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मंगलवार, 17 जुलाई 2018

नि:शुल्‍क कोर्स घर बैठे करिये


              नि:शुल्‍क कोर्स घर बैठे करिये
    पत्राचार माध्‍यम से हमारे यहॉ और भी कई प्रकार के नि:शुल्‍क कोर्सो का संचालन किया जा रहा है । जैसे
1-चिकित्‍सा सम्‍बन्धित पत्राचार कोर्स :- एक्‍युपंचर ,नेवल एक्‍युपंचर ,नाभी स्‍पंदन से रोगों की पहचान एंव निदान ,ची नी शॉग उपचार, न्‍यूरोथैरापी ,एक्‍युप्रेशर , आईरिस साईस , होम्‍योपंचर चिकित्‍सा ,इलैक्‍ट्रो होम्‍योपैथिक ,
2-स्‍वारोजगार सम्‍बन्धित पत्राचार कोर्स:- ब्‍यूटी पार्लर,ब्‍यूटी क्‍लीनिक ,टैटू आर्ट ,नी शेप पार्लर, पिर्यसिंग पार्लर, बी गम थैरापी ,कपिंग थैरापी ,
 इसकी जानकारीयॉ आप हमारे इन साईस पर प्राप्‍त कर सकते है ।
battely2.blogspot.com
http://beautyclinict.blogspot.in/
xxjeent.blogspot.com
http://krishnsinghchandel.blogspot.in

मोटापा {डॉ0कृष्‍ण भूषण सिंह}


       मोटापा


          


   सेल्‍युलाइट वसा कोशिकाओं की परते होती है , ये त्‍वचा के नीचे पाये जाने वाले उन ऊतकों में पायी जाती है ,जो अन्‍य ऊतकों व अंगों को सहारा देती है और जोडती है । यह वसा अधिकतर महिलाओं के जांधो व नितम्‍बों पर जमा होती है । इसमें त्‍वचा एकदम संतरे के छिलके की तरह खुरदरी दिखाई देती है ।अतरिक्‍त चर्बी और सेल्‍युलाई का सीधा सम्‍बन्‍ध होता है,इसमें बढी हुई वसा कोशिकायें संयोजक ऊतकों पर दबाब बनाती है ,इससे त्‍वचा कोमल दिखायी नही देती है । संयोजक ऊतक  (कलेक्टिव) ईटके बीच की परत को मुलायम व लचीला बनाये रखने के लिये बायों फलेबनाईडस और विटामिन सी  लाभदायक होते है । विशेषज्ञों का मानना है कि शरीर में मौजूद टाक्‍सीन के कारण ऐसा होता है ,लेकिन यह भी देखा गया है कि महिलाओं के कनेक्‍टव टिश्‍यू पुरूषों के मुकाबले काफी दृढ होते है । इसलिये जैसे जैसे महिलाओं का बजन बढता जाता है । कोशिकायें फैलती जाती है ऐसी स्थिति में ये ऊतक की ओर यानी त्‍वचा की ऊपरी परत की तरफ फैलती जाती है ,जिससे त्‍वचा एकदम संतरे के छिलके जैसी दिखलाई देती है । पुरूषों में अकसर बसा का जमाव जांधों पर कम ही देखने को मिलता है । क्‍योकि उनकी बाहरी त्‍वचा काफी मोटी होती है । जिससे स्‍पष्‍ट तौर पर त्‍वचा के नीचे कितना वसा जमा हो रहा है ,इसका पता नही चलता ,लेकिन सेल्‍यूलाईट के पीछे मूल कारण अभी भी विशेषज्ञों के लिये कौतुक का विषय बना हुआ है ।   
     अक्‍सर रक्‍त संचार  इस्‍ट्रजन  बढ जाने के कारण संयोजन ऊतक कमजोर हो जाते है और बॉटर रिटेशन की समस्‍या बढ जाती है । जिस के कारण चर्बी शरीर में जमा होने लगती है ,लसीका प्रवाह ठीक रहे,इसके लिये नियमित व्‍यायाम करना आवश्‍यक है । यदि ऐसा न किया जाये तो निष्‍कासन ठीक से नही हो पाता है ,और जरूरत से ज्‍यादा पानी के कारण त्‍वचा फूल जाती है जिससे रक्‍त ऊतकों तक नही पहुच पाता है । और फ्री रेडिकल्‍स निष्‍कासित नही हो पाते है । अन्‍य बसा या बसा कोशिकाओं की तरह सेल्‍युलाईट फैट भी कम कैलोरी वाला भोजन करने से प्रभावित होता है और इससे शरीर के वसा में कमी आती है लेकिन वसा धटान के बाबजूद फैट सेल्‍स मोजूद रहते है ,और कैलोरी लेने पर तुरन्‍त बढ जाते है । इसलिये सेल्‍यूलाईट को सर्जरी द्वारा खत्‍म करने की सलाह डाक्‍टर दिया करते है ।वैज्ञानिकों का ऐसा भी मानना है कि ,बिना सर्जरी के सैल्‍युलाईट का उपचार संभव नही है ।परन्‍तु अन्‍य वैकल्‍पिक उपचारको का मानना है कि ऐसे ऊतकों व टाक्‍सीन को शरीर की मेटाबोलिक दर व ऊर्जा की खपत को बढाकर कम किया जा सकता है । फैट सेल्‍स जो शरीर में मौजूद है ,उनकी जानकारी को यदि भुला दिया जाये व सेल्‍स के बीच बचे फ्रीरेडिकल्‍स टाक्‍सीन तथा अव्‍यर्थ पदार्थो को यदि शरीर से निकाल दिया जाये तो इस प्रकार की समस्‍या से छुटकारा पाया जा सकता है। इसीलिये चिकित्‍सक योगा व कसरत आदि करने की सलाह देते है ,शरीर व कोशिकाओं के मेटाबोलिक दर व ऊर्जा खपत को बढाकर शरीर से अव्‍यर्थ पदार्थो को निकाला जा सकता है ।
     एन्‍टी आक्‍सीडेंटस हमारे शरीर का फ्रिरेडिकल्‍स से बचाव करता है । एन्‍टी आक्‍सीडेंटस विटामिंस एंजाईम्‍स व हर्बल एक्‍सटैक्‍ट्रस होते है । इसमें विटामिन सी ,विटामिन ई और बीटा कैरोटीन प्रमुख है । ये ताजे फलों सब्‍जीयों जडी बूटीयों आदि में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है । शरीर का रक्‍त संचार ठीक से हो इसके लिये आवश्‍यक है कि रक्‍त संचार को ठीक करने के प्राकृतिक उपाय एव बॉडी की मिसाज, या बॉडी ब्रश भी इसके लिय उपयोगी है । हल्‍के हल्‍के मुलायम ब्रश से बॉडी की मिसाज करने से या असेंशियल आलय से त्‍वचा को माईश्‍चराईज करने से रक्‍त संचार उचित तरिके से होता है । ब्‍युटी क्‍लीनिक में बी गम मिसाज से भी रक्‍त संचार को उचित तरीके से कम किया जा सकता है । चीन की परम्‍परागत एक उपचार विधि है जिसे ची नी शॉग कहते है । मोटापा कम करने में आज कल इसका उपयोग समृद्धसील राष्‍ट्रों में काफी उत्‍साह के साथ किया जा रहा है चूंकि इसके परिणाम काफी आशानुरूप रहे है । इस उपचार विधि का एक और लाभ यह है कि इसमें मोटापे को घटाने के लिये पेट का मिसाज किया जाता है । इससे पेट के अंतरिक महत्‍पूर्ण अंग जिनका उत्‍तदायीत्‍व हमारे शरीर के पाचन तंत्र को उचित तरीके से कार्य लेना है । ची नी शॉग उपचार से पेट के अंतरिक अंग मजबूत होते है एंव मेटाबोलिक की दर को बढाकर अनावश्‍क चर्बी को आशानुरूप कम किया जाता है । चीनी शॉग उपचार से हमारे शरीर की प्रिरेडिकल्‍स एंव टाक्‍सीन आसानी से निकल जाती है इससे त्‍वचा पर झुरूरीया नही पडती साथ ही त्‍वचा स्निग्‍ध मुलाय हो जाती है । ची नी शॉग उपचार से हमारे शरीर की सर्विसिंग हो जाती है ।  प्राकृतिक उपायों में रसेदार भोजन व ताजे फल तथा अधिक पानी पीने एंव व्‍यायाम ,योगा आदि कर शरीर की ऊर्जा व मेटाबोलिक दर को बढायें ताकि शरीर से अव्‍यर्थ पदार्थ बाहर निकल जायें । मॉस पेशियों के अधिक इस्‍तेमाल से रक्‍त व लसिका सर्कुलेशन ठीक रहता है इससे पसीना अधिक आता है त्‍वचा डीटाक्सिफाई होती है एंव चर्बी कम हो जाती है ।    
    अरोमाथैरेपी :- मोटापा घटाने या कम करने में अरोमाथैरेपी के आयल भी उपयोगी है । मिसाज के लिये रोजमेरी फेनल ,असेशियल आयल में दो तीन बूद थोडा सा बादाम का तेल मिलाकर इसे मेन नर्व जो शरीर व अंगों के मध्‍य लाईन पर मौजूद होते है इसे इस्‍टूमुलेट (उत्‍तेजित) करने से शरीर व कोशिकाओं के मेटाबोलिक दर व ऊर्जा की खपत बढती है  एंव शरीर से अत्‍याधिक पसीना निकलता है । इससे शरीर का टॉक्सिन पानी पसीने के माध्‍यम से बाहर आने लगता है जो कि शरीर का मोटापा कर करता है । पेट पर मोटापा कम करने एंव चबी घटाने के प्रमुख छै: पाईन्‍ट है । जिसका विवरण एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में किया गया है । मोटापा कम करने व चर्बी को घटाने एंव मेटाबोलिक दर को बढाने के ये छै: प्रमुख बिन्‍दू है जिसका प्रयोग एक्‍युपंचर ,नेवल एक्‍युपंचर के साथ ची नी शॉग उपचार तथा एक्‍युप्रेशन चिकित्‍सा पद्धतियों के साथ मिसाज थैरापी में किया जाता है । उक्‍त पाईन्‍ट सम्‍पूर्ण शरीर के मोटर नर्व को कवर करते है ,इसीलिये यंत्र निर्माताओं ने मोटापा कम करने व नर्व को इस्‍टुमूलेट करने हेतु कुछ इस प्रकार के यंत्र करने हेतु कुछ इस प्रकार के यंत्रों का निर्माण किया है जिसमें उक्‍त पाईन्‍ट को दबाब देने व स्‍टुमूलेट करने की व्‍यवस्‍था रहती जैसे बटर फलाई एड ,स्‍लीम सोना बेल्‍ट आदि ,बटर फलाई तितली के आकार का छोटा सा यंत्र होता है इसमें पेट पर चिपका देते है इसके स्‍वीच को चालू करने से मशीन में बायबरेशन होता है यह बायबरेशन प्रमुख नर्व केन्‍द्र को उत्‍तेजित करते है इससे शरीर में ऊर्जा की खपत बढती है व शरीर के टाक्‍सीन पसीने के द्वारा बाहर निकलने लगते है । शरीर के इस प्रमुख बिन्‍दूओं को इस्‍टीमुलेट करने के कई तरीके प्रचलन में है । 
एन्‍टी आक्‍सीडेंटस :- एन्‍टी आक्‍सीडेंटस हमारे शरीर को फ्री रेडिकल्‍स से बचाव करता है ,फ्री रेडिकल्‍स एक ऐसा तत्‍व है ,जो शरीर के कोशिकाओं के आक्‍सीकरण क्रिया के बाद बेकार (अव्‍यर्थ पदार्थ) बचा रहता है । शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इसे शरीर से बाहर निकालने का प्रयास करती रहती है ,परन्‍तु इसके बाद भी फ्रीरेडिकल्‍स शरीर में बच रहते है ,इनके जमने से शरीर की अन्‍य कोशिकाओं के कार्यो में अनावश्‍यक अवरोध उत्‍पन्‍न होता है ,मृत सेल्‍स शरीर से बाहर नही निकल पाते ,नये सेल्‍स का निमार्ण अवरूद्ध हो जाता है इससे अन्‍य व्‍यर्थ पदार्थ शरीर से बाहर नही निकल पाते । वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी फ्रीरेडिकल्‍स की वजह से वृद्धावस्‍था होती है । त्‍वचा व मॉसमेशियों में झुरूरीयॉ उत्‍पन्‍न होने लगती है । एण्‍टी आक्‍सीडेंटस को रोका जा सकता है ,सैल्‍युलाईट ट्रीटमेन्‍ट से मॉसपेशियों में जमने बाले ब्‍यर्थ पदार्थो व फ्रीरेडिकल्‍स को बाहर निकालने की कई प्राकृतिक विधियॉ प्रचलन में है । सौंर्द्धय उपचार में इनका प्रयोग सदियों से होता आया है कुछ लोगों में यह गलत धारण है कि सैल्‍युलाईट उपचार से केवल मोटापा कम किया जाता है । परन्‍तु ऐसा नही है कि इसका उपचार से त्‍वचा का ढीलापन उसकी झुरूरीयॉ तथा त्‍वचा की स्‍वाभाविकता को लम्‍बे समय तक कायम रखा जा सकता है ।                                                 








1-मोटापा कर करे हेतु स्‍टो0-25 पांईट:-
 एक्‍युपंचर एंव नेवल एक्‍युपंचर उपचार में मोटापा कम करने एंव पेट की अनावश्‍य चर्बी को कम करने के लिये एस0टी0-25 पांईट का प्रयोग किया जाता है । एक्‍युपेशर उपचार में भी इस पाईट पर गहरा अतिगहरा दबाब देकर पेट का मोटापा या चर्बी को कम किया जाता है ।

  2-मोटापा कम करने के पांच एक्‍युपंचर पाईंट:-
 मोटापे का कारण शरीर के कुछ हिस्‍सों में विशेष कर ऐसे हिस्‍सो में अधिक होता है जहॉ पर शरीर से कम काम लिया जाता है । जैसे पेट ,जांध कुल्‍हे आदि परन्‍तु कुछ व्‍यक्तियो में मोटापा सम्‍पूर्ण शरीर में होता है । एक्‍युपंचर में मोटापे को कम करने ऐवम चबी को घटाने के लिये निम्‍न पाईट पर एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पर पंचरिग कर उचित परिणाम प्राप्‍त किया जा सकता है । वैसे यह नेवल एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में प्रयोग किये जाने वाला पाईट है ।




इस चित्र को ध्‍यान से देखिये इसमें क्रमाक 1 से 6 तक के पाईट है यही है मोटापा व शरीर से अनावश्‍यक चर्बी को कम करने के पाईन्‍ट क्रमाक 1,2,5,6 यह रिन चैनल पर पाये जाने वाले पाईट है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर -1 यह नाभी या रिन-8 से डेढ चुन नीचे रिन चैनल पर पाई जाती है यहां पर रिन -6 पाईन्‍ट होता है
पाईन्‍ट नम्‍बर -2 यह रिन-5 बिन्‍दू है इसकी दूरी नाभी से दो चुन नीचे रिन चैनल पर होती है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर -3 इसकी दुरी पाईन्‍ट नम्‍बर 2 से दो चुन आडी रेखा में दोनो तरफ होती है जहॉ पर स्‍टोमक-27 पाईन्‍ट पाया जाता है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर-4 इसी स्थिति रिन-8 बिन्‍दू या नाभी मध्‍य से दो चुन की दूरी में आडी रेखा में दोनो तरफ होती है । जहॉ पर स्‍टो-25 पाईन्‍ट होता है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर-5 यह बिन्‍दू नाभी या रिन-8 पाईन्‍ट से एक चुन रिन चैनल पर ऊपर की तरफ होती है जहॉ पर रिन-9 पाईन्‍ट होता है ।
पाईन्‍ट नम्‍बर-6 यह बिन्‍दू नाभी या रिन-8 पाईन्‍ट से चार चुन ऊपर रिन चैनल पर पाई जाती है जहॉ पर रिन- 12 पाईन्‍ट होता है ।
 उक्‍त छै: पाईन्‍टस पर पंचरिग कर मोटापे को कम किया जाता है । होम्‍योपंचर उपचार में लक्षणों को ध्‍यान में रख कर उक्‍त पाईट पर होम्‍योपैथिक की शक्तिकृत औषधियों का उपयोग किया जाता है । एक्‍युप्रेशर चिकित्‍सा एंव ची नी शॉग उपचार में उक्‍त पाईट पर दबाब व मिसाज तकनीकी से उपचार कर मोटापे को कम किया जाता है ।

                                डॉ0कृष्‍ण भूषण सिंह
                            म0न0 82 वृन्‍दावन बार्ड
                              गोपालगंज सागर म0प्र0
                              मो0   9926436304

ब्‍यूटी क्‍लीनिक सेलेबरस



                         ब्‍यूटी क्‍लीनिक सेलेबरस

1-ब्‍यूटी क्‍लीनिक क्‍या है , ब्‍युटी पार्लर एंव ब्‍यूटी क्‍लीनिक में अंतर ?
2-बी गम थैरापी ,शरीर से अनावश्‍यक बालों को निकालना ,वेक्‍स ,हेयर रिमूबर   ,थ्रेडिंग,इलैक्‍ट्रोलाईसिस
 नैनसी डेकोरियस विधि से बालों को निकालना , त्‍वचा से अनावश्‍यक बालों को बिना र्दद के निकालने की विधि , त्‍वचा को शून्‍य कर शरीर से अनावश्‍यक बालों को निकालना ,बालों की ग्रोथ कम करने की विधि ,बी गम से गर्भणी रेखाओं (स्‍ट्रेचमार्क ) के निशानों को मिटाना ,वी गम मिसाज थैरापी ।
3-कपिंग उपचार या वेक्‍युम थैरापी ,परम्‍परागत कपिंग,आधुनिक कपिंग ,साधारण कपिंग ,डबल कपिंग यंत्र , नेवल शेपर कपिंग यंत्र , विभिन्‍न अंगों हेतु प्रयोग किये जाने वाले कपिंग यंत्र ,अविकसित अंगों को विकसित करने की विधि ।
4-नाभी स्‍पंदन व परिक्षण से रोग निदान एंव सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं का उपचार ,नेवल कपिंग से सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं का निदान ,नाभी धारीयों एंव नाभी के आकार प्रकार से रोग व सौन्‍र्द्धर्य समस्‍याओं को कैसे पहचाना जाता है तथा इससे किस प्रकार इन समस्‍याओं का उपचार किया जाता है ।   
5- ब्‍युटी प्रेशर क्‍लीनिक
6- ब्‍युटी होम्‍योपंचर उपचार, ब्‍युटी होम्‍योपंचार में प्रयुक्‍त होने वाली निडिल का वर्णन  
7-पंचरिग पाईट का निर्धारण
8-लैर्न्‍ड मार्क विधि क्‍या है इसका विस्‍तृत अध्‍ययन , प्रयौगिक अध्‍ययन ,पंचरिग पाईट निधारण की एनाटामिकल विधि
9-एन और यू का निर्धारण एंव इसका महत्‍व क्‍या है । इसका उपयोग एक्‍युपंचर एंव होम्‍योपंचर उपचार में कैसे किया जाता है  
10-स्‍टोमक (एब्‍डोमिन ) को चार समान भागों में विभाजित करना एंव इस पर चार वृत बनाना तथा इन वृत को आठ एंव सोलह भागों में विभाजित करना उक्‍त प्रयौगिक अध्‍ययन अलग अलग मरीजों पर करते हुऐ इसके फोटोग्राफ तैयार करे ।
11-बारह मैरीडियान का वर्णन ,मरीज पर बारह मेरिडियान बनाने का प्रयोगात्‍मक अध्‍ययन  
12- पंचरिग बिन्‍दुओं का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है ।
13-एब्‍डोमिन या पेट पर पाये जाने वाले शरीर के प्रतिनिधि क्षेत्रों का निर्धारण
14- पंचरिंग करने की विधि ,एक्‍युपंचर विधि ,होम्‍योपंचर विधि
15- नेवल एक्‍युपंचर क्‍या है ,नेवल एक्‍युपंचर से सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं का निदान , नेवल एक्‍युपंचर में प्रयुक्‍त होने वाली निडिल का परिचय
16-ब्‍युटी पंचर में प्रयुक्‍त होने वाले दबाओं का वर्णन
17-मोक्‍सा उपचार, मोक्‍सा उपचार में प्रयोग यंत्र व सामग्रीयों का अध्‍ययन  
18-बाडी आर्ट या टैटू आर्ट क्‍या है आधुनिक जीवन शैली में इसका महत्‍व टैटू में प्रयोग किये जाने वाले यंत्रों का वर्णन ,इंक ,कलर इंक ,
19-ओबेसिटी या (मोटापा), शरीर के अनावश्‍यक मोटापे को कम करने की विधियों का वर्णन कीजिये ।  
20- नी शेप क्‍लीनिक , आधुनिक फैशन में नीशेप क्‍लीनिक का क्‍या महत्‍व है , नीशेप से नेवल को किस प्रकार से आकार दिया जाता है । नेवल कार्क ,नेवल स्प्रिग तथा नेवल पटटीका का वर्णन एंव इसका प्रयौगिक अध्‍ययन
21- आधुनिक फैशन
22-साडी, हिन्‍दुस्‍थान में पहने जाने वाली विभिन्‍न किस्‍म की साडी के पहनाने का वर्णन एंव इसका प्रयौगिक अध्‍ययन कीजिये ।  
23-पिर्यसिंग क्‍या है ,पिर्यसिंग आर्ट , नोज,इयर ,नेवल ,एब्‍डोमिन,लिपस, पिर्यसिग
24-ची नी शॉग उपचार ,ची नी शॉग उपचार से सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं का निदान ,चीनी शॉग स्‍ट्रोक उपचार , ब्‍यूटी होम्‍योपंचर, ची नी शॉग से पेट के अनावश्‍यक मोटापा को कम करना , ची नी शॉग से बॉडी की सर्विसिंग , ची नी शॉग से रोगों की पहचान किस प्रकार से की जाती है
25- मेगनेट थैरापी , एक्‍युप्रेशर थैरापी ,सुजाक थैरापी ,प्राकृतिक उपचार विधियों से सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं का निदान
26-ब्‍युटी क्‍लीनिक में स्‍वारोजगार की संभावना क्‍या है । इसके नि:शुल्‍क व पत्राचार के अध्‍ययन
  पर प्रकाश डालते हुऐ इसके महत्‍व को बतलाये । ई मेल सेवा ,व अल्‍पावधि प्रेक्टिकल प्रशिक्षण या इसके अलग अलग ब्रॉच का अध्‍ययन अपनी सुविधानुसार घर बैठे अध्‍ययन करने से इस व्‍यवसाय पर क्‍या प्रभाव पडेगा । ब्‍युटी क्‍लीनिक का नेटवर्क बिना किसी प्रचार प्रसार या विज्ञापन के कैसे हो जाता है इसका अध्‍ययन व अभिमत
27- विषयों के अनुरूप समस्‍त सैद्धान्‍तिक (थैवरिकल) अध्‍ययन के पश्‍चात इसका प्रयौगिक (प्रेक्टिकल) अध्‍ययन आवश्‍यक है परन्‍तु इसके कुछ विषय ऐसे है जिनका अध्‍ययन कर इसका प्रेक्टिकल किया जा सकता है । एक्‍युपंचर या शरीर में सूई चुभाने का प्रयौगिक ज्ञान आप अपने आस पास के एक्‍युपंचर चिकित्‍सक से प्राप्‍त कर सकते है या जिन नगरों में बीस से पच्‍चीस छात्र होगे वहॉ पर नि:शुल्‍क तीन दिवसी प्रशिक्षण की व्‍यवस्‍था की जा सकती है परन्‍तु जहॉ पर छात्रों की सॉख्‍या इससे कम होगी उन्‍हे जहॉ कही भी नि:शुल्‍क प्रशिक्षण शिविर लगाया जायेगा वहॉ पर उन्‍हे आना होगा । हमारे समन्‍वयक प्राय: सभी नगरों में है आप उनसे भी प्रेक्टिकल प्रशिक्षण प्राप्‍त कर उनसे इसका प्रमाण पत्र लेकर हमारे यहॉ भेज सकते है ताकि आप को थैवरी एक्‍जाम में बैठाला जा सके । अन्‍यथा प्रेक्टिकल प्रशिक्षण के बाद ही आप फाईनल एक्‍जाम में बैठ सकेगे ।  


  

पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान)


            पैथालाजी रोग एंव होम्‍योपैथिक (विकृति विज्ञान)
    
होम्‍योपैथिक एक लक्षण विधान चि‍कित्‍सा पद्धति है इसमें किसी रोग का उपचार नही किया जाता बल्‍की लक्षणों को ध्‍यान में रखकर औषधियों का र्निवाचन किया जाता है । परन्‍तु कई पैथालाजी परिक्षण उपरान्‍त जब यह सिद्ध हो जाता है कि रोगी को बीमारी क्‍या है ऐसी अवस्‍था में लक्षणों को ध्‍यान में रख कर औषधियों का निर्वाचन तो किया ही जसतस है परन्‍तु पैथालाजी के परिणामों को ध्‍यान में रख निर्धारित औषधियों के प्रयोग से परिणाम भी आशानुरूप प्राप्‍त होते है ।

      रक्‍त में पाई जाने वाली कोशिकाओं की बनावट उसकी संख्‍या में वृद्धि या कमी से विभिन्‍न प्रकार के रोग होते है ।
         रक्‍त में तीन प्रकार की कोशिकायें पाई जाती है
1-इथ्रोसाईट (आर बी सी )
2-ल्‍युकोसाईट (डब्‍लू बी सी )
3-थम्‍ब्रोसाईट (प्‍लेटलेटस )
            1-इथ्रोसाईट (आर बी सी ) लाल रक्‍त कणिकायें :-
लाल रक्‍त कणिकायें या  आर बी सी की संख्‍या के घटने बढने की दो अवस्‍थायें निम्‍नानुसार है ।
(अ) इथ्रोसाईटोसिस या पोलीसाईथिमिया (बहु लोहित कोशिका रक्‍तता या लाल रक्‍त कण का बढना) :-जब रक्‍त में आर बी सी की संख्‍या बढ जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोसिस (बहु लोहित कोशिका रक्‍तता या लाल रक्‍त कण का बढना )या पॉलीसाईथिमिया कहते है ।
(ब) इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित कोशिका हास या लाल रक्‍त कण की कम होना) :- जब रक्‍त में लाल रक्‍त कणों की मात्रा घट जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित कोशिका हास या लाल रक्‍त कण की कम होना)कहते है । 
               2-ल्‍युकोसाईट (डब्‍लू बी सी )
      श्‍वेत रक्‍त कोशिकाये या डब्‍लू बी सी की संख्‍या के कम या अधिक होने की दो अवस्‍थाये निम्‍नानुसार है ।
 (अ) ल्‍युकोसायटोसिस (श्‍वेत कोशिका बाहुलता या श्‍ेवत रक्‍त कणों की वृद्धि) :- रक्‍त में जब श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी स्थिति को श्‍वेत कोशिका बहुलता कहते है   स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य में इसकी संख्‍या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्‍तु रोगजनक अवस्‍थाओं में इसकी संख्‍या बढ जाती है । रूधिर कैंसर जिसमें ल्‍यूकोसाईटस की संख्‍या बढ जाती है ।
(ब) ल्‍युकोपेनिया (श्‍ेवत कोशिका अल्‍पता या श्‍ेवत रक्‍त कणों का घटना ):- जब श्‍ेवत रक्‍त कोशिकाओं की संख्‍या घट कर 4000 प्रतिघन मी मी रक्‍त में कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति को श्‍वेत कोशिका अल्‍पता या रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कणों का घटना ल्‍युकोपेनिया कहलाता है ।
ल्‍युकोसायटोसिस :- रक्‍त में जब श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी स्थिति को श्‍वेत कोशिका बहुलता कहते है   स्‍वस्‍थ्‍य मनुष्‍य में इसकी संख्‍या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्‍तु रोगजनक अवस्‍थाओं में इसकी संख्‍या बढ जाती है ।
1-रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता ल्‍यूकोसाईटोसिस :- यदि रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता है तो ऐसी स्थिति में बैराईटा आयोड 30 शक्‍ती में छै: छै: घन्‍टे के अन्‍तराल से प्रयोग करने से उब्‍लू बी सी की मात्रा कम होने लगती है (डॉ0घोष)
 (अ) लाल रक्‍त कणिकाओं का बढना एंव श्‍वेत रक्‍त कणिकाओं का घटना :- डॉ0 घोष ने लिखा है कि बैराईटा म्‍योरटिका से शरीर की लाल रक्‍त कणिकाये घट जाती है और श्‍वेत कण बढ जाते है ।
 (ब) डब्‍लू बी सी बढने पर :- रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कण के बढने पर पायरोजिनम दबा का प्रयोग करना चाहिये ।
 (स) रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता :- यदि रक्‍त में डब्‍लू बी सी की अधिकता के साथ ग्रन्थियों में गांठे हो तो आर्सेनिक एल्‍ब , आर्सैनिक आयोडेट 3 एक्‍स में प्रयोग करना चाहिये ,फेरम फॉस एंव नेट्रम म्‍यूर ,पिकरिक ऐसिड दबाओं का भी लक्षण अनुसार प्रयोग किया जा सकता है । डॉ0बोरिक ने लिखा है कि डब्‍लू बी सी की अधिकता में फेरम फॉस उत्‍तम दबा है उन्‍होने कहॉ है कि रक्‍त कणिका जन्‍य रोग एंव शिथिल मॉस पेशीय जन्‍य रोग आदि में आयरन प्रथम दबा है । लोहे की कमी जनित अवस्‍थाओं में आयरन देने अर्थात फेरम फॉस दवा देने से मॉस पेशियॉ सबल एंव रक्‍त वाहिनीय उपयुक्‍त चाप के साथ संकुचित होकर रक्‍त संचार में सुधार लाती है । यह दबा लाल रक्‍त कणों की कमी ,बजन व शक्ति की कमी में अच्‍छा कार्य करती है । कहने का अर्थ यह है कि रक्‍त में आयरन की कमी होने से रक्‍त सम्‍बन्धित जो भी व्‍याधियॉ होती है उसमें फेरम फॉस अच्‍छा कार्य करती है लाल रक्‍त कणों की कमी एंव श्‍वेत रक्‍त कणों की वृद्धि में इस दबा को 6 या 12 एक्‍स में लम्‍बे समय तक प्रयोग करना चाहिये ।
2-ल्‍युकोपेनिया (श्‍वेत रक्‍त कोशिका अल्‍पता ):- जब श्‍ेवत रक्‍त कोशिकाओं की संख्‍या घट कर 5000 प्रति धन मी मी रक्‍त में कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति को ल्‍युकोपेनिया या श्‍वेत रक्‍त कोशिका अल्‍पता कहते है ।
1-यदि रक्‍त में श्‍वेत रक्‍त कण घटते हो :- यदि रक्‍त में डब्‍लू बी सी घटता हो तो ऐसी स्थिति में क्‍लोरमफेनिकाल दबा का प्रयोग किया जा सकता है । यह दबा प्रारम्‍भ में 30 या इससे भी कम शक्ति की दबा का प्रयोग नियमित एंव लम्‍बे समय तक लेते रहना चाहिये , लाभ होने पर धीरे धीरे उच्‍च से उच्‍चतम शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है
 हीमोग्‍लोबीन :- स्‍वस्‍थ्‍य व्‍यक्ति के शरीर में रक्‍त के लाल पदार्थ को हीमोग्‍लोबीन कहते है हीमोग्‍लोबिन के प्रतिशत का गिर जाना रक्‍त अल्‍पता का कारण बनता है 100 एम एल में रक्‍त रंजक की मात्रा लगभग 15 ग्राम पाई जाती है । रक्‍त में हीमोग्‍लोबीन की कमी
रक्‍त में हीमोग्‍लोबिन की कमी :-यदि रक्‍त में हिमोग्‍लोबिन की कमी है तो फेरम फॉस 3 एक्‍स या 6 एक्‍स शक्ति में प्रयोग करना चाहिये ।
लाल रक्‍त कणों की संख्‍या बढाने हेतु :- रक्‍त में लाल रक्‍त कणों की कमी को हिमोग्‍लोबिन की कमी कहते है । इस अवस्‍था में जिंकम मैटालिकम दबा का प्रयोग किया जा सकता है । कुछ चिकित्‍सक फेरम मेल्‍ट एंव फेरम फॉस दबा को लाल रक्‍त कणों की संख्‍या बढाने हेतु पर्यायक्रम से प्रयोग करते है ।
हिमोफिलीयॉ रक्‍त स्‍त्रावी प्रकृति :- हिमोफिलीयॉ में नेट्रम सिलि,फासफोरस दबाओं का प्रयोग किया जा सकता है ।
    (अ) रक्‍त स्‍त्राव डॉ नैश की इस करिश्‍माई दबा को रक्‍त स्‍त्राव में प्रयोग किया जाता है रक्‍त लाल चमकदार होता है यह शरीर के किसी भी स्‍वाभाविक अंगों से निकले जैसे नकसीर,उल्‍टी,लेट्रींग आदि इसमें मिलीफोलियम क्‍यू (मदर टिंचर) या 30 देने से लाभ होता है ।
रक्‍त में टॉक्‍सीन को दूर करना :- रक्‍त के टॉक्‍सीन को दूर करने के लिये बैनेडियम दवा का प्रयोग करना चाहिये इसके प्रयोग से रक्‍त के दूषित पदार्थ नष्‍ट हो जाते है इस दवा की क्रिया रक्‍त के दूषित पदार्थो को नष्‍ट करना तथा आक्‍सीजन देना है । इस दबा का प्रयोग निम्‍न शक्ति में नियमित व लम्‍बे समय तक प्रयोग करा चाहिये ।
चर्म रोगों में रक्‍त को शुद्ध करने हेतु :- चर्म रोग की दशा में रक्‍त को शुद्ध करने के लिये सार्सापैरिला दबा का प्रयोग किया जा सकता है ।
बार बार फूंसियॉ रक्‍त शोधक :- यदि बार बार फुंसियॉ हो तो गन पाऊडर का प्रयोग करना चाहिये इस दबा के प्रयोग से रक्‍त शुद्ध होता है यह रक्‍त को शक्ति देती है ।
गनोरिया :- डॉ0 सत्‍यवृत जी ने लिखा है कि गनोरिया में कैनाबिस सिटावम सी एम शक्ति में प्रयोग करना चाहिये । इस दबा का असर चार पॉच दिन बाद होता है उन्‍होने लिखा है कि यदि इससे भी परिणाम न मिले तो मदर टिन्‍चर में दबा देना चाहिये ।
प्रोस्‍टेट ग्‍लैन्‍डस :- डॉ0 कैन्‍ट कहते है कि प्रोस्‍टटे ग्‍लैड की डिजिटेलिस प्रमुख दबा है  
त्‍चचा में कही भी तन्‍तुओं की असीम वृद्धि :- त्‍वचा में कही भी तन्‍तुओं की असीम वृद्धि होने पर हाईड्रोकोटाईल 6 या 30 में देना चाहिये ।
नॉखून बाल व हडिडयों के क्षय में :- नॉखून , बाल व हडिडयों के क्षय में फोलोरिक ऐसिड दवा का प्रयोग करना चाहिये ।
गुर्दा रोग (नेफराईटिस) गुर्दा रोग:- जिसमें किडनी के नेफरान याने छन्‍ने में सूजन आ जाती है जिसके कारण रक्‍त छनता नही है एंव पेशाब की निकासी का कार्य उचित ढंग से नही होता ,इससे रक्‍त में यूरिया की मात्रा बढ जाती है । इसे गुर्दे की बीमारी में शरीर में सूजन आ जाती है । गुर्दे की इस बीमारीयों में निम्‍नानुसार दवाओं का चयन किया जा सकता है ।
    (अ) पेशाब में एल्‍बुमिन का आना :- पेशाब में एल्‍बुमिन आने पर हैलिबोरस दबा का प्रयोग किया जा सकता है इस अवस्‍था मे सार्सापेरिला दबा भी उपयोगी है ।
    (ब) पेशाब में यूरिक ऐसिड का बढना :- पेशाब की परिक्षा में क्‍लोराईड अंश घटता और यूरिक ऐसिड परिणाम में बहुत बढ जाये तो बैराईटा म्‍यूर का प्रयोग किया जाना चाहिये ।  
    (स) पेशाब में यूरिया अधिक बनने पर :- यदि पेशाब में यूरिया अधिक आने लगे तो कास्टिकम दबा का प्रयोग करना चाहिये (डॉ0 आर हूजेस) ।
    रक्‍त का एक स्‍थान में संचय होना (हाईपेरीमिया) :- रक्‍त के एक ही स्‍थान पर संचय होने को हाइपेरीमिया कहते है रक्‍त हीनता में कैल्‍केरिया फॉस के बाद फेरम फॉस दवा अच्‍छा कार्य करती है ऐसी स्थिति में फेरम फॉस तथा कैल्‍केरिया सल्‍फ का प्रयोग प्रयार्यक्रम से करना चाहिये ।
                        ऐपेण्डिक्‍स
  एपेण्डिक्‍स पेट में दाहिनी तरफ एक नली होती है जो बडी ऑत से अन्तिम छोर से जुडी होती है इसका प्रयोग मानव शरीर में प्राय: नही होता ,इसका उपयोग ऐसे जानवरों में होता है जो भोजन आदि को स्‍टॉक कर लेते है एंव जुगाली करते हे । इस नलीका में प्रेशर या नलिका कमजोर होने की स्थिति में अधिक दबाओं आदि के कारण भोजन आदि इसमें फॅस कर सडने लगता हो या फिर अधिक दवाब के कारण इसके फटने का डर बना रहता है । यह हमारे शरीर का बेकार अंग है जिसका उपयोग नही है इसके कमजोर होने या भोज्‍य पदार्थो के फॅस जाने से इसमें कई प्रकार के उदभेद उत्‍पन्‍न हो जाते है । इससे पेट में दर्द होता है , यदि नलिका कमजोर हुई तो इसके फॅट जाने का खतरा बढ जाता है यह स्थिति अत्‍याधिक खतरनाक होती है । ऐपिन्‍डस के र्ददों व रोग स्थिति में निम्‍न दबाओं का प्रयोग किया जा सकता है ।
1- एपेण्डिक्‍स में आईरिस टक्‍ट 3 दवा को इस रोग की सर्वोत्‍कष्‍ट दबा है ।
2- एपेण्डिक्‍स की अवस्‍था में ब्राईयोनिया 200 एंव नेट्रम सल्‍फ 30 की दवा का प्रयोग करने पर अच्‍छे परिणा मिलते है । इससे र्दद भी दूर हो जाता है एंव रोग ठीक होने लगता है ब्रायोनिया 200 की दबा की एक खुराक प्रथम सप्‍ताह एं अगले सप्‍ताह एक खुराक 1 एम की देना चाहिये नेट्रम सल्‍फ 30 दबा का प्रयोग दिन में तीन बार लम्‍बे समय तक करना चाहिये । उपरोक्‍त ब्रायोनियॉ की दो मात्राये देने के बाद जब तक अगली दबा का प्रयोग न करे ऐसा करने पर यह देखे कि कब तक र्दद या रोग का आक्रमण दुबारा नही होता यदि सप्‍ताह में हो तो दूसरी मात्रा 1 एम में देना चाहिये ।



         डॉ0 सत्‍यम सिंह चन्‍देल
            (बी एच एम एस)
अध्‍यक्ष जन जागरण एजुकेशनल एण्‍ड हेल्‍थ वेलफेयर
 सोसायटी हीरो हॉण्‍डा शो रूम के पास मकरोनिया सागर म0प्र0
      E Mail- jjsociety1@gmail.com


   



वैकल्पिक चिकित्‍सा : नेवल एक्‍युपंचर

                                                              वैकल्पिक चिकित्‍सा : 
                                                            नेवल एक्‍युपंचर:         
                       नेवल एक्‍युपंचर    
एक्‍युपंचर चिकित्‍सा चीन गणराज्‍य की उपचार विधि है, इस चिकित्‍सा पद्धति में सम्‍पूर्ण शरीर पर एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है , इन निर्धारित बिन्‍दूओं का चयन रोगानुसार कर चिकित्‍सक इन पाईन्‍स पर बारीक सूईया चुभा कर उपचार करते है । सम्‍पूर्ण शरीर में हजारों की सख्‍ॅया में पाये जाने वाले एक्‍युपंचर पाईन्‍स के निर्धारण में चिकित्‍सकों का काफी कठनाईयॉ होती है । नेवल एक्‍युपंचर, एक्‍युपचर चिकित्‍सा की नई खोज है, इसके आविश्‍कार का  श्रेय कास्‍मेटिक सर्जन मास्‍टर आफ चॉग के मेडिसन के प्रोफेसर योंग क्‍यू को जाता है । यह चाईना के एक्‍युपंचर फिलासफी पर आधारित है, जो टी0सी0एम0 अर्थात ट्रेडीशनल चाईनीज मेडिसन कहलाती है । जैसा कि हम सभी इस बात को अच्‍छी तरह से जानते है कि एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में शरीर पर हजारों की संख्‍या में एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है एंव रोग स्थिति के अनुसार चिकित्‍सक इन पाईन्‍ट की खोज करता है फिर उस निश्चित पाईन्‍ट पर एक्‍युपंचर की बारीक सूईयों को चुभा कर उपचार किया जाता है । एक्‍युपंचर के हजारों पाईन्‍ट को खोजना फिर उक्‍त निर्धारित पाईन्‍ट पर रोग स्थिति के अनुसार दस पन्‍द्रह बारीक सूईयो को चुभोना एक जटिल प्रकिया है । डॉ योंग क्‍यू ने महसूस किया कि नेवल व उसके आस पास के क्षेत्रों पर सम्‍पूर्ण शरीर के एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है , जिन्‍हे खोजना आसान है साथ ही किसी भी प्रकार के रोग उपचार हेतु कम से कम सूईयों को चूभाकर सफलतापूर्वक उपचार किया जा सकता है ,उन्‍होने पाया कि पेट पर काफी मात्रा में चर्बी या फेट होता है इससे वहॉ पर सूई को आसानी से चुभाया जा सकता कि उक्‍त फेट पर किसी प्रकार का खतरा नही होता एंव सूई चुभाने से र्दद बिल्‍कुल नही होता । उन्‍होने सन 2000 में अपने इस नये शोध को कई पत्र पऋिकाआं में प्रकाशित कराया साथ ही उन्‍होने इसका प्रशिक्षण कार्य प्रारंम्‍भ कर इसके परिणामों से चिकित्‍स जगत को परिचित कराया । एक्‍युपंचर  चिकित्‍सको को पूर्व की तरह से सम्‍पूर्ण शरीर में हजारों की संख्‍या में पाये जाने वाले एक्‍युपंचर पाईन्‍ट के साथ कम से कम सूईयों को चुभा कर उपचार करने में काफी
सफलता मिली है । नेवेल एक्‍युपरचर नाभी व इसके चारो तरु के क्षेत्रों पर कम से कम सूईयो को चुभाकर उपचार किया जाता है । इस उपचार विधि का एक लाभ और भी था जो एक्‍युपंचर चिकित्‍सक वर्षो से महसूस करते आये है जैसा कि रोग स्थिति के अनुसार सम्‍पूर्ण शरीर में कही भी एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पाये जाते है उपचार हेतु इन पाईन्‍ट पर सूईयॉ चुभाकर उपचार किया जाता है । कभी कभी कई ऐसे भी पाईन्‍ट होते है जिन पर सूईयों का लगाना काफी खतरनाक होता है ,जैसे गले के पास या ऑखों के चारों तरु या फिर सीने के पास खोपडी या कान के पिछले भागों में ,या ऐसे स्‍थानों पर जहॉ पर मसल्‍स कम या त्‍वचा तुलायम होती है , कई नाजुक स्‍थानो पर । नेवल एक्‍युपंचर  में जैसा कि पहले ही बतलाया जा चुका है कि इसमें केवल नाभी एंव नाभी के आस पास चारों तरफ पाये जाने वाले पाईन्‍ट पर सूईया चुभाकर उपचार किया जाता है । पेट पर नेवल (नाभी) के चारों तरफ प्रर्याप्‍त मात्रा में मसल्‍स होते है एंव इस क्षेत्र में खतरनाक हिस्‍से नही होते ,अत: इस भाग पर पंचरिंग करने से किसी भी प्रकार का खतरा नही होता  । जैसा कि एक्‍युपंचर चिकित्‍सा में सम्‍पूर्ण शरीर पर हजारों की संख्‍या में पाये जाने वाले एक्‍युपंचर पाईन्‍ट को खोजने में काफी दिक्‍कत होती है परन्‍तु नेवल एक्‍युपंचर में नाभी एंव उसके चारो तरफ सम्‍पूर्ण शरीर के पाईन्‍ट आसानी से प्राप्‍त हो जाते है ,एक्‍युपंचर उपचार में लम्‍बी बडी बारीक सूईयों का प्रयोग किया जाता है परन्‍तु नेवल एक्‍युपंचर में प्रयोग की जाने वाली सूईया बहुत बारीक होने के साथ उसकी लम्‍बारई आधे से एक इंच होती है ,एक्‍युपंचर उपचार में दस पन्‍द्रह सूईया या रोग स्थिति के अनुसार और भी अधिक उपयोग की जाती है परन्‍तु नेवल एक्‍युपंचर में मात्र एक दो या अधिकतम दस सूईयो का प्रयोग किया जाता है । नेवल एक्‍युपंचर में सूईयो को लगाने से पहले पेट पर कितनी चर्बी है इसका परिक्षण कर चर्बी के अनुपात में पंचरिंग की जाती है ताकि पेट के अंतरिक अंगों को किसी प्रकार की क्षति न हो
 
नेवल एक्‍युपंचर चिकित्‍सकों का मानना है कि शरीर के सम्‍पूर्ण अंतरिक एंव वाहय अंगों के चैनल इस पाईन्‍ट से हो कर गुजरते है जैसा कि हमारे प्राचीन आयुर्वेद में कहॉ गया है कि नाभी से हमारे शरीर की 72000 नाडीयॉ निकलती है । नेवल एक्‍युपंचर सरल होने के साथ पंचरिग सुरक्षित है एंव उपचार हेतु कम से कम बारीक सूईयों का प्रयोग किया जाता है सूईयों को चुभाने पर र्दद बिल्‍कुल नही होता एंव परिणाम जल्‍दी एंव आशानुरूप मिलते है ।  इस चिकित्‍सा पद्धति की समस्‍त जानकारीयॉ गूगल साईड पर नेवल एक्‍युपंचर टाईप कर इसकी फाईले व वीडियों आदि देखे जा सकते है । नेवल एक्‍युपंचर में सौन्‍द्धर्य समस्‍याओं के बहुत अच्‍छे परिणामों को देखते हुऐ आज कल इसका प्रयोग ब्‍युटी पार्लर व क्‍लीनिक आदि में होने लगा है । कई चिकित्‍सा पद्धतियों के चिकित्‍स इसका उपयोग अपने चिकित्‍सालयों में सफलतापूर्वक कर रहे है । एक्‍युपंचर की एक शाखा है होम्‍योपंचर जिसमें होम्‍योपैथिक की शक्तिकृत औषधियों को डिस्‍पोजेबिल बारीक सूईयों में भर कर एक्‍युपंचर पाईन्‍ट पर लगा कर उपचार किया जाता था अब होम्‍योपंचर चिकित्‍सको ने नेवल एक्‍युपंचर के सफल परिणामों को देखते हुऐ नेवल एक्‍युपंचर पाईन्‍टस पर इसका प्रयोग कर सफलता प्राप्‍त कर रहे है । कई समाज सेवीय संस्‍थाये इसका पशिक्षण नि:शुल्‍क उपलब्‍ध कराती है । नेवल एक्‍युपंचर का अध्‍ययन घर बैढे करने हेतु आप इस साईड व ईमेल  पर सम्‍पर्क कर सकते है https://battely2.blogspot.com
http://beautyclinict.blogspot.in/
battely2@gmail.com

                                              डॉ कृष्‍णभूषण सिंह
                                          मो0    9926436304        
                               http://krishnsinghchandel@gmail.in






           नेवल एक्‍युपंचर जिसे नाभी एक्‍युपंचर भी कहते है यह एक सरल उपचार विधि है