नशे की आदते और उसके दुष्परिणाम
नशा किसी भी प्रकार का हो इससे
स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पडता है ,आज के इस बदलते दौर में नशा एक फैशन बनता जा
रहा है । आज हमारे देश में ही नही बल्की पूरा विश्व नशे जैसी महामारी का शिकार
होता जा रहा है , शराब हो या बीडी ,सिगरेट,तम्बाखू से निर्मित वस्तुयें
,गॉजा,भॉग आदि आप को यह जानकर आर्श्चय होगा कि हमारे देश में बाल मजदूर ,रल्वे
या अन्य जगहों पर कार्य करने वाले बच्चों यहॉ तक की बडों या महिलाओं के द्वारा
नशा लेने के लिये कई प्रकार के धातक वस्तुओं का सेवन किया जा रहा है । उनमें से
प्रमुख है तम्बाखू ,खैनी,के साथ वाईटनर,आयोडेक्स,पेट्रोल ,आयुर्वेदिक एंव होम्योपैथिक
की कई ऐसी औषधियॉ जिनमें एलकोहल होती है उसका प्रयोग नशे के रूप में किया जा रहा
है ,चूंकि ये वस्तुयें एक तो आसानी से उपलब्ध हो जाती है दूसरा ये शराब की कीमत
से सस्ती होती है यह तो बात नशे की हुई । बच्चों से लेकर बडे बूंढो और तो और
महिलाओं तक में तम्बाखू या तम्बाखू से निर्मित पान मसाले खॉने व खिलाने का
प्रचलन आम हो गया है । लगातार तम्बाखू के सेवन के परिणाम भी सामने आने लगे है
इसके लगातार सेवन से मुंह में छॉलों की शिकायत शुरू हो जाती है धीरे धीर यह कैंसर जैसी घातक बीमारी में परिवर्तित हो
जाती है और जब तक इस बीमारी का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ।
हमारी संस्था जो नशामुक्ति के क्षेत्र में कार्य कर रही है हमाने बाल मजदूरो से
लेकर बडे बूढों तक को इस आदत में लिप्त देखा है ,यहॉ तक कि कुछ लोगों को मुह में
बार बार छॉल होने यहॉ तक की खाने पीने में परेशानी होने पर भी वे तम्बाखू नही छोड
पा रहे थे । कई लोगों को कैंसर डिक्लेयर होने के कारण डॉ0 ने तम्बाखू सिगरेट तम्बाखू
छोडने को कहॉ परन्तु सब कुछ जानते हुऐ भी वे इस नशे से निजात नही पा रहे थे ।
हमारी संस्था हर संभव प्रयास कर
रही है ,जिसमें तम्बाखू व तम्बाखू से निर्मित पान मसाले के सेवन करने से मुंह
आदि के छॉलों के उपचार में होम्योपैथिक उपचार के साथ अलसी एंव पनीर तथा विटामिन्स
चिकित्सा एंव प्राकृतिक चिकित्सा का प्रयोग कर गरीब,बेसहारा लोग जो आज की आसमान
छूती चिकित्सा कराने में असमर्थ है उन्हे हमारी संस्था द्वारा नि:शुल्क
परामर्श एंव औषधियॉ उपलब्ध कराई जा रही है । हमारी संस्था का निवेदन है कि
नशामुक्ति के क्षेत्र में नि:शुल्क चिकित्सा सेवा मरीजों को उपलब्ध कराने की महान
कृपा करे ।
शराब छोडने के लिये
क्र0
|
रोग
|
औषधिय
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1-
|
व्हीस्की छोडने के लिये
|
(सल्फर):-
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2
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-बियर छोडने के लिये
|
(सीपिया):-
|
3-
|
ब्रान्डी छोडने के लिये
|
(कास्टिकम)
|
4-
|
सूरापान की उत्कृष्ट इक्च्छा को सफलतापूर्वक दबाई
जा सकती है
|
(सल्फूरिक ऐसिड)
|
5-
|
मदरापान की आदत को काबू में करने के लिये
|
(स्टर्क्यूलिया क्यू)
|
6-
|
शराब की उत्कृष्ट इक्च्छा पर काबू
|
(सिनकोना रूबा क्यू)
|
7-
|
पुराने पियक्कडों के लिये
|
(क्वेरकस ग्लण्डियम स्पिरिटस क्यू)
|
8-
|
शराब व अन्य नशा करने से स्वास्थ्य खराब
|
(हाईड्रैस्टिस कैन क्यू ):-
|
9-
|
शराब पी कर बकवास करना
|
(कैनाबिस इंडिका 200)
|
10
|
-शराब छूडाना
|
(सल्फर1एम):-
|
शराब
छोडने के लिये
1-व्हीस्की छोडने
के लिये (सल्फर):- ऐसे शराब के आदि व्यक्ति जो व्हीस्की
पीने के आदि है उन्हे सल्फर 30 शक्ति में कुछ दिनों तक देना चाहिये, इससे उन्हे
शराब के प्रति अरूचि हो जाती है धीरे धीरे शराब पीने की आदत कम होती जाती है । कुछ
चिकित्सक सल्फर 200 शक्ति की दवा देने के पक्षधर है ।
2-बियर छोडने के
लिये (सीपिया):- ऐसे शराब के आदि व्यक्ति जो बियर पीने के आदि हो उन्हे
नक्स वोमिका 30 या सीपिया 30 में देना चाहिये , उक्त दोनो दवाओं को प्रर्यायक्रम
में भी दिया जा सकता है इससे ऐसे व्यक्तियों की यह आदत बदल जाती है ।
3-ब्रान्डी छोडने
के लिये (कास्टिकम) :- वैसे तो शराब पीने के आदि व्यक्तियों
में ब्रान्डी पीने के आदि व्यक्ति कम ही होते है परन्तु यदि कुछ व्यक्तियों
में यदि ब्रान्डी पीने की आदत हो तो उन्हे कास्टिकम 30 शक्ति में कुछ दिनो तक
देना चाहिये प्रारम्भ में इस दवा को 30 पोटेंशी में देना चाहिये फिर 200 शक्ति की
दवा सप्ताह में एक बार देना चाहिये इससे ब्रान्डी के प्रति अरूची पैदा हो जाती
और धीरे धीर यह आदत बदल जाती है ।
4- सूरापान की उत्कृष्ट
इक्च्छा को सफलतापूर्वक दबाई जा सकती है (सल्फूरिक ऐसिड):- डॉ बोरिक ने अपनी मेटेरिया मेडिका में स्पष्ट लिखा है कि सल्फूरिक ऐसिड
की दस से पन्द्रह बूंद की मात्रा दिन में ती बार कुछ दिनों तक देने से सुरापान की
उत्कृष्ट इक्च्छा सफलतापूर्वक दबाई जा सकती है ,और एक दो माह में ही रोगी का
शराब पीना पूर्णत: छुडया जा सकता है ।
5-मदरापान की आदत को
काबू में करने के लिये (स्टर्क्यूलिया क्यू) :- स्टर्क्यूलिया
क्यू की दस दस बूंद दिन में तीन बार देने से मदिरापान की आदत को काबू में रखा जा
सकता है यह दवा भूंख व पाचन शक्ति को बढाती है यदि दस दस बूंदो से परिणाम न मिले
तो इस दवा की एक ड्राम तक ली जा सकती औ उसे रोज दिन में तीन बार दिया जा सकता है ।
6-शराब की उत्कृष्ट
इक्च्छा पर काबू (सिनकोना रूबा क्यू) :- डॉ0 क्लार्क
ने लिखा है कि सिनकोना रूब्रा क्यू की तीस तीस बूंद देने से भी शराब की उत्कृष्ट
इक्च्छा पर काबू पाया जा सकता है ।
7-पुराने पियक्कडों
के लिये (क्वेरकस ग्लण्डियम स्पिरिटस क्यू) :- पुराने पियक्कडों
के लिये यह दवा क्यू में दस दस बूंद की मात्रा में रोज दिन में तीन बार कई माह तक
देने से यह सुरापान की इक्च्छा को भी दूर किया जा सकता है इसके अलावा प्लीहा
शोथ को भी यह दवा ठीक कर देती है
8-शराब व अन्य नशा
करने से स्वास्थ्य खराब (हाईड्रैस्टिस कैन क्यू ):- शराब व अन्य
नशा करने वाले व्यक्ति जिनका स्वास्थ्य खराब हो गया हो पाक स्थली यकृत की
क्रिया में विकृति हो गयी हो इसका रोगी बहुत ही दुर्बल व कमजोर और हर समय अपनी
बीमारी के विषय में बात करने वाला होता है कब्ज,अजीर्ण ,कलेजा धडकतना,सर्दी ,खॉसी
और धॉव यह सब रोग में यह दवा दी जा सकती है । यह दवा क्यू पोटेंशी में दस दस बूंद
दिन में तीन बार देना चाहिये ।
9-शराब पी कर बकवास
करना (कैनाबिस इंडिका 200) :- कई शराबी व्यक्ति शराब पी कर
अनावश्यक बकवास करते है उन्हे कैनाबिस इंडिका 200 की एक मात्रा सप्ताह या तीन
तीन दिन में अन्तर से देना चाहिये । इससे शराब पीकर बकवास करने की आदत में सफलता
मिलती है । यह दवा 30 पोटेंशी में भी दिन में तीन तीन बार दी जा सकती है ।
10-शराब छूडाना (सल्फर1एम):-
ऐसे लोग जो रात दिन शराब पीते है उन्हे सुबह खाली पेट सल्फर 1 एम की एक
खुराक लगाता कई दिनो तक देना चाहिये यह सोरा दोष नाशक दवा है ,अत: यदि मरीज में
सोरा दोष के लक्षण देखे जाते हो तो इस दवा को देना उचित है ।
अभिमत :- शराब या तम्बाखू, बीडी, सिगरेट के आदि व्यक्तियों को इसकी आदत छुडाने के
लिये सर्वप्रथम कैलेडियम जैसी दवाओं का उच्च शक्ति में प्राय: सी एम शक्ति का एक
डोज देने के बाद जो भी दवाये निर्वाचित हो देना चाहिये, साथ ही तम्बाखू सेवन के
दोष से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने के लिये आसैनिक तथा टोबेकम दवा का भी
प्रयोग बीच बीच में करना चाहिये,
बीडी सिगरेट ] तम्बाखू की आदत
क्र0
|
रोग
|
औषधिय
|
1-
|
तम्बाखू एंव अफीम छोडने के लिये
|
(आरम म्यूर 12 एक्स
|
2-
|
तम्बाखू खाने की प्रबल इक्छा
|
(डेफिन इंडिका ऐवाना सिटाईवम क्यू0
|
3-
|
जर्दा खाने के कारण उत्पन्न दोष
|
(आसैनिक एल्ब 30)
|
4-
|
तम्बाखू खाने के कारण दन्तशूल (
|
क्लिमेटिस और प्लैण्टेगो)-
|
बीडी सिगरेट (स्मोकिग)
करने की आदत
चैन स्मोकर की आदत
:- ऐसे व्यक्ति जो बीडी सिगरेट एक के बाद एक पीते जाते
है उन्हे चैन स्मोकर कहते है ऐसे व्यक्तियों कैलेडियम सी एम का एक डोज देना
चाहिये साथ ही एवोना सिटाईवम क्यू में देना चाहिये इससे उनकी यह आदत धीरे धीरे
बदलना शुरू हो जाती है एंव धीरे धीरे नशे की आदत कम हो जाती है । डॉ0 सत्यवृत जी
ने अपनी मेटेरिया मेडिका मे लिखा है कि कैलेडियम दवा से ध्रूमपान की इक्च्छा के
प्रति अरूची पैदा हो जाती है यहॉ तक की तम्बाखू खाने की आदत भी छूट जाती है । फॉसफोरस
व सल्फर की कमी से तम्बाखू व नशा करने की इक्च्छा होती है , इसलिये सल्फर व
फॉसफोरस की उच्च शक्ति का प्रयोग अन्य दवाओं के साथ करना चाहिये
1-तम्बाखू एंव अफीम
छोडने के लिये (आरम म्यूर 12 एक्स) :- तम्बाखू एंव
अफीम एक ऐसा नशा है जिसे नशा करने वाला व्याक्ति सब कुछ जानते हुऐ भी छोडने में
असमर्थ होता है । डॉ0 हेल का कथन है कि आरम म्यूर 12 एक्स का कुछ दिनों तक सेवन
किया जाये तो तम्बाखू एंव अफीम खाने की आदत छूट जाती है ।
2-तम्बाखू खाने की
प्रबल इक्छा (डेफिन इंडिका ऐवाना सिटाईवम क्यू0) :- ऐसे आदती व्यक्ति
जिन्हे तम्बाखू खाने की प्रबल इक्चछा होती है ऐसे व्यक्तियों को डेफिन इंडिका
1 एक्स या मूल अर्क शाक्ति की दवा कुछ दिनों तक नियमित दी जाये तो उनकी तम्बाखू
खाने की प्रबल इक्छा कम हो जाती है एंव धीरे धीर यह आदत छूट जाती है । यदि इस दवा
के साथ ऐवाना सिटाईवम क्यू0 में लिया जाये तो धीरे धीरे तम्बाखू के प्रति अरूचि
हो जाती है एंव व्यक्ति धीरे धीरे तम्बाखू छोड देता है ।
3-जर्दा खाने के
कारण उत्पन्न दोष (आसैनिक एल्ब 30) :- नियमित रूप से तम्बाखू खाने के दोषों को दूर करने के लिये जिसमे चक्कर
आये , घबराहट हो ,मरीज एक जगह स्थिर न रहता हो , शारीर में जलन हो उल्टी की इक्च्छा
हो तो आसैनिक एल्ब 30 पोटेंशी की दवा का प्रयोग दिन में तीन बार कुछ दिनों तक
करना चाहिये ,इससे उत्पन्न तम्बाखू खाने से उत्पन्न दोषों में लाभ होता है ।
4-तम्बाखू खाने के
कारण दन्तशूल (क्लिमेटिस और प्लैण्टेगो)- तम्बाखू खाने
से वैसे तो कई प्रकार के दोष उत्पन्न होते है परन्तु यदि नियमित तम्बाखू सेवन
से दन्तशूल होता हो तो क्लीमेटिस या प्टैण्टेगो दवा 30 पोन्टशी में दिन में
तीन तीन बार कुछ दिनों तक प्रयोग करने से इस समस्या पर निजात पाई जा सकती है ।
मुंह में छाले
क्र0
|
रोग
|
औषधिय
|
1-
|
मुंह में छॉले
|
(मार्कसाल)
|
2-
|
मुंह के छॉलो के साथ हाथों पर भी छॉले उभरे
|
(नेट्रम म्यूर):-
|
3-
|
मसूढो के अन्दर क्षतयुक्त कैंसर (
|
रमैनस कैलि):-
|
4-
|
ओठों का कोने के फटने पर
|
(एन्टी क्रूड, नेट्रम म्यूर, नाईटिंक ऐसिड):-
|
5-
|
श्लैस्मिक झिल्ली का क्षय
|
(स्कूकम चूक 3 एक्स ):-
|
6-
|
तम्बाखू चबाने की आदत
|
(कैलेडियम, ऐवाना सिटावम क्यू):-
|
7-
|
पान तम्बाखू के सेवन से मुंह में छॉले
|
(कैलेन्डुला],इचिनेशिया,
हाईड्रास्टीस केन):-
|
8-
|
पान तम्बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छॉले
|
(करक्यूमा लॉन्गा क्यू ओसिमम सेनेक्टम क्यू0तथा
कैलेन्डुला
|
9-
|
कैंसर होने पर रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये
|
(टिनोस्पोरा कार्डीफोलिया क्यू)
|
10-
|
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये
|
(अश्वगंधा):-
|
मुंह में छाले
मुंह में छाले होना कोई बीमारी नही है यह प्राय:
पेट की खराबी या कब्ज की वजह से भी हो सकती है, जिसका उपचार कब्ज दूर करने से
प्राय: हो जाता है ,। परन्तु यदि बार बार लम्बे समय तक मुंह में छाले बने रहते
है तो यह समस्यॉ आगे चल कर मुंह के कैंसर का करण बन सकती है परन्तु इस प्रकार की
समस्या प्राय: ऐसे लोगों को होती है जो लगातार लम्बे समय तक तम्बाखू का सेवन
करते है । ऐसे व्यक्तियों को मुंह में छॉले होते है ।
1- मुंह में छॉले
(मार्कसाल) :- डॉ0 ज्हार लिखते है कि मुंह के छालों के लिये
मार्कसाल मुख्य औषधि है मुंह के छॉले तो क्या पेट तथा ऑतों की श्लैष्मिक झिल्ली
के धॉवों तक के लिये भी यह उत्तम औषधिय है । अगर मार्क साल से लाभ शुरू होकर पॉच
छै: दिन के बाद रूक जाये तो सल्फर देने से तुरन्त लाभ होता है । यदि सल्फर से
भी पूरा लाभ शुरू होकर पॉच छै: दिन के बाद रूक जाये तो सल्फर देने से तुरन्त लाभ
होता है । यदि सल्फर से भी पूरा लाभ न हो तो कैल्कैरिया कार्ब देना काफी चाहिये
इस प्रकार मार्क सॉल ,सल्फर तथा कैल्कैरिया कार्ब इस रोग की रोक थाम कर देता है
(डॉ0 सत्यवृत रोग और उनकी चिकित्सा )
2-मुंह के छॉलो के
साथ हाथों पर भी छॉले उभरे(नेट्रम म्यूर):- अगर मुंह के
छॉलों के साथ हाथों पर भी छाले उभर आये तो नेट्रम म्यूर 30 शक्ति में दिन में तीन
बार देना चाहिये ।
3-मसूढो के अन्दर
क्षतयुक्त कैंसर (रमैनस कैलि):- डॉ0 घोष ने लिखा है कि ओठों एंव
मसूढे के अन्दर क्षत युक्त कैंसर मे रैमनस कैलि दवा का प्रयोग करना चाहिये
4-ओठों का कोने के
फटने पर (एन्टी क्रूड, नेट्रम म्यूर, नाईटिंक ऐसिड):- ओठों के कोने
फटने पर वैसे तो नाईट्रिक ऐसिड 30 में दिन में तीन बार देने से ठीक हो जाते है ।
नेट्रम म्यूर या एन्टी क्रूड दवा 30 पोटेंशी में दिन में तीन बार देने से ओठों
के फटना प्राय: ठीक हो जाता है ।
5-श्लैस्मिक झिल्ली
का क्षय (स्कूकम चूक 3 एक्स ):- स्कूकम चूक यह एक एण्टि सोरिक
औषधि है चर्मरोग व श्लैस्मिक झिल्ली के ऊपर इसकी प्रधान क्रिया होती है मध्य
कर्ण के प्रदाह आदि में भी इसका उपयोग होता है ।
6-तम्बाखू चबाने की
आदत (कैलेडियम, ऐवाना सिटावम क्यू):- ऐसे व्यक्ति जो आदती तम्बाखू
चबाते रहते है । इसके नियमित सेवन से गालों के अन्दर मुंह मे छॉले हो जाते है एंव
कैंसर होने की संभावना बढ जाती है ,एक बार यदि तम्बाखू खाने की लत लग गयी तो
समक्षों इसे छोडना प्राय: नमुमकिन होता है ,परन्तु ऐसा नही है कि इसे छोडा न जा
सके दृढ इक्च्छा शक्ति से इसे छोडा जा सकता है । यहॉ पर यह बात सर्वविदित है कि
तम्बाखू सेवन करने वाले व्यक्ति को यह मालुम होता है कि इसके नियमित व लम्बे
समय तक तम्बाखू के सेवन से जानलेवा कैंसर हो सकता है इसके बाद भी वह इसे नही छोड
सकता ऐसे व्यक्तियों को तम्बाखू छोडने के लिये प्रथम दिन सल्फर 200 शक्ति की एक
मात्रा दुसरे दिन कैलेडियम 200 शक्ति में तथा इसी दवा को प्रारम्भ में तीन तीन
दिन के अन्तर से एक मात्रा बाद में इसकी प्रति सप्ताह एक मात्रा इसके साथ एवाना
सिटावम क्यू की पन्द्रह से बीस बूद दिन में तीन बार लगातार कुछ दिनों तक लेने से
तम्बाखू के प्रति अरूचि पैदा हो जाती है और धीर धीर इसकी आदत कम होने लगती है
7-पान तम्बाखू के
सेवन से मुंह में छॉले (कैलेन्डुला],इचिनेशिया, हाईड्रास्टीस केन):- मुंह में छालें कई कारणों से होते है ,परन्तु उसमें अधिकाशत: पान तम्बाखू, चूना मिश्रित
पान मसाले, सुपारी आदि प्रमुख है । इस प्रकार के मुंह के छॉलों पर कैलेन्डुला क्यू
( यह दवा गेंदे से बनाई जाती है जो धॉव के लिये एक सर्वश्रेष्ट दवा है) दूसरी दवा
है इचिनेशिय क्यू यह दवा भी छॉल व म्यूकस
मेम्बरे के क्षय पर अच्छा कार्य करती है तीसरी दवा है हाईड्रास्टिस केन क्यू इन
तीनों दवाओं के मदर टिंचर को समान मात्रा में ले कर किसी शीशी में भर कर उसे अच्छी
तरह से मिला ले इसके बाद एक गिलास पानी में बीस से पच्चीस बूंद मिला कर उसे मुंह
में कुछ देर तक भरे रहे बाद में कुल्ला कर ले इससे मुंह के धॉव छॉले आदि ठीक हो
जाते है ।
8-पान तम्बाखू के
नियमित सेवन से मुंह में छॉले (करक्यूमा लॉन्गा क्यू ओसिमम सेनेक्टम क्यू0 तथा
कैलेन्डुला ):-पान तम्बाखू के नियमित सेवन से मुंह में छॉले होने
पर करक्यूमा लोन्गा क्यू, यह दवा हल्दी से बनाई जाती है हल्दी में करक्यूमा
पाया जाता है, जो कैंसर कोशिकाओं को फैलने से रोकता है एंव कैंसर के उपचार की यह
एक अचूक दवा है । दूसरी दवा है ओसिमम सेनेक्टम यह दवा तुलसी से बनाई जाती है, इसके
प्रयोग से कैंसर व छॉलों में लाभ होता है तीसरी दवा है कैलेन्डुला यह दवा धॉव व
छॉले से मुंह के कटने छिलने पर उपयोगी है । उक्त तीनों दवाओं को मदर टिंचर अर्थात
क्यू में बराबर मात्रा में ले कर उसे किसी शीशी में रख कर अच्छी तरह से मिला ले
फिर इसकी बीस से पच्चीस बूंदे एक गिलास पानी में ले उसे मुंह में भर कर कुछ देर
मुंह में रख कर कुल्ल करते जाये, बाद में दस दस बूंद आधे कप पानी में मिला कर उसे
पी जाये इससे छॉले व मुंह के धॉल जल्दी भर जाते है ।
9-कैंसर होने पर
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने के लिये (टिनोस्पोरा कार्डीफोलिया क्यू) :- शरीर में कैंसर इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के कारण
होता है इसलिये आयुर्वेद में कैंसर के उपचार में अन्य निर्वाचित दवाओं के साथ
गिलोय, जिसे अमृता, भी कहॉ जाता है का प्रयोग किया जाता है । इस दवा के सेवन से
शरीर में इम्यूनिटी शक्ति एंव रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ जाती है इससे कैंसर आगे
नही बढता । हमारे होम्योपैथिक में भी गिलोय से बनने वाली दवा का नाम है टिनोस्पोरा
कार्डीफोलिया इस दवा को मदर टिंचर में ले एंव इसकी बीस से पच्चीस बूंदे आधा कम
पानी में मिला कर इसे दिन में तीन से चार बार प्रयोग अन्य निर्वाचित दवाओं के साथ
करना चाहिये । यह दवा बार बार आने वाले बुखार एंव वृद्धावस्था में भी अच्छा
कार्य करती है
10-रोग प्रतिरोधक
क्षमता बढाने के लिये (अश्वगंधा):- जैसा कि हमने पहले भी कहॉ है कि
कैंसर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने की वजह से होता है एंव शरीर में फैलता है ,
इसलिये मुंह में छॉले होने पर अधिकतर संभावना रोग प्रतिरोधक क्षमता के कम होने के
कारण होती है, आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने के
लिये गिलोय एंव अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है । होम्योपैथिक चिकित्सा में
अश्वगंधा क्यू में उपलब्ध है, इस दवा का प्रयोग मदर टिंचर में बीस बीस बूंद आधे
कप पानी में दिन में तीन चार बार या आवश्यकतानुसार किया जा सकता है । वैज्ञानिकों
का मानना है कि अश्वगंधा के प्रयोग इम्यूनिटी शक्ति बढ जाती तथा इसके उपयोग से
कैंसर को खत्म किया जा सकता है ।
11- कैंसर की रोकथाम
(कार्सिनोसिन):- कैंसर होने की किसी भी अवस्था में या परिवार में
कैंसर का इतिहास पाये जाने पर कार्सिनोसिन दबा का प्रयोग किया जाता है कार्सिनोसिन
दवा के बिना कैंसर का उपचार संभव नही है, अत: कैंसर की रोकथाम व कैंसर होने पर कार्सिनोसिन
दवा का प्रयोग करना चाहिये । ध्रुमपान तम्बाखू चबाने आदि की वजह से मुंह में छॉले
होते हो तो अन्य सुर्निवाचित दवाओं के साथ इस दवा की उच्च शक्ति का प्रयोग सप्ताह
या माह में एक दो बार करना चाहिये यह दवा कैसर से बनाई जाती है ।
सहायक उपचार व
अभिमत:- मूंगफली एण्टी आक्सिडेन्टस का अच्छा स्त्रोंत है
एंव उसमें विटामिन ई का भंडारण साथ ही इसमें कैल्शियम और विटामिन डी प्रर्याप्त
मात्रा में होती है । यह कैंसर एंव ह्रिदय
सम्बन्धित बीमारीयों का खतरा कम कर देती है, यह कोशिकाओं के निर्माण में सहायक
होती है । विटामिन बी-6 या बी काम्प्लेक्स विटामिन ई सी एंव डी का प्रयोग
प्राकृतिक स्त्रोंतों से ही करना चाहिये । ये त्वचा के धंब्बों को भरने तथा
कोशिका निर्माण में सहायक होती है ।
अलसी के बीज :- अलसी के बीज में ओमेगा-3 पाया जाता है यह कोई विटामिन नही है परन्तु
मानव शरीर के लिये अत्याधिक उपयोगी है ओमेगा-3 फैटी ऐसिड शरीर में एच डी कोलेस्ट्रॉल
को बनाये रखता है ,इसके प्रयोग से कैंसर का खतरा कम हो जाता है । अलसी में महत्वपूर्ण
पोष्टिक तत्व लिगनेन होता है लिगनेन जीवाणुरोधी ,विषाणुरोधी एन्टी फंगल तथा
कैंसररोधी है यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ एंव शक्तिशाली बनाता है । डॉ0 योहाना
बुडविज का कैंसररोधी प्रोटोकाल सन 1931 में ओटो बारबर्ग ने सिद्ध कर दिया था कि
कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है यदि
कोशिकाओं को प्रर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व
संभव नही है इसके लिये उन्हे नोबल पुरूस्कार भी मिला परन्तु तब बारबर्ग यह पता
नही कर सके कि कैंसर कोशिकाओं की बाधित श्वसन क्रिया को कैसे ठीक किया जाये डॉ0
योहान ने अपने परिक्षणों से यह सिद्ध कर चुकी थी की अलसी के तेल में वि़द्यमान
इलेक्ट्रान युक्त असंतृप्त ओमेगा-3 वसा कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकृर्षित करने
की अपार क्षमता रखता है पर मुख्य समस्या रक्त में अधुलनशील अलसी के तेल को
कोशिकाओं तक पहुंचाने की थी वर्षो तक शेध करने के बाद वे मालूम कर पाई कि सल्फर
युक्त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के तेल को धुलनशील बना देता है और तेल सीधे
कोशिकाओं तक पहुंचकर आक्सीजन को कोशिकाओं में खीचता है व कैसर को खत्म कर देता
है । डॉ0 योहाना ने अलसी के तेल पनीर कैसर और सब्जियो से कैंसर के उपचार का तरीका
विकसित किया था जो बुडविज प्रोटोकोल के नाम से प्रचलित हुआ वे 1951 से 2003 तक सभी
प्रकार के कैंसर रोगियों का उपचार सफलता पूर्वक करती रही ,जिसमें इन्हे लगभग 90
प्रतिशत सफलता मिलती रही इसके अलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हे अस्पताल
से यह कहकर छोड दिया जाता था कि अब वे दुआ करे , अर्थात यदि कैंसर की शिकायत है तो
s होम्योपैथिक की
निर्वाचित दवा के साथ अलसी पनीर का संयुक्त प्रयोग कर कैंसर से बचा जा सकता है ।
अलसी के बीज को बारीक पीस कर उसमें पनीर मिला कर प्रतिदिन प्रयोग करना चाहिये केवल
अलसी के प्रयोग से कैंसर ठीक नही होता इसलिये उसमें पनीर को मिलाकर प्रयोग
प्रतिदिन नियमित रूप से करना चाहिये इससे कैंसर के उपचार में सफलता मिलती है l
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल बी0एच0एम0एस0
ईमेल- jjsociety1@gmail.com
मो0-9300071924
9630309033
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