पैथालाजी
रोग एंव होम्योपैथिक (विकृति विज्ञान)
रक्त
में पाई जाने वाली कोशिकाओं की बनावट उसकी संख्या में वृद्धि या कमी से विभिन्न
प्रकार के रोग होते है ।
रक्त में तीन प्रकार की कोशिकायें पाई
जाती है
1-इथ्रोसाईट (आर बी
सी )
2-ल्युकोसाईट (डब्लू
बी सी )
3-थम्ब्रोसाईट (प्लेटलेटस
)
1-इथ्रोसाईट (आर बी सी ) लाल रक्त
कणिकायें :-
लाल रक्त कणिकायें या आर बी सी की संख्या के घटने बढने की दो अवस्थायें
निम्नानुसार है ।
(अ) इथ्रोसाईटोसिस
या पोलीसाईथिमिया (बहु लोहित कोशिका रक्तता या लाल रक्त कण का बढना) :-जब रक्त में आर बी सी की संख्या बढ जाती है तो ऐसी स्थिति को
इथ्रोसाईटोसिस (बहु लोहित कोशिका रक्तता या लाल रक्त कण का बढना )या
पॉलीसाईथिमिया कहते है ।
(ब)
इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित कोशिका हास या लाल रक्त कण की कम होना) :- जब रक्त में
लाल रक्त कणों की मात्रा घट जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित
कोशिका हास या लाल रक्त कण की कम होना)कहते है ।
2-ल्युकोसाईट
(डब्लू बी सी )
श्वेत रक्त कोशिकाये या डब्लू बी सी की संख्या के कम या अधिक होने की दो
अवस्थाये निम्नानुसार है ।
(अ) ल्युकोसायटोसिस (श्वेत कोशिका बाहुलता या श्ेवत रक्त
कणों की वृद्धि) :- रक्त में जब श्वेत रक्त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से
ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी स्थिति को श्वेत कोशिका बहुलता कहते है । स्वस्थ्य मनुष्य में इसकी संख्या 5000 से
9000 प्रतिधन मिली होती है परन्तु रोगजनक अवस्थाओं में इसकी संख्या बढ जाती है
। रूधिर कैंसर जिसमें ल्यूकोसाईटस की संख्या बढ जाती है ।
(ब) ल्युकोपेनिया (श्ेवत कोशिका अल्पता या श्ेवत रक्त
कणों का घटना ):- जब श्ेवत रक्त कोशिकाओं की संख्या घट कर 4000 प्रतिघन मी मी रक्त में कम
हो जाती है तो ऐसी स्थिति को श्वेत कोशिका अल्पता या रक्त में श्वेत रक्त
कणों का घटना ल्युकोपेनिया कहलाता है ।
ल्युकोसायटोसिस :- रक्त में जब श्वेत
रक्त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी
स्थिति को श्वेत कोशिका बहुलता कहते है । स्वस्थ्य मनुष्य में इसकी
संख्या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्तु रोगजनक अवस्थाओं में इसकी
संख्या बढ जाती है ।
1-रक्त में डब्लू
बी सी की अधिकता ल्यूकोसाईटोसिस :- यदि रक्त में डब्लू बी सी की
अधिकता है तो ऐसी स्थिति में बैराईटा आयोड 30 शक्ती में छै: छै: घन्टे के अन्तराल
से प्रयोग करने से उब्लू बी सी की मात्रा कम होने लगती है (डॉ0घोष)
(अ) लाल रक्त कणिकाओं
का बढना एंव श्वेत रक्त कणिकाओं का घटना :- डॉ0 घोष ने
लिखा है कि बैराईटा म्योरटिका से शरीर की लाल रक्त कणिकाये घट जाती है और श्वेत
कण बढ जाते है ।
(ब) डब्लू बी सी बढने पर :- रक्त में श्वेत
रक्त कण के बढने पर पायरोजिनम दबा का प्रयोग करना चाहिये ।
(स) रक्त में डब्लू बी सी की अधिकता :- यदि रक्त में डब्लू बी सी की अधिकता के साथ ग्रन्थियों में गांठे हो तो
आर्सेनिक एल्ब , आर्सैनिक आयोडेट 3 एक्स में प्रयोग करना चाहिये ,फेरम फॉस एंव
नेट्रम म्यूर ,पिकरिक ऐसिड दबाओं का भी लक्षण अनुसार प्रयोग किया जा सकता है । डॉ0बोरिक ने लिखा है कि डब्लू बी सी की अधिकता
में फेरम फॉस उत्तम दबा है उन्होने कहॉ है कि रक्त कणिका जन्य रोग एंव शिथिल
मॉस पेशीय जन्य रोग आदि में आयरन प्रथम दबा है । लोहे की कमी जनित अवस्थाओं में
आयरन देने अर्थात फेरम फॉस दवा देने से मॉस पेशियॉ सबल एंव रक्त वाहिनीय उपयुक्त
चाप के साथ संकुचित होकर रक्त संचार में सुधार लाती है । यह दबा लाल रक्त कणों
की कमी ,बजन व शक्ति की कमी में अच्छा कार्य करती है । कहने का अर्थ यह है कि रक्त
में आयरन की कमी होने से रक्त सम्बन्धित जो भी व्याधियॉ होती है उसमें फेरम फॉस
अच्छा कार्य करती है लाल रक्त कणों की कमी एंव श्वेत रक्त कणों की वृद्धि में
इस दबा को 6 या 12 एक्स में लम्बे समय तक प्रयोग करना चाहिये ।
2-ल्युकोपेनिया (श्वेत रक्त
कोशिका अल्पता ):- जब श्ेवत रक्त कोशिकाओं
की संख्या घट कर 5000 प्रति धन मी मी रक्त में कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति को
ल्युकोपेनिया या श्वेत रक्त कोशिका अल्पता कहते है ।
1-यदि रक्त में श्वेत रक्त
कण घटते हो :- यदि रक्त में डब्लू बी
सी घटता हो तो ऐसी स्थिति में क्लोरमफेनिकाल दबा का प्रयोग किया जा सकता है । यह
दबा प्रारम्भ में 30 या इससे भी कम शक्ति की दबा का प्रयोग नियमित एंव लम्बे समय
तक लेते रहना चाहिये , लाभ होने पर धीरे धीरे उच्च से उच्चतम शक्ति का प्रयोग
किया जा सकता है
हीमोग्लोबीन :- स्वस्थ्य व्यक्ति के शरीर में रक्त के लाल
पदार्थ को हीमोग्लोबीन कहते है हीमोग्लोबिन के प्रतिशत का गिर जाना रक्त अल्पता
का कारण बनता है 100 एम एल में रक्त रंजक की मात्रा लगभग 15 ग्राम पाई जाती है ।
रक्त में हीमोग्लोबीन की कमी
रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी :-यदि
रक्त में हिमोग्लोबिन की कमी है तो फेरम फॉस 3 एक्स या 6 एक्स शक्ति में
प्रयोग करना चाहिये ।
लाल रक्त कणों की
संख्या बढाने हेतु :- रक्त में लाल रक्त कणों की कमी को हिमोग्लोबिन की कमी कहते है । इस अवस्था
में जिंकम मैटालिकम दबा का प्रयोग किया जा सकता है । कुछ चिकित्सक फेरम मेल्ट
एंव फेरम फॉस दबा को लाल रक्त कणों की संख्या बढाने हेतु पर्यायक्रम से प्रयोग
करते है ।
हिमोफिलीयॉ रक्त स्त्रावी
प्रकृति :- हिमोफिलीयॉ में नेट्रम सिलि,फासफोरस दबाओं का प्रयोग किया जा सकता है ।
(अ) रक्त स्त्राव डॉ नैश की इस
करिश्माई दबा को रक्त स्त्राव में प्रयोग किया जाता है रक्त लाल चमकदार होता
है यह शरीर के किसी भी स्वाभाविक अंगों से निकले जैसे नकसीर,उल्टी,लेट्रींग आदि
इसमें मिलीफोलियम क्यू (मदर टिंचर) या 30 देने से लाभ होता है ।
रक्त में टॉक्सीन को दूर करना :- रक्त के टॉक्सीन
को दूर करने के लिये बैनेडियम दवा का प्रयोग करना चाहिये इसके प्रयोग से रक्त के
दूषित पदार्थ नष्ट हो जाते है इस दवा की क्रिया रक्त के दूषित पदार्थो को नष्ट
करना तथा आक्सीजन देना है । इस दबा का प्रयोग निम्न शक्ति में नियमित व लम्बे
समय तक प्रयोग करा चाहिये ।
चर्म रोगों में रक्त
को शुद्ध करने हेतु :- चर्म रोग की दशा में रक्त को
शुद्ध करने के लिये सार्सापैरिला दबा का प्रयोग किया जा सकता है ।
बार बार फूंसियॉ रक्त
शोधक :- यदि बार बार फुंसियॉ हो तो गन पाऊडर का प्रयोग करना
चाहिये इस दबा के प्रयोग से रक्त शुद्ध होता है यह रक्त को शक्ति देती है ।
गनोरिया :- डॉ0 सत्यवृत जी ने लिखा है कि गनोरिया में कैनाबिस सिटावम सी एम शक्ति में
प्रयोग करना चाहिये । इस दबा का असर चार पॉच दिन बाद होता है उन्होने लिखा है कि
यदि इससे भी परिणाम न मिले तो मदर टिन्चर में दबा देना चाहिये ।
प्रोस्टेट ग्लैन्डस
:- डॉ0 कैन्ट कहते है कि प्रोस्टटे ग्लैड की
डिजिटेलिस प्रमुख दबा है
त्चचा में कही भी
तन्तुओं की असीम वृद्धि :- त्वचा में कही भी तन्तुओं की असीम वृद्धि होने पर हाईड्रोकोटाईल 6 या 30
में देना चाहिये ।
नॉखून बाल व हडिडयों
के क्षय में :- नॉखून , बाल व हडिडयों के क्षय में फोलोरिक ऐसिड दवा का प्रयोग करना चाहिये
।
गुर्दा रोग
(नेफराईटिस) गुर्दा रोग:- जिसमें किडनी के नेफरान याने छन्ने में सूजन आ जाती है जिसके कारण रक्त
छनता नही है एंव पेशाब की निकासी का कार्य उचित ढंग से नही होता ,इससे रक्त में
यूरिया की मात्रा बढ जाती है । इसे गुर्दे की बीमारी में शरीर में सूजन आ जाती है
। गुर्दे की इस बीमारीयों में निम्नानुसार दवाओं का चयन किया जा सकता है ।
(अ) पेशाब में एल्बुमिन का आना :- पेशाब में एल्बुमिन आने पर हैलिबोरस दबा का प्रयोग किया जा सकता है इस
अवस्था मे सार्सापेरिला दबा भी उपयोगी है ।
(ब) पेशाब में यूरिक
ऐसिड का बढना :- पेशाब की परिक्षा में क्लोराईड अंश घटता और यूरिक ऐसिड परिणाम में बहुत बढ
जाये तो बैराईटा म्यूर का प्रयोग किया जाना चाहिये ।
(स) पेशाब में
यूरिया अधिक बनने पर :- यदि पेशाब में यूरिया अधिक आने लगे तो कास्टिकम दबा का प्रयोग करना चाहिये
(डॉ0 आर हूजेस) ।
रक्त का एक स्थान में संचय होना
(हाईपेरीमिया) :- रक्त के एक ही स्थान पर संचय होने को हाइपेरीमिया कहते है रक्त हीनता में
कैल्केरिया फॉस के बाद फेरम फॉस दवा अच्छा कार्य करती है ऐसी स्थिति में फेरम
फॉस तथा कैल्केरिया सल्फ का प्रयोग प्रयार्यक्रम से करना चाहिये ।
ऐपेण्डिक्स
एपेण्डिक्स पेट में दाहिनी तरफ एक नली होती है
जो बडी ऑत से अन्तिम छोर से जुडी होती है इसका प्रयोग मानव शरीर में प्राय: नही
होता ,इसका उपयोग ऐसे जानवरों में होता है जो भोजन आदि को स्टॉक कर लेते है एंव
जुगाली करते हे । इस नलीका में प्रेशर या नलिका कमजोर होने की स्थिति में अधिक
दबाओं आदि के कारण भोजन आदि इसमें फॅस कर सडने लगता हो या फिर अधिक दवाब के कारण
इसके फटने का डर बना रहता है । यह हमारे शरीर का बेकार अंग है जिसका उपयोग नही है
इसके कमजोर होने या भोज्य पदार्थो के फॅस जाने से इसमें कई प्रकार के उदभेद उत्पन्न
हो जाते है । इससे पेट में दर्द होता है , यदि नलिका कमजोर हुई तो इसके फॅट जाने
का खतरा बढ जाता है यह स्थिति अत्याधिक खतरनाक होती है । ऐपिन्डस के र्ददों व
रोग स्थिति में निम्न दबाओं का प्रयोग किया जा सकता है ।
1- एपेण्डिक्स में आईरिस टक्ट 3 दवा को इस रोग की सर्वोत्कष्ट दबा है ।
2- एपेण्डिक्स की अवस्था में ब्राईयोनिया 200 एंव नेट्रम सल्फ 30 की दवा
का प्रयोग करने पर अच्छे परिणा मिलते है । इससे र्दद भी दूर हो जाता है एंव रोग
ठीक होने लगता है ब्रायोनिया 200 की दबा की एक खुराक प्रथम सप्ताह एं अगले सप्ताह
एक खुराक 1 एम की देना चाहिये नेट्रम सल्फ 30 दबा का प्रयोग दिन में तीन बार लम्बे
समय तक करना चाहिये । उपरोक्त ब्रायोनियॉ की दो मात्राये देने के बाद जब तक अगली
दबा का प्रयोग न करे ऐसा करने पर यह देखे कि कब तक र्दद या रोग का आक्रमण दुबारा
नही होता यदि सप्ताह में हो तो दूसरी मात्रा 1 एम में देना चाहिये ।
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
(बी एच एम एस)
अध्यक्ष जन जागरण एजुकेशनल एण्ड हेल्थ वेलफेयर
सोसायटी हीरो
हॉण्डा शो रूम के पास मकरोनिया सागर म0प्र0
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