होम्योपैथिक के चमत्कार भाग-2
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल बी0एच0एम0एस0
अध्यक्ष जन जागरण ऐजुकेशनल एण्ड हेल्थ वेलफेयर सोसायटी सागर
म0प्र0
1-पैथालाजी रोग एंव होम्योपैथिक (विकृति
विज्ञान)
क्र0
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विषय
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दवाये
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पृ0क्र0
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1
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1-रक्त में
डब्लू बी सी की अधिकता ल्यूकोसाईटोसिस
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बैराईटा आयोड
30
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2
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लाल रक्त
कणिकाओं का बढना एंव श्वेत रक्त कणिकाओं का घटना
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बैराईटा म्योरटिका
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3
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डब्लू बी सी
बढने पर
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पायरोजिनम
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4
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रक्त में डब्लू बी सी की अधिकता
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आर्सेनिक एल्ब , आर्सैनिक आयोडेट फेरम फॉस एंव नेट्रम म्यूर ,पिकरिक
ऐसिड
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5
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यदि रक्त में श्वेत रक्त कण घटते हो
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क्लोरमफेनिकाल
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6
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रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी
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फेरम फॉस 3 एक्स
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7
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लाल रक्त
कणों की संख्या बढाने हेतु
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जिंकम
मैटालिकम फेरम मेल्ट एंव फेरम फॉस
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8
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हिमोफिलीयॉ
रक्त स्त्रावी प्रकृति
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नेट्रम
सिलि,फासफोरस
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9
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रक्त स्त्राव
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मिलीफोलियम क्यू
(मदर टिंचर)
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10
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रक्त में
टॉक्सीन को दूर करना
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बैनेडियम
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11
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चर्म रोगों
में रक्त को शुद्ध करने हेतु
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सार्सापैरिला
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12
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बार बार फूंसियॉ
रक्त शोधक
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गन पाऊडर
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13
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गनोरिया
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कैनाबिस
सिटावम सी एम
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14
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प्रोस्टेट ग्लैन्डस
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डिजिटेलिस
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15
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त्चचा में
कही भी तन्तुओं की असीम वृद्धि
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हाईड्रोकोटाईल
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16
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नॉखून बाल व
हडिडयों के क्षय में
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फोलोरिक ऐसिड
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17
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(अ) पेशाब में
एल्बुमिन का आना
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सार्सापेरिला
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18
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(ब) पेशाब में
यूरिक ऐसिड का बढना
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बैराईटा म्यूर
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19
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(स) पेशाब में
यूरिया अधिक बनने पर
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कास्टिकम
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पेशाब में यूरिक ऐसिड
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Thlaspi
BP Q
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20
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मूत्र में यूरिया फास्फेट
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एल्फाएल्फा क्यू
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21
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रक्त का एक
स्थान में संचय होना (हाईपेरीमिया)
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कैल्केरिया
फॉस, कैल्केरिया सल्फ
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गठिया में
यूरिक ऐसिड का जमना
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आर्टिका यूरेन्स
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22
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रक्त में यूरिक ऐसिड बढने पर
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आर्टिका यूरेंस,बेंजोइक ऐसिड
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23
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शरीर में आक्सीजन
की कमी होने पर
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फेरम फॉस काली सल्फ
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24
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शरीर में नये
सेल्स का निर्माण न होना
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कैल्केरिया फॉस
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25
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ई एस आर बढने
पर
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थयलोफोरा इंडिका 3 एक्स
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26
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ई एस आर कम
करने के लिये
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अश्वगंधा क्यू
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27
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लाल रक्त
कणों की वृद्दि के लिये
|
अश्वगंधा क्यू
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28
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पेशाब में
कैल्शिम आक्जेलेट आना
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नाईट्रो म्यूरियेटिक ऐसिड क्यू
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29
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रैबिज :-
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चिकित्सा अनुसंधान
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30
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क्लोरोफार्म के सूंधने के दोष
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ऐसिटिक एसिड
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31
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रक्त में ई0एस0आर0 कम करने के
लिये
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(अश्वगंधा क्यू0)
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32
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मूत्र संक्रमण
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बी कोली
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1-पैथालाजी रोग एंव होम्योपैथिक
(विकृति विज्ञान)
होम्योपैथिक एक
लक्षण विधान चिकित्सा पद्धति है इसमें किसी रोग का उपचार नही किया जाता बल्की
लक्षणों को ध्यान में रखकर औषधियों का र्निवाचन किया जाता है । परन्तु कई
पैथालाजी परिक्षण उपरान्त जब यह सिद्ध हो जाता है कि रोगी को बीमारी क्या है ऐसी
अवस्था में लक्षणों को ध्यान में रख कर औषधियों का निर्वाचन तो किया जा सकता है
परन्तु पैथालाजी के परिणामों को ध्यान में रख निर्धारित औषधियों के प्रयोग से
परिणाम भी आशानुरूप प्राप्त होते है ।
रक्त में पाई जाने वाली कोशिकाओं की बनावट
उसकी संख्या में वृद्धि या कमी से विभिन्न प्रकार के रोग होते है ।
रक्त में तीन प्रकार की कोशिकायें पाई
जाती है
1-इथ्रोसाईट (आर बी सी )
2-ल्युकोसाईट (डब्लू बी सी )
3-थम्ब्रोसाईट (प्लेटलेटस )
1-इथ्रोसाईट (आर बी सी ) लाल रक्त
कणिकायें :-
लाल रक्त कणिकायें या आर बी सी की संख्या के घटने बढने की दो अवस्थायें
निम्नानुसार है ।
(अ) इथ्रोसाईटोसिस
या पोलीसाईथिमिया (बहु लोहित कोशिका रक्तता या लाल रक्त कण का बढना) :-जब रक्त में आर
बी सी की संख्या बढ जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोसिस (बहु लोहित कोशिका
रक्तता या लाल रक्त कण का बढना )या पॉलीसाईथिमिया कहते है ।
(ब)
इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित कोशिका हास या लाल रक्त कण की कम होना) :- जब रक्त में
लाल रक्त कणों की मात्रा घट जाती है तो ऐसी स्थिति को इथ्रोसाईटोपैनिया (लोहित
कोशिका हास या लाल रक्त कण की कम होना)कहते है ।
2-ल्युकोसाईट (डब्लू0 बी0 सी0 )
श्वेत रक्त कोशिकाये या डब्लू बी सी की संख्या के कम या अधिक होने की दो
अवस्थाये निम्नानुसार है ।
(अ) ल्युकोसायटोसिस (श्वेत कोशिका बाहुलता या श्ेवत रक्त
कणों की वृद्धि) :- रक्त में जब श्वेत रक्त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से
ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी स्थिति को श्वेत कोशिका बहुलता कहते है । स्वस्थ्य मनुष्य में इसकी
संख्या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्तु रोगजनक अवस्थाओं में इसकी
संख्या बढ जाती है । रूधिर कैंसर जिसमें ल्यूकोसाईटस की संख्या बढ जाती है ।
(ब) ल्युकोपेनिया (श्ेवत कोशिका अल्पता या श्ेवत रक्त
कणों का घटना ):- जब श्ेवत रक्त कोशिकाओं की संख्या घट कर 4000 प्रतिघन मी मी रक्त में कम
हो जाती है तो ऐसी स्थिति को श्वेत कोशिका अल्पता या रक्त में श्वेत रक्त
कणों का घटना ल्युकोपेनिया कहलाता है ।
ल्युकोसायटोसिस :- रक्त में जब श्वेत
रक्त कोशिकाओं की मात्रा बढ कर 10000 प्रतिधन मि मी से ऊपर पहूंच जाती है तो ऐसी
स्थिति को श्वेत कोशिका बहुलता कहते है । स्वस्थ्य मनुष्य में इसकी
संख्या 5000 से 9000 प्रतिधन मिली होती है परन्तु रोगजनक अवस्थाओं में इसकी
संख्या बढ जाती है ।
1-रक्त में डब्लू
बी सी की अधिकता ल्यूकोसाईटोसिस बैराईटा आयोड 30 :- यदि रक्त में डब्लू बी सी की अधिकता है तो ऐसी स्थिति में बैराईटा आयोड
30 शक्ती में छै: छै: घन्टे के अन्तराल से प्रयोग करने से डब्लू बी सी की
मात्रा कम होने लगती है (डॉ0घोष)
2 लाल रक्त कणिकाओं
का बढना एंव श्वेत रक्त कणिकाओं का घटना बैराईटा म्योरटिका :- डॉ0 घोष ने लिखा है कि बैराईटा
म्योरटिका से शरीर की लाल रक्त कणिकाये घट जाती है और श्वेत कण बढ जाते है ।
3-डब्लू बी सी की
संख्या बढने पर (बेजेनम-कोल नेफथा):- यदि शरीर में श्वेत रक्त कणों
की संख्या बढ गई हो एंव लाल रक्त कणों की संख्या कम हो गयी हो तो इस दवा का
प्रयोग करना चाहिये ।
4- डब्लू बी सी
बढने पर (पायरोजिनम) :- रक्त में श्वेत रक्त कण के बढने पर पायरोजिनम दबा का प्रयोग करना चाहिये
,
5- रक्त में डब्लू बी सी की
अधिकता (आर्सेनिक एल्ब,
आर्सैनिक आयोडेट, फेरम फॉस एंव नेट्रम म्यूर ,पिकरिक ऐसिड) :- यदि रक्त में डब्लू बी सी की अधिकता के साथ
ग्रन्थियों में गांठे हो तो आर्सेनिक एल्ब , आर्सैनिक आयोडेट 3 एक्स में प्रयोग
करना चाहिये ,फेरम फॉस एंव नेट्रम म्यूर ,पिकरिक ऐसिड दबाओं का भी लक्षण अनुसार
प्रयोग किया जा सकता है । डॉ0बोरिक ने लिखा है कि
डब्लू बी सी की अधिकता में फेरम फॉस उत्तम दबा है, उन्होने कहॉ है कि रक्त
कणिका जन्य रोग एंव शिथिल मॉस पेशीय जन्य रोग आदि में आयरन प्रथम दबा है । लोहे
की कमी जनित अवस्थाओं में आयरन देने अर्थात फेरम फॉस दवा देने से मॉस पेशियॉ सबल
एंव रक्त वाहिनीय उपयुक्त चाप के साथ संकुचित होकर रक्त संचार में सुधार लाती
है । यह दवा लाल रक्त कणों की कमी ,बजन व शक्ति की कमी में अच्छा कार्य करती है
। कहने का अर्थ यह है कि रक्त में आयरन की कमी होने से रक्त सम्बन्धित जो भी व्याधियॉ
होती है उसमें फेरम फॉस अच्छा कार्य करती है लाल रक्त कणों की कमी एंव श्वेत
रक्त कणों की वृद्धि में इस दबा को 6 या 12 एक्स में लम्बे समय तक प्रयोग करना
चाहिये ।
6-ल्युकोपेनिया (श्वेत रक्त
कोशिका अल्पता ):- जब श्ेवत रक्त कोशिकाओं
की संख्या घट कर 5000 प्रति धन मी मी रक्त में कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति को
ल्युकोपेनिया या श्वेत रक्त कोशिका अल्पता कहते है ।
7-यदि रक्त में श्वेत रक्त
कण घटते हो (क्लोरमफेनिकाल) :- यदि रक्त में डब्लू बी सी घटता हो तो ऐसी स्थिति
में क्लोरमफेनिकाल दबा का प्रयोग किया जा सकता है । यह दबा प्रारम्भ में 30 या
इससे भी कम शक्ति की दबा का प्रयोग नियमित एंव लम्बे समय तक लेते रहना चाहिये ,
लाभ होने पर धीरे धीरे उच्च से उच्चतम शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है
8- हीमोग्लोबीन :-स्वस्थ्य
व्यक्ति के शरीर में रक्त के लाल पदार्थ को हीमोग्लोबीन कहते है हीमोग्लोबिन
के प्रतिशत का गिर जाना रक्त अल्पता का कारण बनता है ,100 एम एल में रक्त रंजक
की मात्रा लगभग 15 ग्राम पाई जाती है । रक्त में हीमोग्लोबीन की कमी
9- रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी (फेरम फॉस 3 एक्स):-यदि रक्त में हिमोग्लोबिन
की कमी हो रही है या हो गयी है तो ऐसी स्थिती में बायोकेमिक दवा फेरम फॉस 3 एक्स या 6 एक्स शक्ति का प्रयोग
किया जा सकता है में दिन में तीन बार नियमित प्रयोग करना चाहिये । वैसे अनुभवों से
ज्ञात हुआ है कि हीमोग्लोबिन की कमी होने पर फेरम फॉस 30 तथा फेरम मेल्ट 30 दवा
का प्रर्याक्रम से प्रयोग करने पर सफलता जल्दी एंव आशनुरूप मिलती ,इन दोनो दवाओं
के साथ काली सल्फ30 दवा देने से रक्त में आक्सीजन व लोह तत्व की मात्रा सम्पूर्ण
शरीर में या जहॉ उसको आवश्यकता होती है असानी से पहूंच जाती है ।
10- लाल रक्त कणों
की संख्या बढाने हेतु (जिंकम मैटालिकम फेरम मेल्ट एंव फेरम फॉस):-रक्त में लाल रक्त कणों की कमी
को हिमोग्लोबिन की कमी कहते है । इस अवस्था में जिंकम मैटालिकम दबा का प्रयोग
किया जा सकता है । कुछ चिकित्सक फेरम मेल्ट एंव फेरम फॉस दबा को लाल रक्त कणों
की संख्या बढाने हेतु पर्यायक्रम से प्रयोग करते है । फेरम मेल्ट 30 पोटेंसी में
एंव फेरम फास 6 एक्स या 12 एक्स में प्रर्याक्रम से दिन में तीन बार प्रयोग करना
चहिये ।
11- हिमोफिलीयॉ रक्त
स्त्रावी प्रकृति (नेट्रमसिलि, फासफोरस :- हिमोफिलीयॉ में
नेट्रम सिलि,फासफोरस ):- रक्त स्त्रावी प्रकृति के मरीजों (हिमोफिलियॉ) में शरीर
से रक्त स्त्राव होता रहता है यह शरीर के किसी भी स्थान से हो सकता है जैसे नॉक
से मुंह या पेशाब तथा मल के रास्ते आदि से ।
ऐसे मरीजो को फरम फॉस 30 शक्ति में दिन में तीन बार देने से वैसे तो लाभ हो
जाता है परन्तु यदि इससे भी लाभ न हो तो उक्त दवाओं को लक्षण के अनुसार देना
चाहिये ।
12-
रक्त स्त्राव (मिलीफोलियम क्यू):-
डॉ नैश की इस करिश्माई दबा को रक्त स्त्राव में प्रयोग किया जाता है रक्त लाल
चमकदार होता है, यह शरीर के किसी भी स्वाभाविक अंगों से निकले जैसे नकसीर, उल्टी,
लेट्रींग आदि इसमें मिलीफोलियम क्यू (मदर टिंचर) या 30 दिन में तीन बार या आवश्यकतानुसार
देने से लाभ होता है ।
13-
रक्त में टॉक्सीन को दूर करना (बैनेडियम) :- रक्त के टॉक्सीन को दूर करने के लिये बैनेडियम दवा का प्रयोग करना चाहिये इसके
प्रयोग से रक्त के दूषित पदार्थ नष्ट हो जाते है इस दवा की क्रिया रक्त के
दूषित पदार्थो को नष्ट करना तथा आक्सीजन देना है । इस दबा का प्रयोग निम्न
शक्ति में नियमित व लम्बे समय तक प्रयोग करा चाहिये ।
14- चर्म रोगों में
रक्त को शुद्ध करने हेतु (सार्सापैरिला) :- चर्म रोग की दशा में रक्त को शुद्ध करने के लिये सार्सापैरिला दवा का
प्रयोग मदर टिंचर या 6 या 30 पोटेंसी मेंकिया जा सकता है ।
15- बार बार फूंसियॉ
रक्त शोधक (गन पाऊडर):- यदि बार बार फुंसियॉ होती हो तो गन पाऊडर
का प्रयोग करना चाहिये, इस दबा के प्रयोग से रक्त शुद्ध होता है यह रक्त को
शक्ति देती है । इस दवा का प्रयोग 3-एक्स या 6-एक्स या 30 पोटेसी में दिन में
तीन बार करना चाहिये ।
16- गनोरिया (कैनाबिस सिटावम सी एम) :- डॉ0 सत्यवृत जी ने लिखा है कि गनोरिया में कैनाबिस सिटावम सी एम शक्ति में
प्रयोग करना चाहिये । इस दबा का असर चार पॉच दिन बाद होता है उन्होने लिखा है कि
यदि इससे भी परिणाम न मिले तो मदर टिन्चर में दवा देना चाहिये ।
17- प्रोस्टेट ग्लैन्डस (डिजिटेलिस) :- डॉ0 कैन्ट
कहते है कि प्रोस्टटे ग्लैड की डिजिटेलिस प्रमुख दबा है । अत: प्रोस्टेट ग्लैन्डस
की बीमारी मे डिजिटेलिस दवा का प्रयोग 30 शक्ति में कुछ दिनों तक नियमित करना
चाहिये ।
18- त्चचा में कही
भी तन्तुओं की असीम वृद्धि (हाईड्रोकोटाईल) :- कई मरीजो के त्वचा में कही भी तन्तुओं की असीम वृद्धि होने लगती है ऐसी स्थिति में हाईड्रोकोटाईल 6 या 30 में दिन में तीन बार देना
चाहिये ।
19- नॉखून बाल व
हडिडयों के क्षय में (फोलोरिक ऐसिड) :- नॉखून , बाल व हडिडयों के
क्षय जैसी स्थिति में फोलोरिक ऐसिड दवा का प्रयोग करना चाहिये । इस दवा का प्रयोग
30 शक्ति में दिन में तीन बार या 200 शक्ति की दवा का प्रयोग तीन दिन या सप्ताह
में एक बार देना चाहिये इसके साथ यदि कैल्केरिया फॉस एंव कैल्केरिया फ्लोर 6 या
12 का प्रयोग प्रर्यायक्रम से दिन में तीन बार करना चाहिये इससे परिणाम जल्दी
मिलने लगते है ।
20-गुर्दा रोग
(नेफराईटिस) गुर्दा रोग जिसमें किडनी के नेफरान याने छन्ने में
सूजन आ जाती है जिसके कारण रक्त छनता नही है एंव पेशाब की निकासी का कार्य उचित
ढंग से नही होता ,इससे रक्त में यूरिया की मात्रा बढ जाती है । इसे गुर्दे की
बीमारी में शरीर में सूजन आ जाती है । गुर्दे की इस बीमारीयों में निम्नानुसार
दवाओं का चयन किया जा सकता है ।
21- पेशाब में एल्बुमिन
का आना (हैलिबोरस, सार्सापेरिला):- पेशाब में एल्बुमिन
आने पर हैलिबोरस 30 दबा का प्रयोग किया जा सकता है , इस अवस्था मे सार्सापेरिला
क्यू या 30 शक्ति का प्रयोग दिन में तीन बार करना चाहिये । वैसे नेफराईटिस रोग
में मैथेलीन ब्लू दवा का भी उपयोग होता है ।
22- पेशाब में यूरिक ऐसिड का बढना (बैराईटा म्यूर):- पेशाब की
पैथालाजी टेस्ट में क्लोराईड का अंश घटता हो एंव यूरिक ऐसिड परिणाम में बहुत बढ
जाये तो बैराईटा म्यूर 30 या 200 का प्रयोग रोग की स्थिति अनुसार करना चाहिये ।
23-पेशाब में यूरिक ऐसिड (Thlaspi BP Q) :- पेशाब में यूरिक ऐसिड होने पर Thlaspi BP Q सर्वश्रेष्ट दबा है
24- पेशाब में यूरिया अधिक बनने पर (कास्टिकम) :- यदि पेशाब में यूरिया अधिक आने लगे तो कास्टिकम दबा का प्रयोग करना चाहिये
(डॉ0 आर हूजेस) ।
25-मूत्र में यूरिया
फास्फेट (एल्फाएल्फा क्यू) :- मूत्र में यूरिया फास्फेट
रहने पर एल्फाएल्फा क्यू का प्रयोग दिन में तीन बार या आवश्यकतानुसार करना
चाहिये इससे यूरिया फास्फेट कम होने लगता है ।
26- रक्त का एक स्थान
में संचय होना (हाईपेरीमिया) कैल्केरिया फॉस कैल्केरिया सल्फ :- रक्त के एक ही स्थान पर संचय होने को हाइपेरीमिया कहते है रक्त की कमी
में कैल्केरिया फॉस के बाद फेरम फॉस दवा अच्छा कार्य करती है ऐसी स्थिति में
फेरम फॉस तथा कैल्केरिया सल्फ का प्रयोग प्रयार्यक्रम से करना चाहिये । इससे रक्त
के एक स्थान पर संचय होने पर लाभ होता है । उक्त दवा का प्रयोग बायोकेमिक शक्ति
में या होम्योपैथिक की शक्ति में आवश्यकतानुसार किया जा सकता है ।
27-गठिया में यूरिक
ऐसिड का जमना-(आर्टिका यूरेन्स)- डॉ0धोष लिखते है कि गठिया या
वात रोग में यूरेट आफ सोडा पैदा होता है आर्टिका यूरेन्स मदर टिंचर की पॉच पॉच
बूद दिन में तीन बार लेते रहने से पेशाब के साथ यूरिक ऐसिड निकल जाती है तथा
बीमारी ठीक हो जाती है ।
28-रक्त में यूरिक
ऐसिड बढने पर (आर्टिका यूरेंस, बेंजोइक ऐसिड):- उपरोक्तानुसार
आर्टिका यूरेन्स क्यू तथा बेंजोइक ऐसिड 30 शक्ति में दिन में पर्यायक्रम से दिन
में तीन बार नियमित लेने से यूरिक ऐसिड के बढने पर लाभ होता है । कुछ चिकित्सक
बेंजोइक ऐसिड 200 शक्ति की एक मात्रा सप्ताह में एक बार या आवश्यकतानुसार तथा
आर्टिका यूरेंस क्यू की दस दस बूंदे दिन में तीन बार देने के पक्षधर है ।
29-पेशाब
में कैल्शिम आक्जेलेट आना (नाईट्रो म्यूरियेटिक
ऐसिड क्यू) :-यदि जॉच में कैल्शियम आक्जलेट है तो उसके लिये
नाईट्रो म्यूरियेटिक ऐसिड क्यू अचूक दबा है इसे पॉच से दस बूद दिन में तीन बार
देना चाहिये ।
30-रैबिज :-चिकित्सा अनुसंधान से जुडे डॉ0 और वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि रैण्डो
नामक वायरस से रेबिज उत्पन्न होता है जिसका आकार बन्दूक की गोली की तरह होता है
। यह प्राय: जानवरों के थूक में पाया जाता है । जब रैबिज से पीडित जानवर किसी
मनुष्य को काटता है तो रैबडों मानव मॉस के सम्पर्क मे आकर वह अपनी संख्या को
बढाने लगता है और मस्तिक तक जा पहूंचता है ।
हेनरी क्लार्क की पुस्तक दा प्रिस्काईबर में
हाईड्रोफोबियम , बेलाडोना ,स्ट्रामोनियम ,कैन्थरिज आदि दवाओं को इस रोग के लिये
सिफारिश की है उक्त दवाओं का प्रयोग आवश्यकतानुसार एंव रोग लक्षणों के अनुसार
किया जा सकता है
31-क्लोरोफार्म के
सूंधने के दोष (ऐसिटिक एसिड):- ऐसिटिक एसिड यह दवा सभी तरह की बेहोश
करने वाली दबाओं ,क्लोरोफार्म आदि के सूधने के दोष का प्रति विष है ।
32-रक्त में
ई0एस0आर0 कम करने के लिये (अश्वगंधा क्यू0) :- रक्त
में ई0एस0आर0 कम करने के लिये अश्वगंधा क्यू0 उपयोगी है इस दवा की पन्द्रह बीस
बूदे आधे कप पानी में दिन में तीन चार बार आवश्कतानुसार लिया जा सकता है ,इस दवा
के प्रयोग से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है एंव यह दवा कैंसर प्रतिरोधक दवा होने के
साथ कैंसर को खत्म करने के लिये भी उपयोगी एंव शक्तिवृधक दवा है इसके सेवन से
नींद भी अच्छी आती है ।
33- मूत्र का
संक्रमण बी कोली :- मूत्र में संक्रमण होने की
स्थिति में बी कोली दवा का प्रयोग 30 श्ाक्ति 200 शक्ति में आवश्कतानुसार किया
जा सकता है । प्राय: 30 शक्ति में दिन में तीन बार प्रयोग नियमित करने से मूत्र का
संक्रमण कम होने लगता है बाद में इसकी 200 शक्ति की एक मात्रा का प्रयोग सप्ताह
में एक बार कुछ दिनों तक करते रहना चाहिये ।
34-- पेशाब में अम्ल या
यूरिक ऐसिड बहुत ज्यादा, पेशाब मे पीब रंग लाल, कस्तूरी सी गंध (ओसियम केनन ,बर्बेरस
,पैरिरा आर्टिका 6 एंव 30):- पेशाब में अम्ल या यूरिक ऐसिड की मात्रा बहुत ज्यादा
हो पेशाब मे पीब रंग लाल ,पीले रंग की तली के साथ कस्तूरी सी गंध आये तो ओसियम
केनन ,बर्बेरस ,पैरिरा आर्टिका शक्ति 6
एंव 30 दवाओं का प्रयोग लक्षणानुसार दिन में तीन बार किया जा सकता है । कुछ चिकित्सक
बर्बेरिस वलगैरिस 30 एंव ओसियम केनन (तुलसी) क्यू तथा आर्टिका यूरेंस क्यू को
दिन में तीन बार तथा पैरिरा 200 तीन दिन के अन्तर से देने के पक्षधर है ।
तम्बाखू के सेवन से होने वाले मुंह के छाले व कैंसर की दवा प्रत्येक
रविवार को नि:शुल्क प्रदान की जाती है ।
जन जागरण धमार्थ चिकित्साल
जन जागरण धमार्थ चिकित्साल
बजाज शो रूम
के सामने नमर्दा बाई स्कूल के पास
मकरोनिया सागर (म0प्र0)
सुबह
9-00 से 2-00 दोपहर तक
ईमेल- jjsociety1@gmail.com
https://jjehsociety.blogspot.com
मो0-9300071924
9630309033
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