विद्वानों ने कहॉ है कि यह ज्ञान समय आने पर ही किसी किसी को सदगुरू से या स्‍वय आत्‍म चिन्‍तन से आता है , उनकी यह बात बिलकुल सत्‍य है इसमें कोई सन्‍हेह नही है ,कि यह ज्ञान समय पर ही किसी किसी को प्राप्‍त होता है ।  अब यहॉ पर प्रश्‍न उठता है कि इस ज्ञान को कैसे प्राप्‍त किया जा सकता है ? क्‍या इसके लिये हमे किसी सदगुरू या अध्‍यात्‍म संस्‍थानों की शरण में जाना होगा या हमें इसे प्राप्‍त करने हेतु कडी साधना या पूर्व तैयारीयॉ करनी होगी,गृहस्‍थ आश्रम का त्‍याग कर वनवास लेना होगा या किसी मंदिर की शरण में जाना होगा आदि आदि ? कई प्रकार के प्रश्‍न हमारे दिमाक में आते है । इन सभी प्रश्‍नों का एक सीधा सा उत्‍तर है ,यह ज्ञान सरल है जो अर्न्‍तरात्‍मा से जिसे हम अर्न्‍तमन कहते है इसके लिये जैसा कि हमने पहले ही कहॉ है कि किसी साधना किसी प्रकार के क्रिया कलाप की आवश्‍यकता नही है इसे प्राप्‍त करने के लिये आप निम्‍न सूत्रों का पालन करे यह ज्ञान स्‍वंयम आ जायेगा ।     1- इस विद्या पर पूर्ण विश्‍वास :- अत्‍म ज्ञान व आत्‍म ज्ञान प्राप्‍त के चमत्‍कारों को प्राप्‍त करने के लिये सर्वप्रथम इस पर पूरी तरह से विश्‍वास करना होगा । यदि आप इस आत्‍म चिन्‍तन के विषय का ज्ञान प्राप्‍त करना चाहते है तो सर्वप्रथम इसकी सरल एंव छोटी छोटी उपेक्षित कही जाने वाली बातों को प्राथमिकता देना होगी । इसके बडे ही आशानुरूप ,सुखद व दूरगामी परिणाम मिलते है ।

2-सरल जीवन  :- उपरोक्‍त सूत्र के पालन के बाद दूसरे सूत्र का नम्‍बर आता है इस ज्ञान को प्राप्‍त करने के लिये सरल जीवन जीने का प्रयास करना होगा ।जीवन में जितनी सहजता व सरलता होगी आप का जीवन निर्विवाद होगा । सरलता से तात्‍पर्य प्राकृतिक के सरल रास्‍तों पर चलने से है । आप अपने दैनिक जीवन में एकदम परिवर्तन नही कर सकते । चूंकि आप की सोच व कार्य व्‍यवहार सभी कुछ वर्षो से निरंतर चले आ रहे होते है और इन कार्यो में आप अभ्‍यस्‍थ हो चुके होते है । इसलिये यदि आप असत्‍य बोलते है तो कोशिश करे कि इसमें जहॉ तक हो सके ऐसा झूठ न बोले जिससे आप का काम न चले । यह प्रयास करे कि जहॉ तक इससे बचा जाये बचे । यह एक उदाहरण है इसी प्रकार के और भी ऐसे कार्य जो आप को लगे यह गलत है और इससे हमें नही करना था ऐसे कार्यो से जहॉ तक बचा जाये बचने का प्रयास करे । एकदम नही तो धीरे धीरे करें । आप देखेगे आप के द्वारा छोडे गये बुरे कार्य जिन्‍हे हम कठिन कार्य कहते है कम होने लगते है । जीवन सरल होने लगता है जैसाकि आप भी इस बात को जानते है कि एक झूठ को छिपाने के लिये कई झूठ बोलना पडता है यदि वह झूठ पकडा गया तो र्शमिन्‍दा होना पढता है एंव दुसरों की नजर में हमेशा के लिये हमारी पहचान झूठ बोलने वाले की हो जाती है । इसलिये ऐसा कार्य न करे जिससे असुविधा हो या आप का जीवन आप का व्‍यवहार कठिन बने । अत: कुछ ऐसे कार्य जिसे करने पर आप को यह बोध हो कि यह कार्य ठीक नही है उसके बारे में विचार करे एंव उसे छोडने का प्रयत्‍न करे । ऐसा अभ्‍यास करने से हर प्रश्‍नों के बुरे भले का ज्ञान व उसके परिणामों से आप भली भॉती अवगत होते जायेगे व आप पहले जितना गलत कार्य करते थे धीरे धीरे उसमें  कमी आने लगेगी आपको अपने जीवन में बदलाव महसूस होगा ।
3:- स्‍वंय चिन्‍तन :- इसका तीसरा सौपान है स्‍वंय विचार करना अर्थात स्‍वचिन्‍तन आप व्‍यस्‍थ तो है परन्‍तु अव्‍यवस्थि है ,क्‍या करना है ,क्‍या कर रहो हो ? क्‍यों कर रहे हो यह आप को पता ही नही है । इसके बाद भी अपने आप को अत्‍याधिक व्‍यस्‍थ रखते हो मानसिक तनावों का शिकार होते हो । इस पर भी चिन्‍तन करे ,हम कहते है हमारे पास समय नही है काम अधिक है ,तो यह आप का भ्रम है , आप के पास काम के बीच में ही इतना समय है कि आप कार्य करते हुऐ भी चिन्‍तन या विचार तो अवश्‍य ही कर सकते है । अब यहॉ प्रश्‍न है कि मै क्‍या चिन्‍तन करू , क्‍या विचार करू, ?
इन विचारों के लिये शान्‍त जगह व समय होना चाहिये इसके बाद विषय जिस पर चिन्‍तन या विचार किया जाये ? तो यह आप का सोचना गलत है ,जैसा कि हमने बार बार लिखा है कि यह ज्ञान सरल व सभी जगहों पर उपलब्‍ध है । अत: आप अपने दैनिक कार्यो को करते हुऐ इस पर केवल विचार करे ,व आप पूछेगे कि विषय क्‍या होगा जिसपर विचार किया जाये ,तो यही प्रश्‍न यहॉ पर सबसे महत्‍वपूर्ण है कि हमारे चिन्‍तन का विषय क्‍या होगा ? चिन्‍तन का विषय आप को स्‍वंय अपने कार्यो से मिलेगा ,हर चिन्‍तन का विषय आप चाहेगे तो आप को अपने आप मिलता जायेगा ,बस आप को उन विषयों पर मनन करना है । यही से आप के अध्‍यात्‍म ज्ञान की शुरूआत प्रारम्‍भ हो जायेगी आप का विषय स्‍वंय आप को उसके बुरे व भले पक्ष से अवगत कराता चला जायेगा । इतना ही नही इसके अचूक परिणाम भी आप को मिलते चले जायेगे । आप का मन प्रशन्‍न व आत्‍म शक्ति का आप को अहसास होता जायेगा । यहॉ पर चिन्‍तन के हजार उदाहरण दिये जा सकते है परन्‍तु आप स्‍वंय अपने दैनिक कार्यो के दौरान ऐसी समस्‍याओं पर मनन करे तो अधिक उपयुक्‍त होगा । क्‍योकि हर मनुष्‍य व उनकी परस्थितीयों के अनुसार समस्‍यें अलग अलग हुआ करती है । जैसे आप किसी से बुरा बोलते है व अपना काम निकालते है या समाज के बनाये नियमों का उलंधन करते है ा कानून तोडने का कार्य करते है या फिर गलत कार्य नही भी करते परन्‍तु आप की अर्न्‍त आत्‍मा उस कार्यो को करने के लिये आप को रोकती है या बतलाती है कि यह गलत कार्य है ,तब आप का विषय आप को मिल गया होता है आप को इस विषय पर केवल विचार करना है यदि सामर्थवान थे तो क्‍या समाज के बनाये नियमों को तोडना हमारे लिये जरूरी था या कानून को तोडे बिना भी यदि कोई कार्य किया जा सकता था तो फिर उसे हमने क्‍यो तोडा इस पर केवल और केवल चिन्‍तन करे ,चिन्‍तन के लिये किसी पूर्वनिर्धारित विषयों की आवश्‍यकता नही है । यह विषय आप की परस्थितियों व आप के व्‍यवहारों तथा विचारों के अनुरूप स्‍वंय आप के पास एक प्रश्‍न बन कर उपस्थित हो जायेगा एंव इसका उत्‍तर स्‍वंय आप को चिन्‍तन या मनन करने से प्राप्‍त होगा । चिन्‍तन या मना जिसे अध्‍यात्‍म की भाषा में आत्‍म चिन्‍तन कहॉ जाता है इसे ही अर्न्‍तध्‍यान ,मनोयोग ,स्‍वाचिन्‍तन कहॉ जाता है ।
                                 
                                              डॉ0कृष्‍ण भूषण सिंह चन्‍देल
                       म0न082 वृन्‍दावनवार्ड गोपालगंज
                         सागर म0प्र0
             ईमेल - krishnsinghchandel@gmail.com 
              साईड-  Krishnsinghchandel.blogs.com







मोटापा कम करने का एक्‍युपंचर पाईंट


              मोटापा कम करने का एक्‍युपंचर पाईंट
 मोटापे का कारण शरीर के कुछ हिस्‍सों में विशेष कर ऐसे हिस्‍सो में अधिक होता है जहॉ पर शरीर से कम काम लिया जाता है । जैसे पेट ,जांध कुल्‍हे आदि परन्‍तु कुछ व्‍यक्तियो में मोटापा सम्‍पूर्ण शरीर में होता है । एक्‍युपंचर में मोटापे को कम करने ऐवम चबी को घटाने के लिये निम्‍न पाईट पर एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पर पंचरिग कर उचित परिणाम प्राप्‍त किया जा सकता है । वैसे यह नेवल एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में प्रयोग किये जाने वाला पाईट है ।



इस चित्र को ध्‍यान से देखिये इसमें क्रमाक 1 से 6 तक के पाईट है यही है मोटापा व शरीर से अनावश्‍यक चर्बी को कम करने के पाईन्‍ट क्रमाक 1,2,5,6 यह रिन चैनल पर पाये जाने वाले पाईट है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर -1 यह नाभी या रिन-8 से डेढ चुन नीचे रिन चैनल पर पाई जाती है यहां पर रिन -6 पाईन्‍ट होता है
पाईन्‍ट नम्‍बर -2 यह रिन-5 बिन्‍दू है इसकी दूरी नाभी से दो चुन नीचे रिन चैनल पर होती है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर -3 इसकी दुरी पाईन्‍ट नम्‍बर 2 से दो चुन आडी रेखा में दोनो तरफ होती है जहॉ पर स्‍टोमक-27 पाईन्‍ट पाया जाता है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर-4 इसी स्थिति रिन-8 बिन्‍दू या नाभी मध्‍य से दो चुन की दूरी में आडी रेखा में दोनो तरफ होती है । जहॉ पर स्‍टो-25 पाईन्‍ट होता है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर-5 यह बिन्‍दू नाभी या रिन-8 पाईन्‍ट से एक चुन रिन चैनल पर ऊपर की तरफ होती है जहॉ पर रिन-9 पाईन्‍ट होता है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर-6 यह बिन्‍दू नाभी या रिन-8 पाईन्‍ट से चार चुन ऊपर रिन चैनल पर पाई जाती है जहॉ पर रिन- 12 पाईन्‍ट होता है ।
 उक्‍त छै: पाईन्‍टस पर पंचरिग कर मोटापे को कम किया जाता है । होम्‍योपंचर उपचार में लक्षणों को ध्‍यान में रख कर उक्‍त पाईट पर होम्‍योपैथिक की शक्तिकृत औषधियों का उपयोग किया जाता है । एक्‍युप्रेशर चिकित्‍सा एंव ची नी शॉग उपचार में उक्‍त पाईट पर दबाब व मिसाज तकनीकी से उपचार कर मोटापे को कम किया जाता है ।
G:\BC-Year-2016-17\Acupanthure\Acupanthure\मोटापा कम करने का एक्‍युपंचर पाईंट.doc  











नेवल एक्‍युपंचर


                     नेवल एक्‍युपंचर    
एक्‍युपंचर चिकित्‍सा चीन गणराज्‍य की उपचार विधि है, इस चिकित्‍सा पद्धति में सम्‍पूर्ण शरीर
पर एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है , इन निर्धारित बिन्‍दूओं का चयन रोगानुसार कर चिकित्‍सक इन पाईन्‍स पर बारीक सूईया चुभा कर उपचार करते है । सम्‍पूर्ण शरीर में हजारों की सख्‍ॅया में पाये जाने वाले एक्‍युपंचर पाईन्‍स के निर्धारण में चिकित्‍सकों का काफी कठनाईयॉ होती है । नेवल एक्‍युपंचर, एक्‍युपचर चिकित्‍सा की नई खोज है, इसके आविश्‍कार का  श्रेय कास्‍मेटिक सर्जन मास्‍टर आफ चॉग के मेडिसन के प्रोफेसर योंग क्‍यू को जाता है । यह चाईना के एक्‍युपंचर फिलासफी पर आधारित है, जो टी0सी0एम0 अर्थात ट्रेडीशनल चाईनीज मेडिसन कहलाती है । जैसा कि हम सभी इस बात को अच्‍छी तरह से जानते है कि एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में शरीर पर हजारों की संख्‍या में एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है एंव रोग स्थिति के अनुसार चिकित्‍सक इन पाईन्‍ट की खोज करता है फिर उस निश्चित पाईन्‍ट पर एक्‍युपंचर की बारीक सूईयों को चुभा कर उपचार किया जाता है । एक्‍युपंचर के हजारों पाईन्‍ट को खोजना फिर उक्‍त निर्धारित पाईन्‍ट पर रोग स्थिति के अनुसार दस पन्‍द्रह बारीक सूईयो को चुभोना एक जटिल प्रकिया है । डॉ योंग क्‍यू ने महसूस किया कि नेवल व उसके आस पास के क्षेत्रों पर सम्‍पूर्ण शरीर के एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है , जिन्‍हे खोजना आसान है साथ ही किसी भी प्रकार के रोग उपचार हेतु कम से कम सूईयों को चूभाकर सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है ,उन्‍होने पाया कि पेट पर काफी मात्रा में चर्बी या फेट होता है इससे वहॉ पर सूई को आसानी से चुभाया जा सकता कि उक्‍त फेट पर किसी प्रकार का खतरा नही होता एंव सूई चुभाने से र्दद बिल्‍कुल नही होता । उन्‍होने सन 2000 में अपने इस नये शोध को कई पत्र पऋिकाआं में प्रकाशित कराया साथ ही उन्‍होने इसका प्रशिक्षण कार्य प्रारंम्‍भ कर इसके परिणामों से चिकित्‍स जगत को परिचित कराया । एक्‍युपंचर  चिकित्‍सको को पूर्व की तरह से सम्‍पूर्ण शरीर में हजारों की संख्‍या में पाये जाने वाले एक्‍युपंचर पाईन्‍ट के साथ कम से कम सूईयों को चुभा कर उपचार करने में काफी सफलता मिली है । नेवेल एक्‍युपरचर नाभी व इसके चारो तरु के क्षेत्रों पर कम से कम सूईयो को चुभाकर उपचार किया जाता है । इस उपचार विधि का एक लाभ और भी था जो एक्‍युपंचर चिकित्‍सक वर्षो से महसूस करते आये है जैसा कि रोग स्थिति के अनुसार सम्‍पूर्ण शरीर में कही भी एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है उपचार हेतु इन पाईन्‍ट पर सूईयॉ चुभाकर उपचार किया जाता है । कभी कभी कई ऐसे भी पाईन्‍ट होते है जिन पर सूईयों का लगाना काफी खतरनाक होता है ,जैसे गले के पास या ऑखों के चारों तरु या फिर सीने के पास खोपडी या कान के पिछले भागों में ,या ऐसे स्‍थानों पर जहॉ पर मसल्‍स कम या त्‍वचा तुलायम होती है , कई नाजुक स्‍थानो पर । नेवल एक्‍युपंचर  में जैसा कि पहले ही बतलाया जा चुका है कि इसमें केवल नाभी एंव नाभी के आस पास चारों तरफ पाये जाने वाले पाईन्‍ट पर सूईया चुभाकर उपचार किया जाता है । पेट पर नेवल (नाभी) के चारों तरफ प्रर्याप्‍त मात्रा में मसल्‍स होते है एंव इस क्षेत्र में खतरनाक हिस्‍से नही होते ,अत: इस भाग पर पंचरिंग करने से किसी भी प्रकार का खतरा नही होता  । जैसा कि एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में सम्‍पूर्ण शरीर पर हजारों की संख्‍या में पाये जाने वाले एक्‍युपंचर पाईन्‍ट को खोजने में काफी दिक्‍कत होती है परन्‍तु नेवल एक्‍युपंचर में नाभी एंव उसके चारो तरफ सम्‍पूर्ण शरीर के पाईन्‍ट आसानी से प्राप्‍त हो जाते है ,एक्‍युपंचर उपचार में लम्‍बी बडी बारीक सूईयों का प्रयोग किया जाता है परन्‍तु नेवल एक्‍युपंचर में प्रयोग की जाने वाली सूईया बहुत बारीक होने के साथ उसकी लम्‍बारई आधे से एक इंच होती है ,एक्‍युपंचर उपचार में दस पन्‍द्रह सूईया या रोग स्थिति के अनुसार और भी अधिक उपयोग की जाती है परन्‍तु नेवल एक्‍युपंचर में मात्र एक दो या अधिकतम दस सूईयो का प्रयोग किया जाता है । नेवल एक्‍युपंचर में सूईयो को लगाने से पहले पेट पर कितनी चर्बी है इसका परिक्षण कर चर्बी के अनुपात में पंचरिंग की जाती है ताकि पेट के अंतरिक अंगों को किसी प्रकार की क्षति न हो

नेवल एक्‍युपंचर चिकित्‍सकों का मानना है कि शरीर के सम्‍पूर्ण अंतरिक एंव वाहय अंगों के चैनल इस पाईन्‍ट से हो कर गुजरते है जैसा कि हमारे प्राचीन आयुर्वेद में कहॉ गया है कि नाभी से हमारे शरीर की 72000 नाडीयॉ निकलती है । नेवल एक्‍युपंचर सरल होने के साथ पंचरिग सुरक्षित है एंव उपचार हेतु कम से कम बारीक सूईयों का प्रयोग किया जाता है सूईयों को चुभाने पर र्दद बिल्‍कुल नही होता एंव परिणाम जल्‍दी एंव आशानुरूप मिलते है ।  इस चिकित्‍सा पद्धति की समस्‍त जानकारीयॉ गूगल साईड पर नेवल एक्‍युपंचर टाईप कर इसकी फाईले व वीडियों आदि देखे जा सकते है । नेवल एक्‍युपंचर में सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं के बहुत अच्‍छे परिणामों को देखते हुऐ आज कल इसका प्रयोग ब्‍युटी पार्लर व क्‍लीनिक आदि में होने लगा है । कई चिकित्‍सा पद्धतियों के चिकित्‍स इसका उपयोग अपने चिकित्‍सालयों में सफलतापूर्वक कर रहे है । एक्‍युपंचर की एक शाखा है होम्‍योपंचर जिसमें होम्‍योपैथिक की शक्तिकृत औषधियों को डिस्‍पोजेबिल बारीक सूईयों में भर कर एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पर लगा कर उपचार किया जाता था अब होम्‍योपंचर चिकित्‍सको ने नेवल एक्‍युपंचर के सफल परिणामों को देखते हुऐ नेवल एक्‍युपंचर पाईन्‍टस पर इसका प्रयोग कर सफलता प्राप्‍त कर रहे है । कई समाज सेवीय संस्‍थाये इसका पशिक्षण नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराती है । नेवल एक्‍युपंचर का अध्‍ययन घर बैढे करने हेतु आप इस साईड व ईमेल  पर सम्‍पर्क कर सकते है https://battely2.blogspot.com
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                                              डॉ कृष्‍णभूषण सिंह
                                          मो0    9926436304        
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           नेवल एक्‍युपंचर जिसे नाभी एक्‍युपंचर भी कहते है यह एक सरल उपचार विधि है

प्राचीन नाभी चिकित्‍सा


                नाभी परिक्षण से रोग की पहचान एंव निदान
हमारे शरीर में व्‍यर्थ सी दिखने वाली नाभी के महत्‍व पर आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान भले ही मौन हो ,परन्‍तु इसके महत्‍व को पश्‍चात्‍य चिकित्‍सा पद्धति को छोडकर ,विश्‍व की अनेक उपचार विधियों जैसे अध्‍यात्‍म ,योगा, प्राकृतिक चिकित्‍सा ,ची नी शॉग,नाभी स्‍पंदन से रोगों की पहचान एंव निदान आदि में इसके महत्‍व पर प्रकाश डाला गया है । चूंकि पश्‍चात चिकित्‍सा व संस्‍कृत्ति के अंधानुकरण की वहज से इसका महत्‍व धीरे धीर कम होता चला गया , चॅद जानकार व्‍यक्तियों ने इसे अपने तक ही सीमित रख, इसके आशानुरूप परिणामों से धन व यश प्राप्‍त करते रहे । शारीरिक रोग हो या सौन्‍र्द्धय समस्‍याओं का निदान, बिना किसी दबा दारू के आसानी से किया जा सकता है । चूंकि नाभी 72000 नाडीयों का संगम स्‍थल है । हमारे शरीर की संसूचना प्रणाली एंव नर्व सिस्‍टम का सम्‍बन्‍ध नाभी से है । चीन की परम्‍परागत उपचार विधि ची नी शॉग का मानना है कि समस्‍त प्रकार की बीमारीयॉ पेट से ही उत्‍पन्‍न होती है ,पेट ठीक रहेगा तो स्‍वास्‍थ्‍य ठीक रहेगा । यदि पेट याने आप का पाचन तंत्र खराब होगा , तो आप उपर से देखने में भले ही स्‍वस्‍थ्‍य होगें परन्‍तु इससे आप के शरीर का रस एंव रसायन का संतुलन बिगडने लगता है । इससे कुछ लोगों को भूख नही लगती ,पेट में गैस का बनना ,खटटी डकारे ,पेट का साफ न होना जैसे प्रथम लक्षण उत्‍पन्‍न होने लगते है और यह तो आज की जीवन शैली की वजह से 80 प्रतिशत लोगो में देखी जा सकती है । इस रस एंव रसायन के असंतुलन के भविष्‍यात परिणाम बडे ही गम्‍मीर होते है जैसे हिदय ,किडनी ,मधुमेह मृगी ,हिस्‍टीरिया,मानसिक रोग ,तनाव दमा ,टी बी कैंसर आदि
  भारतीय प्राचीन आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति में भी कहॉ गया है कि बीमारीयों का मूल कारण पेट है ।
  हमारे शरीर का पोषण, गृहण किये भोज्‍य पदार्थो के पाचन क्रिया पश्‍चात उत्‍पन्‍न रसो के रसायनिक परिवर्तनों की समानता से होता है । जब तक रस एंव रसायनिक सन्‍तुलन बना रहेगा प्राणी स्‍वस्‍थ्‍य व दीर्धायु होगा ,रस एंव रसायनिक परिवर्तन में नाम मात्र की असमानता से स्‍वास्‍थ्‍य एंव शरीर प्रभावित होने लगता है ,इस क्षणिक रस रसायनों की असमानता जब तक किसी रोग में परिवर्तन नही हो जाती हमे समक्ष में नही आती जैसे रात्री में नीद न आना,तनाव ,भूख न लगना, आलस ,गैस बनना ,जल्‍दी थकान ,त्‍वचा की स्‍वाभाविकता कम होना ,बालों का झडना समय से पहले त्‍वचा पर झुरूरीयॉ ,एक निश्चित उम्र के बाद भी शारीरिक विकाश का न होना, स्‍त्रीयों में स्‍त्री सुलभ अंगों का विकसित न होना ,मोटापा ,बॉझपन, मस्‍से, मुंहासे इसी प्रकार के और भी कई उदाहरण है । जिन्‍हे हम प्राय: गंम्‍भीरता से नही लेते परन्‍तु रस रसायनों के इस क्षणिक परिवर्तन के ये प्रारम्‍भिक लक्षण है जिन्‍हे नजर अंदाज नही करना चाहिये ।
  विभिन्‍न प्रकार की बीमारीयॉ हो या सौन्‍र्द्धर्य समस्‍याओं का निदान ची नी शॉग एंव नाभी स्‍पंदन से रोग पहचान एंव निदान , परम्‍परागत उपचार विधि , एंव न्‍यूरौथैरापी में प्राय: प्राय: एक ही सा है इस उपचार विधि विशेषकर ची नी शॉग उपचार में यह माना गया है कि पेट में रस रसायनिक परिवर्तन के साथ सम्‍पूर्ण शरीर के क्रियाकलापों के आवश्‍यक अंग यहॉ पर विद्यमान होते है । अत: स्‍वास्‍थ्‍य परिवर्तन रोगावस्‍था या रस एंव रसायन की असमानता सौर्द्धय समस्‍या, स्‍वस्‍थ्‍य दीर्धायु हेतु पेट को टारगेट किया जाता है । जिस प्रकार आयुर्वेद चिकित्‍सा में रोगी की नाडी का परिक्षण किया जाता है ठीक इसी प्रकार से इस उपचार विधि में सर्वप्रथम नाभी का परिक्षण किया जाता है यह परिक्षण दो प्रकार से किया जाता है ।
1-भौतिक परिक्षण :- इसमें रोगी की नाभी बनावट उस पर पाई जाने वाली धारीयों की बनावट एंव उसकी स्थिति का परिक्षण किया जाता है ।
 2-नाभी स्‍पंदन का परिक्षण:-
इस परिक्षण में नाभी पर तीन अंगुलियों को रख कर नाभी के स्‍पंदन को ज्ञात किया जाता है । यदि यह स्‍पंदन नाभी के बीचों बीच है तो व्‍यक्ति स्‍वस्‍थ्‍य एंव दीर्धायु होता है । यदि यह सूई की नोक के बराबर भी खिसकती है तो व्‍यक्ति के रस ,रसायन में असमानता उत्‍पन्‍न होने लगती है एंव व्‍यक्ति के स्‍वास्‍थ्‍य एंव उसके विकास दैनिक कार्यो में परिवर्तन प्रारम्‍भ होने लगता है जो आगे चलकर रोग में परिवर्तित हो जाता है । इस उपचार विधि में नाभी का स्‍पंदन जिस दिशा में होता है उसी दिशा की ओर नाभी धारीयॉ दिखलाई देती है इससे उस दिशा पर पेट में पाये जाने वाले अंतरिक अंगों में खराबीयॉ होती है । जिसकी पहचान उसी दिशा मे पेट से लेकर अंतिम छोर तक दबाब देते हुऐ परिक्षण करने पर उस जगह पर र्दद या असमान्‍य सी स्थिति देखी जाती है । तत्‍पश्‍चात उसे टारगेट कर सक्रिय किया जाता है ऐसा करने से वहॉ के अंगों में सक्रियता उत्‍पन्‍न हो जाती है अंन्‍य सुसप्‍तावस्‍था वाले अंग जैसे संसूचना तंत्र ,नर्वसतंत्र तथा वहॉ पर पाये जाने वाले अंग सक्रिय हो कर अपना अभीष्‍ट कार्य करने लगते है । टारगेट किये गये भाग को सक्रिय करने से रस रसायन भी सक्रिय हो कर समान अवस्‍था में आ जाते है । टारगेट अंगों को सक्रिय करने हेतु परम्‍परागत विधि में उस स्‍थान पर आयल लगा कर मिसाज किया जाता है । आधुनिक विधि में कपिंग तथा वायवेटर यंत्र के माध्‍यम से उस अंग को सक्रिय किया जाता है इसके बहुत ही अच्‍छे परिणाम मिले है । इस उपचार विधि की जानकारीयॉ नेट पर उपलब्‍ध है ची नी शॉग टाईप कर इसकी फाईले एंव वीडियों आदि देख सकते है । इन साईड पर इसका नि:शुल्‍क पत्राचार प्रशिक्षण उपलब्‍ध है । battely2.blogspot.com

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                    प्राचीन नाभी चिकित्‍सा
  नाभी चिकित्‍सा का उल्‍लेख विश्‍व की कई वैकल्‍पिक चिकित्‍सा पद्धतियों एंव कई परम्‍परागत उपचार विधियों में देखने को मिल जाती है ,परन्‍तु इस सरल सुलभ उपचार विधि के परिणामों से जन समान्‍य अनभिज्ञ है इसका मूल कारण यह है कि इस चिकित्‍सा पद्धति के जानकारो ने इस धन व यश कमाने के लिये अपने तक ही सीमित रखा, उनके बाद यह पद्धति धीरे धीरे उनके साथ लुप्‍त होती गयी । नाभी चिकित्‍सा या उपचार पद्धति के लुप्‍त होने के पीछे आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान का भी बहुत बडा हाथ है, जिन्‍होने इस प्रकृतिक उपचार विधि को अवैज्ञानिक एंव तर्कहीन कह कर, इसकी उपेक्षा ही नही की बल्‍की इसके विकास क्रम को ही अवरूध कर दिया , इसके पीछे मुख्‍य धारा से जुडी चिकित्‍सा पद्धतियों का व्‍यवसायीक दृष्‍टीकोण प्रबल था, जो इस जैसी सरल सुलभ तथा आशानुरूप परिणाम देने वाली उपचार विधि को हासिये में ला खडा कर दिया । चिकित्‍सा जैसा पुनित कार्य  व्‍यवसायीक प्रतिस्‍पृधा के भॅवरजाल में ऐसा फॅसता चला गया कि सस्‍ती सुलभ प्रकृतिक उपचार विधियॉ धीरे धीरे लुप्‍त होती चली गयी । इसीका परिणाम है कि आज नाभी उपचार जैसी सरल सुलभ तथा आशानुरूप परिणाम देने वाली उपचार विधियों से जन सामान्‍य अपरिचित है । विश्‍व के हर कोने में नाभी चिकित्‍सा, उपचार विधि किसी न किसी नामों से अभी भी प्रचलन में है एंव अपने आशानुरूप परिणामों की वजह से एंव मुख्‍य धारा कि चिकित्‍सा पद्धतियों के विरोध के बाबजूद अपना अस्‍तीत्‍व बनाये हुऐ है । नाभी चिकित्‍सा का उल्‍लेख हमारे  प्राचीन आयुर्वेद चिकित्‍सा पद्धति में देखा जा सकता है समुद्रशास्‍त्र एंव ज्‍योतिष विद्याओं में भी नाभी उपचार का उल्‍लेख है । अत: हम कह सकते है कि नाभी चिकित्‍सा हमारे भारतवर्ष की अमूल्‍य घरोहर है , जिसे हम न सम्‍हाल सके , सम्‍हालना तो दूर की बात है हमारा पढा‍ लिखा सभ्‍य समाज इसकी उपेक्षा करते न थकता था, वही बौद्ध भिक्षुओं ने हमारी इस उपचार विधि के महत्‍व को समक्षा एंव इसे अपने साथ चीन व जापान ले गये, जहॉ यह एक नई उपचार विधि, ची नी शॉग के नाम से चीन व जापान मे प्रचलित हुई । एक्‍युपंचर एंव एक्‍युप्रेशर उपचार विधियों के चिकित्‍सकों ने इसे एक नये उपचार विधि के रूप में प्रस्‍तुत किया, अत: कहने का तात्‍पर्य, मात्र इतना है, कि नाभी चिकित्‍सा विश्‍व की वैकल्पिक चिकित्‍सा पद्धतियों में किसी न किसी रूप में प्रयोग की जा रही है एंव इसके बडे ही अच्‍छे आशानुरूप परिणाम मिल रहे है । नाभी चिकित्‍सा के इतिहास को दोहराने की अपेक्षा इसके उपचार महत्‍व पर प्रकाश डालना उचित होगा ताकि जन सामान्‍य इस उपचार विधि का स्‍वयम उपयोग कर इसके परिणामों से परिचित हो सके ।
  जो सरलता से उपलब्‍ध हो जाये , उसका महत्‍व नही होता , परन्‍तु वही काफी मुश्किलों से प्राप्‍त हो तो उसका महत्‍व बढ जाता है । यदि आप से कहॉ जाये कि किसी बीमारी में बिना पैसों के उपचार हो सकता है तो आप को विश्‍वास नही होगा । आप ऐसे बिना खचों के उपचार की बातों में ही नही आयेगे, नाभी उपचार भी इसी प्रकार की चिकित्‍सा है जिसमें बिना किसी खर्च के असाध्‍य से असाध्‍य बीमारीयों का उपचार आसानी से किया जा सकता है यहॉ पर एक छोटा सा उदाहरण, मै देना चाहूंगा ,एक युवा महिला जो हमारे पडौस में रहती थी उसकी नई नई शादी हुई थी वह पेट की बीमारीयों से काफी परेशान थी ,कई जगह उसने अपना उपचार कराया बडे से बडे डॉक्‍टरों को दिखलाया परन्‍तु कुछ भी लाभ न हुआ ,एलोपैथिक से लेकर आयुर्वेदिक ,होम्‍योपैथिक ,यूनानी आदि कई चिकित्‍सकों का उपचार करा चुकी थी उसे किसी प्रकार लाभ नही हो रहा था इस दरबयान उसने मुक्षे भी विभिन्‍न चिकित्‍सकों के उपचार के परचे बतलाये , मैने उसे होम्‍योपैथिक की दबाये लिखी ,परन्‍तु उसने पहले होम्‍योपैथिक से उपचार करा लिया था इसलिये उसने मेरी दवाये न ली । इसी मध्‍य उसकी सासु मॉ उनके यहॉ आई जो नाभी को यथास्‍थान लाना जानती थी उसने अपने लडके से कहॉ अरे तुम जानते थे कि मै पेट सुधारना जानती हूं फिर तुमने मुक्षे क्‍यो नही बतलाया, लडका हॅसा और कहने लगा मॉ ये तुम्‍हारी समक्ष से बाहर है बडे बडे डाक्‍टरो तक की समक्ष में नही आया फिर तुम क्‍या करोगी । उसकी मॉ ने बहुं से कहॉ बेटा तुम इसकी बातों में न आओं । अब मरता क्‍या न करता, बहुं ने सोचा कि इस बिना पैसों के उपचार कराने में हर्ज ही क्‍या है । उसकी सासू मॉ ने पेट का परिक्षण किया उसने बतलाया कि बेटी तुम्‍हारी नाभी टली हुई है उसने उसके पेट का मिसाज कर नाभी को यथास्‍थान बैठाया फिर एक जलता हुआ दिया नाभी पर रख उस पर लोटा रखा । इससे उसकी नाभी यथास्‍थान बैठ गयी उसके पेट का र्दद पूरी तरह से चला गया । कई दिनों बाद जब मेरी पत्‍नी ने उससे उसकी बीमारी के बारे मे पूछा तो उसने बतलाया कि उसकी बीमारी उसी दिन से ठीक हो गयी जब से सासु मॉ ने नाभी को बिठा दिया था । अब आप ही बतलाईये इतने बडे बडे डॉ0 के उपचार से जो ठीक ना हो सकी वह इस छोटे से बिना पैसों के उपचार से पूरी तरह से ठीक हो गयी ।
उपचार :- नाभी चिकित्‍सा में सर्वप्रथम रोगी के नाभी का परिक्षण किया जाता है ,जिस प्रकार से हमारी हाथों की नाडीयॉ चलती (धडकती) है उसी प्रकार से हमारे, नाभी की नाडीयॉ चलती है , नाभी पर तीन अंगुलियॉ रख कर परिक्षण करने पर यदि यह नाडी नाभी के बीचों बीच धडक रही है तो रोगी स्‍वस्‍थ्‍य व दीर्ध जीवी होता है, परन्‍तु यदि यही धडकन ऊपर या नीचे या नाभी वृत के आजू बाजू है तो ऐसी स्थिति में रोगी को वही रोग होगा जिस तरफ नाभी नाडी की धडकन होगी । इस धडकन का अनुमान इस प्रकार किया जाता है, हमारे पेट के अंतरिक अंग जिस तरफ पाये जाते है उसे उसका प्रतिनिध क्षेत्र कहते है । एंव नाभी की धडकन जिस तरफ होती है उसी अंग में बीमारीयॉ होती है , नाभी धारीयों एंव उसकी बनावट से भी रोग की स्थिति को पहचाना जाता है । इसके बाद शरीर की अम्‍लता एंव क्षारीयता का परिक्षण नाभी पर हल्‍दी के पावडर को डालकर या लिटमस पेपर से किया जाता है इस परिक्षण में यदि नाभी गहरी है तो उसकी नाभी पर पानी मे हल्‍दी को घोल कर डालने पर यदि हल्‍दी का रंग लाल हो जाये तो समक्षों अम्‍ल की मात्रा शरीर में अधिक है एंव ऐसी स्थिति में रोगी को अम्‍ल से सम्‍बधित अनेक प्रकार की व्‍याधियॉ हो सकती है यहॉ तक की कैंसर होने की संभावना बढ जाती है यदि इसका रंग नीले रंग का हो जाता है तो समक्षे शरीर रसों में क्षारीयता है क्षारीय होना अच्‍छी बात है एंव व्‍यक्ति के स्‍वस्‍थ्‍यता का सूचक है शरीरिक रसो का क्षारीय होने से कई रोगों का निदान स्‍वयम हो जाता है । आज की जीवन शैली एंव खानपान की वजह से मनुष्‍य के शरीर में अम्‍ल की मात्रा बढ रही है जो बीमारीयों का मूल कारण है इस उपचार विधि में इस अम्‍लीय एंव क्षारीयता रस समायोजन के सूत्र का पालन रोग निदान हेतु किया जाता है ।
नाभी चिकित्‍सा का मूल सिद्धन्‍त है शारीरिक रस रसायनों की समानता एंव नाभी टलने पर उसे यथास्‍थान बैठालना ।

   आज चिकित्‍सा जैसा पुनित कार्य एक व्‍यवसाय बन चुका है, छोटी से छोटी बीमारीयों के उपचार हेतु मुख्‍यधारा से जुडे चिकित्‍सक बडे से बडा परिक्षण लैब टेस्‍ट कराते है हजारो रूपये खर्च होने के बाद दवाये लिखी जाती है या उपचार शुरू होता है । जितनी बडी अस्‍पताल या जितना बडा डॉ0 उतना खर्च । मरीज भी चिकित्‍सा एंव उपचार के भंवरजाल में इस तरह से उलझ जाता है कि उसे भी कुछ समक्ष में नही आता ।
                   नाभी परिक्षण से रोग की पहचान
नाभी चिकित्‍सा पद्धति एक सरल, सुलभ उपचार विधि है , जिस प्रकार  आज मुख्‍यधारों से जुडी चिकित्‍सा पद्धतियॉ या अन्‍य चिकित्‍सा विधियॉ रोग निदान से पूर्व रोग की पहचान करने हेतु कई प्रकार की विधियॉ अपनाती है जैसे पैथालाजी ,एक्‍सरे ,सोनोग्राफी आदि इससे शरीर में कौन सा रोग है यह मालुम हो जाता है । आयुर्वेद जैसी प्राचीन चिकित्‍सा में नाडी परिक्षण आदि से रोग की पहचान की जाती है, होम्‍योपैथिक उपचार में लक्षणों के आधार पर रोग की स्थिति को पहचान कर उपचार किया जाता है । ठीक इसी प्रकार नाभी चिकित्‍सा में भी उपचार से पूर्व शरीर के किस अंग में खराबी है या कौन सा रोग है पहचाना जाता है  नाभी चिकित्‍सकों का मानना है कि समस्‍त प्रकार की बीमारी पेट से प्रारम्‍भ होती है उनका सिद्धान्‍त है कि रस एंव रसायनों की असमानता से समस्‍त प्रकार के रोग उत्‍पन्‍न होते है !
 1-रस :- प्राणी जीवन का आधार ही रस है, यानी हमारे शरीर में जो भी तरल रूप मे है चाहे वह पाचन क्रिया उत्‍पन्‍न होने वाले रस, विटामिन, एमिनो एसिड, या फिर विभिन्‍न प्रकार के रसायनिक घटक ही क्‍यो न हो, प्रथमावस्‍था में ये सभी रस की श्रेणी में ही आते है, फिर सम्‍बन्धित अंगों के माध्‍यम से रक्‍त व  हार्मोन में परिवर्तित होते है जो रस की , द्वितिय अवस्‍था में रसायनिक घटक में परिवर्तिन होते है ।
2-रसायन :- हम जो कुछ गृहण करते है वह पहले रस में परिवर्तित होता है इसके बाद रसायनिक घटकों में रसायनिक प्रक्रिया द्वारा परिवर्तित होता है, इसे रसायन कहते है । हार्मोन्‍स हो या रक्‍त में मिश्रित सभी प्रकार के तत्‍व रसायनिक प्रक्रिया के माध्‍यम से ही परिवर्तित होते है ।
  अत: नाभी चि‍कित्‍स का मूल सिद्धान्‍त है कि प्राणीयों की समस्‍त प्रकार की बीमारीयॉ रस रसायनों की असमानता की वजह से उत्‍पन्‍न होती है । इस चिकित्‍सा विधि में उपचारकर्ता सर्वप्रथम रस एंव रसायनों को समान्‍यावस्‍था में लाने का प्रयास करता है । उनका मानना है कि रस एंव रसायनों के साम्‍यावस्‍था में आते ही समस्‍त प्रकार की बीमारीयों का निदान बिना किसी दबा दारू के हो जाता है ।
परन्‍तु हमारे शरीर के रस रसायनों के परिवर्तन व प्रतिक्रिया के परिणाम स्‍वरूप जो तत्‍व पसीने आदि के माध्‍यम से शरीर से निकलते रहते है वह नाभी के गहरे भाग में धीरे धीरे जमने लगते है जो मैल की परत के रूप में देखे जा सकते है इसमें एक विशिष्‍ट प्रकार की गंध पाई जाती है यह गंध शरीर के रस रसायनों की विकृति को दृशाती है शरीर में अम्‍लता एंव क्षारीयता को इसकी गंध से आसानी से पहचाना जाता है चूंकि शरीर में रस रसायन के परिवर्तन एंव अम्‍लीयता तथा क्षारीयता के स्‍तर की असमानता से कई प्रकार की बीमारीयों का जन्‍म होता है । अम्‍ल एंव क्षार का पी एच-7 होने पर शारीर का रसायनिक संतुलन सही होता है ,पीएच-7 से अधिक होने पर क्षारीय एंव कम होने पर अम्‍बली होता है  ]
 इसके घटने या बढने पर शरीर क्षारीय या अम्‍बलीय होने लगता है अम्‍ल व क्षार की अधिकता या कमी का परिणाम शारीरिक रसायनिक घटकों में असमानता उत्‍पन्‍न तो करती ही है साथ ही अम्‍बली या क्षारीय माध्‍यमों में होने वाले वैक्‍टरियॉ उत्‍पन्‍न होने लगते है इससे वेक्‍टेरियाजनित बीमारीयों की संभावनाये बढ जाती है । क्षय रोग अम्‍लीय रोग फेफडों के रोग व कैसर जैसी बीमारीयों में शारीर में अम्‍ल का स्‍तर बढ जाता है इससे नाभी मे जो गंध होती है अम्‍बलीय या खटटी ,इसके मैल की परत को निकाल कर उसे साफ पानी में घोलकर लिटमस पेपर पर डालने पर लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता है । क्षार के स्‍तर के अधिक बढने पर  कडुवी सी गंध आती है तथा इसकी परत का परिक्षण करने पर लिटमस पेपर लाल हो जाता है । जानकार नाभी चिकित्‍सक नाभी पर पाये जाने वाले इस मैल का परिक्षण विभिन्‍न विधियों से कर बीमारी का पता आसानी से लगा लेते है ।  जैसे यदि नाभी धारी के मध्‍य पीला रंग है तो उसे पित्‍त से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ या फिर पीलियॉ जैसा रोग होगा , ठीक इसी प्रकार यदि नाभी धारीयों का रंग अत्‍यन्‍त लाल है तो उसे रक्‍त विकार की शिकायत हो सकती है । नाभी धारीयों के मध्‍य सफेद रग का होना वात रोग या नसों से सम्‍बन्धित बीमारीयों का दृशाता है । नाभी में खटटी गंध आने पर रोगी अपच तथा अम्‍ल्‍ा रोग का शिकार होता है ।
 अम्‍ल क्षार  का संतुलन बिगडना :- इस चिकित्‍सा पद्धति का माना है कि शरीर में समस्‍त प्रकार की बीमारीयों का उत्‍पन्‍न होना अम्‍ल क्षार के संतुलन की असमानता है हमारे शरीर में दो तरह के तत्‍व होते है एक अम्‍ल दुसरा क्षारीय । यदि इन दोनो का संतुलन बिगड जाये तो हमारे शरीर मे रोग उत्‍पन्‍न होने लगता है शरीर में अम्‍ल का अधिक होना घातक है    शरीर में अम्‍ल की मात्रा अधिक होने पर कई प्रकार की बीमारीयॉ उत्‍पन्‍न जैसे शरीर में र्दद रहना ,पित्‍त का बढना ,बुखार आना ,चिडचिडाहट , रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम हो जाना ,कैसर जैसी घातक बीमारीयों का मुख्‍य कारण शरीर में अम्‍लीयता का बढना है ।
अम्‍ल :- अम्‍ल (एसिड) को मोटे हिसाब निम्‍न प्रकार से पहचान सकते है ये स्‍वाद में खटटे होते है एंव हल्‍दी से बनी रोली को नीला कर देती है । अधिकाश धातुओं पर अभिक्रिया कर हाईड्रोजन गैस उत्‍पन्‍न करती है तथा क्षार को उदासीन कर देती है ।
क्षार:- क्षार (एलकलाईन) उन पदाथों को कहते है जिनका विलयन चिकना चिकना होता है तथा ये स्‍वाद में कडुवे होते है ,हल्‍दी से बने रोली को लाल कर देते है और अम्‍लों को उदासीन कर देते है । हमारे शरीर में भी दो तरह के तत्‍व होते है अम्‍ल हाईडोजन आयन को शरीर में बढादेता है क्षारीय भोजन हाइडोजन आयन को कम कर देता है जो शरीर के लिये लाभदायक है ।
पी एच-7 :-  अम्ल एवं क्षार की मात्रा को नापने के लिए एक पैमाना तय किया है जिसे पीएच कहते हैं । किसी पदार्थ मंे अम्ल या क्षार के स्तर को की मानक ईकाइ पीएच है । पीएच को मान 7 से अधिक अर्थात वस्तु क्षारीय है । शुद्ध पानी का पीएच 7 होता है । पीएच बराबर होने पर पाचन व अन्य क्रियाएं सुचारू रूप से होती है । तभी हमारे शरीर की उपापचय क्रिया सही होती है एवं हारमोन्स सही कार्य कर पाते हैं एवं उनका सही स्त्राव होता है । तभी शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है ।
बढ़ता प्रदूषण, रसायनों का सेवन व तनाव से शरीर में अम्लता की मात्रा बढ़ती है । तभी आजकल रक्त मे पीएच 7.4 से कम हो गया है । 7.4 आदर्श पीएच माना जाता है । इससे उपर पीएच का बढ़ना क्षारीय व इसका 7.4 से कम होना एसीडीक होना बताता है। आजकल हमारा रक्त का पीएच 6 या 6.5 रहता है । इसी से कैंसर जैसी घातक बीमारियां होती है । शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो गई है । शरीर में दर्द इसी से रहता है । पित्त का बढ़ना, बुखार आना, चिढ़ना सब अम्लता बढ़ने से होता है ।
निम्बू, अंगुर आदि फल खट्टे होते हैं लेकिन पाचन पर ये क्षारीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं । इनके अन्तर स्वभाव से नही बल्कि पचने पर जो प्रभाव होता है उसके
 कारण क्षारीय माना जाता है । पाचन पर जो खनिज तत्व बनाते हैं व सब क्षारीय होते हैं ।
अम्लीय आहार – मनुष्य द्वारा निर्मित आहार प्रायः अम्लीय होता है जिससे एसीडिटी होती है । जैसे तले-भूने पदार्थ, दाल, चावल, कचैरी, सेव, नमकीन, चाय, काॅफी, शराब, तंबाकु, डेयरी उत्पाद, प्रसंस्कृत भोजन, मांस, चीनी, मिठाईयां, नमक, चासनी युक्त फल, गर्म दूध आदि के सेवन से अम्लता बढ़ती है ।
क्षारीय आहार  प्रकृति द्वारा प्रदत आहार (अपक्वाहार) प्रायः क्षारीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं । जैसे ताजे फल, सब्जियां, अंकुरित अनाज, पानी में भीगे किशमिश, अंजीर, धारोष्ण दूध, फलियां, छाछ, नारियल, खजूर तरकारी, सुखे मेवे, आदि पाचन पर क्षारीय हैं ।ज्वारे का रस क्षारीय होता है । यह हमारे शरीर को एल्कलाइन बनाता है । शरीर के द्रव्यों को क्षारीय बनाता है । खाने का सोड़ा क्षारीय बनाता है ।
बीमारीयों की पहचान:- नाभी चिकित्‍सा में बीमारीयों को पहचानने की कई विधियॉ प्रचलन में है परन्‍तु मुख्‍य रूप से निम्‍न परिक्षण मूल रूप से किये जाते है । 
1- स्‍पर्श परिक्षण :- इस में मरीज के शरीर का स्‍पर्श परिक्षण किया जाता है जिससे शरीर का तापक्रम मालुम होता है , नाडी परिक्षण , दृष्टि परिक्षण मरीज को देखकर ,ऑखों का परिक्षण , जीभ तथा मल मूत्र का परिक्षण जो सामान्‍यत: उनके रंग गंध आदि से पहचाना जाता है । 
2- नाभी परिक्षण :- नाभी चिकित्‍सा में रोग को पहचान ने के लिये मूल परिक्षण है, नाभी परिक्षण, चूंकि नाभि चिकित्‍सकों का मानना है कि मनुष्‍य के समस्‍त प्रकार के रोगों का परिक्षण मात्र नाभी की बनावट उसकी धारीयों एंव नाभी स्‍पंदन से आसानी से पहचाना जा सकता है ।
नाभी चिकित्‍सा में सर्वप्रथम नाभी की बनावट उसके आकार प्रकार  एंव उसकी स्थिति से रोग की पहचान की जाती है ।
3-अम्‍ल क्षार परिक्षण :- इस परिक्षण से यह ज्ञात हो जाता है कि रोगी के शरीर में अम्‍ल व क्षारीयता की क्‍या स्थिति है जो रोग का मूल कारण है । यह परिक्षण उन रोगीयों पर ही किया जा सकता है जिसकी नाभी गहरी होती है एंव उसके अन्‍दर मैल की परत हो तथा उसमें से गंध आती हो । इसका मूल कारण यह है कि हमारे शरीर से निकलने वाले पसीन से शरीर के वे तत्‍व रस या रसायन की मात्राये निरंतर निकलती रहती है चूंकि शरीर में नाभी मात्र एक ऐसा अंग है जहॉ पर पसीना असानी से रूक जाता है एंव सूखने पर वह मैल की परत के रूप में शरीर से चिपका रहता है ,शरीर के तापक्रम एंव निरंतर सम्‍पर्क की वहज से जो तत्‍व शरीर से निकलते रहते है वह उचित परिणाम में सुरक्षित रहते है इससे कभी कभी नाभी में वैक्‍टेरिया भी पलने लगते है ये वेक्‍टेरिया शरीर को किसी भी प्रकार का नुकसान नही पहूचाते बल्‍की शरीर की सुरक्षा करते है इस मैल से एंव वैक्‍टेरिया से शरीर की अम्‍ल एंव क्षारीयता की स्‍थिति का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है जैसे गंध से यदि गंध खटटी है तो अम्‍ल एंव यदि गंध कडुवी या कसैली है तो क्षारीय ।
लिटमस या हल्‍दी परिक्षण :- गहरी नाभी के मरीज की अम्‍ल क्षारीयता का पता लगाने के लिये उसकी नाभी पर पहले शुद्ध पानी डाले फिर उसके अंदर के मैल को किसी साफ वस्‍तु से इस प्रकार धोले ता‍कि अन्‍दर के मैल की परत उसमे अच्‍छी तरह से धुल जाये इसके बाद उसके अन्‍दर हल्‍दी से बनी रोली डाल दे यदि वह लाल हो जाये तो समक्षे शरीर क्षारीय है एंव यदि वह पीली हो जाये तो समक्षे शरीर में अम्‍ल की मात्रा बढ रही है जो घातक है ।
हल्‍दी की रोली की जगह आप चाहे तो लिटमस पेपर को डाल कर भी यह परिक्षण आसानी से कर सकते है ।
पर हल्‍दी शरीर से निकलने वाले इस तत्‍व में अम्‍ल व क्षार यह सूखा हुआ को कर
(अ):- नाभी की स्थिति :-यदि नाभी की स्थिति शरीर के मध्‍य में है तो ऐसा व्‍यक्ति निरोगी होता है । यदि नाभी मध्‍य में न होकर कुछ नीचे को है तो ऐसे व्‍यक्तियों को पेट के नीचे पाये जाने वाले अंगों से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ अधिक होती है । ऊपर की तरुफ है तो उसे पेट के उपर पाये जाने वाले अंगों से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ होती है ।
यदि नाभी की स्थिति बिलकुल मध्‍य में न होकर दायी तरुफ होती है तो ऐसे मरीजो को पेट पर पाये जाने वाले दॉये अंग से सम्‍बन्धित रोग हो सकता है ठीक इसी प्रकार यदि बॉये तरुफ है तो बॉये अंग से सम्‍बन्धित बीमारीयॉ हो सकती है ।
उपरोक्‍त स्थिति का अध्‍ययन पेट पर पाये जाने वाले वृत के अध्‍ययन से किया जा सकता है का आकार
(ब) नाभी की बनावट :-हर व्‍यक्तियों की नाभी की बनावट अलग अलग होती है यहॉ तक की जुडवा संतानों के शरीर की बनावट भले एक सी हो परन्‍तु उनके नाभी का आकार प्रकार व बनावट अलग अलग होगी ,ठीक उसी प्रकार से जैसे हाथों की रेखाये हर व्‍यक्तियों की अलग अलग होती है । नाभी के आकार प्रकार एंव बनावट से नाभी चिकित्‍सक रोग की पहचान करते है ।
यदि नाभी ऊपर को डण्‍टल की तरह से उठी हुई है तो ऐसे व्‍यक्तियों को गैसे अपच आदि की शिकायत हो सकती है । अन्‍दर को धॅसी हुई गहरी नाभी इस प्रकार के रोगी को स्‍वस्‍थ्‍य माना जाता है परन्‍त उक्‍त दोना बनावट के साथ अन्‍य स्थितियों जैसे धारीयों की बनावट एंव नाभी के आकार को भी आधार माना जाता है ।
(स)नाभी धारीयॉ या रेखा:- इसमें नाभी धारीयॉ एंव नाभी बनावट मुख्‍य रूप से है जैसे नाभी की बनावट में यदि नाभी का आकार जिस ओर होता है उस तरुफ के अंग रोगग्रस्‍त होते है इसी प्रकार नाभी धारीयॉ की स्थिति का भी पता लगाया जाता है जैसे नाभी धारी या जिसे नाभी रेखा भी कहते है । यदि नाभी धारी की बनावट या स्थिति जिस ओर इसारा करती है उसी तरुफ के अंगों से सम्‍बन्धित रोग होता है । यह बडी ही सरल विधि है । परन्‍तु इसे बारीकी से समक्षना चाहिये तभी रोग का परिक्षण का परिणाम उचित होगा । इस परिक्षण हेतु नाभी वृत परिक्षण चार्ट को देखिये ।
(द) नाभी धारीयों का रंग :- नाभी धारीयों के मध्‍य रंग व गंध पाई जाती है , दक्ष नाभी चिकित्‍सा रोगों की पहचान नाभी धारीयों के रंग व गंध से आसानी से कर लेता था । नाभी के अन्‍दर से गंध का रोग पहचान में बडा महत्‍व है चूंकि जैसा कि आप सभी इस बात को अच्‍छी तरह से जानते है कि नाभी ही एक ऐसा अंग है जिसमें शरीर से निकलने वाला पसीना या व्‍यर्थ पदार्थ आसानी से कई कई दिनों तक छिपे रहते है यहॉ तक की कई व्‍यक्तियों की नाभी में जो पदार्थ छिपे रहते है वह उनके जन्‍म के समय से ही छिपे रहते है फिर शरीर के तापमान आदि की वहज से उसमें ऐसे वेक्‍टेरिया पनपने लगते है जो शरीर के रक्षक होते है इन वेक्‍टेरिया से शरीर को नुकसान नही होता ।
                              
      नाभी की बनावट हिलमोजी साईस
   Helum हिलम याने गढठा या छिद्र इसे hilus भी कहते है ।
 Ridge रिजिस रिजिस या धारीयॉ जो शरीर में प्राय: हाथ पैरों पर पाई जाती है परन्‍तु यह शरीर के अन्‍य भागों में भी पाई जाती है । जिस प्रकार किसी भी मनुष्‍य के हाथ की धारीयॉ एक दूसरे से नही मिलती ठीक उसी प्रकार नाभी धारीयॉ भी किसी भी व्‍यक्यों में एक सी नही होती ।
 Helix हिलेक्‍स इसकी बनावट पेचदार या धुमती हुई आकृति की होती है । Apex शीर्ष अपेक्‍स की बनावट नोक के समान या शीर्ष की तरह से उठी हुई होती है । इस तरह की नाभी  डण्‍टल की तरह ऊपर को निकली हुई होती है
Umbo गाठ यह प्राय: गाठों की तरह की अकृति की होती है । इस प्रकार की नाभी गहरी न हो कर उपर निकली हुई गाठ की तरह से दिखती है 
Nodeगाठ यह भी  Umbo की तरह फूला हुआ भाग होता है ।
Arch धूमती हुई आकृति शरीर का कोई भी गाठ या छेद्र प्राय: जो धुमाव लिये हुऐ आकृति का होता है उसे आर्च कहते है ।
Deep डीप या गहराई ऐसी नाभी जो किसी गडडे की तरह से गहरी होती है उसे डीप या गहरी नाभी कहते है ।
आई शेप( ऑखों की आकृति ):- इस प्रकार की नाभी अधिक गहरी नही होती परन्‍तु इसकी आकृति को ध्‍यान से देखने पर ऐसा लगता है जैसे ऑखों का आकार हो । इस प्रकार ऑखों की अकृति वाली नाभी भी दो प्रकार की होती है । एक में ऑखों के आकार के अन्‍दर धारीयॉ स्‍पष्‍ट रूप से दिखलाई देती है तो दूसरे प्रकार की नाभी में धारीयॉ नही दिखती इस प्रकार की नाभी गहरी होती है ।