बायोकेमिक चिकित्सा
जीते तो सभी है परन्तु अपने अन्दाज में जीने का सौभाग्य बहुत ही कम लोगों को मिल पाता है । जिसने जीवन के रहस्यों को जान लिया कि मृत्यु अवश्यम्भावी है । जिसे कोई नही टाल सका , वही इन्सान अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसा कर गुजरता है कि लोग उसे युगों युगों तक याद करते है । जब कभी हम अपनी जिन्दगी का विश्लेषण करते है तब हमें बडा दु:ख होता है कि हमने अपना कितना बहुमूल्य समय व्यर्थ ही गवा दिया । हमने अपने लिये या समाज के लिये क्या किया क्या हमारा अपना कोई ऐसा निर्माण या रचना है जो हमारे बाद भी याद रखी जायेगी , जिससे लोगों का भला होगा ? क्या हमारा कार्य आने वालाी पीढी का आदर्श बन सकेगी ।
सन 1821 ई0 को डॉ0 विलहैम हैनीरिच शुसलर करा जन्म इसी माह की 21 अगस्त को ओल्डन वर्ग जर्मनी में हुआ था । आपका बचपन भी अन्य महापुरूषों की तरह सधर्ष एंव आर्थिक परेशानियों से गुजरा । इस महत्वाकांक्षी होनहार युवक की अभिलाषा एक होम्योपैथिक चिकित्सक बनने की थी । उस जमाने में होम्योपैथिक की पढाई अलग से नही हुआ करती थी । इसलिये आपने ऐलोैपैथिक चिकित्सा का अध्ययन किया बाद में अपनी जन्मूमि वापिस आकर 1857 मे आपने 36 वर्ष की आयु में होम्योपैथिक चिकित्सा प्रारम्भ कर दी । होम्योपैथिक के आविष्कारक डॉ0 हैनिमैन ने सर्वप्रथम पार्थिव लवण पोटैशियम सोडा लाईम एंव सिलिका का परिक्षण किया और सदृष्य चिकित्सा होम्योपैथि में उसका प्रयोग किया था । उन्होने ही सर्वप्रथम बायोकेमिक चिकित्सा का रास्ता प्रशस्त किया , बाद में डॉ0 स्टाफ ने भी इस बात का समर्थन किया और कहॉ कि रोग को दूर करने के लिये मनुष्य शरीर के सभी उत्पादन जिनमें नमक (तन्तु) प्रमुख है ।
डॉ0 शुसलर ने ही हैनिमैन के बतलाये सिद्धान्तों पर चल कर बायोकेमिक चिकित्सा प्रणाली का वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण किया ।
अतः बायोकेमिक चिकित्सा के आविष्कार का श्रेय डाॅ0 शुसलर सहाब को जाता है । उन्होने देखा कि कई ऐसे रोगी जो निरोग नही हो रहे थे , उन्होने प्राकृतिक पदार्थ देकर देखा उक्त सिद्धान्तों एंव विचारों के आधार पर उन्होने मानव के रक्त , हडडी , थूक ,राख इत्यादि का विश्लेषण कार्य प्रारम्भ किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुॅचे कि मानव शरीर में बहने बाहने वाले रक्त मंे दो पदार्थ पाये जाते है ।
1- आगैनिक (कार्बनिक
2- इनागैनिक (अकार्बनिक
इनमें से किसी भी पदार्थ की कमी हो जाने से मानव शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है एंवम इनकी पूर्ति कर देने से शरीर निरोग व स्वस्थ्य हो जाता है ।
सन 1832-1844 के आर्चिव्ह जनरल में निकला , मानव शरीर के विभिन्न अंग जिन आवश्यक पदार्थो से बने है वे पदार्थ स्वय बडी औषधियॉ है । डा0 कान्सरेन्टाइन हेरिंग ने भी एक लेख लिखा था मानव शरीर की रचना में पाये जाने वाले पदार्थ उन अंगों पर अपनी विशेष क्रिया प्रगट करते है । जहाॅ वे पाये जाते है व कार्य करते है इसके कारण पैदा होने वाले लक्षणों पर यह पदार्थ। अपना अपना कार्य पूर्ण रूप से करते है । डॉ0 शुसलर सहाब ने इन्ही सिद्धन्तों का गंभीरता से अध्ययन किया ।
मानव शरीर में ग्यारह प्राकृतिक क्षार (मिनरल साल्टस ) तथा 12 वा क्षार सिलिका है । इसका सिद्धान्त इस प्रकार है - मानव शरीर में 70 प्रतिशत पानी 25 प्रतिशत कार्वनिक पदार्थ एंव 5 प्रतिशत खनिज पदार्थ एंव अकार्वनिक पदार्थ है । यह खनिज क्षार सख्या में बारह है जो शरीर के कोषों का निर्माण करते है । इन क्षारों में से किसी भी क्षार की कमी हो जाने से बीमारीयॉ उत्पन्न होती है । एंव उस क्षार की पूर्ति कर देने से वह निरोगी हो जाता है ।
सन 1873 ईस्वी में जर्मनी के पत्र के अंक में अपनी इस चिकित्सा पद्धति पर एक लेख लिखा उन्होने इस बात को स्वयम स्वीकार किया कि बायोकेमिक चिकित्सा प्रणाली में प्रयुक्त होने वाली कुछ औषधियों के लक्षण होम्योपैथिक सिद्धान्तों के अनुसार अपनाये जाते है । बायोकेमिक औषधियॅा बनाने व शक्ति परिर्वतन करने की समस्त विधियॉ होम्योपैथिक विधि पर आधारित है । परन्तु प्रयोग में लाये जाने वाले सिद्धान्तों में कुछ भिन्नता होने के कारण डॉ0 शुसलर इसे होम्योपैथिक से अलग चिकित्सा मानते है ।
आपने इस चिकित्सा प्रणाली का नाम जीव रसायन रखा । बायोकेमिस्ट्री शब्द ग्रीक भाषा के बायोस तथा केमिस्ट्री इन दो शब्दों से मिल कर बना है । बायोस का अर्थात जीवन तथा केमिस्ट्री का अर्थ रसायन शास्त्र अर्थात हम इसे जीवन का रसायन शास्त्र कह सकते है । आपने अपनी चिकित्सा प्रणाली को पूर्ण बनाने के लिये अथक परिश्रम किया । आज बायोकेमिक चिकित्सा पद्धति को होम्योपैथिक चिकित्सा के साथ शम्लित कर लिया गया है । केवल उपयोंग में लाने के सिद्धान्तों में भिन्नता है ।
डॉ0 शुसलर ने 12 तन्तु औषधियों का आविष्कार किया यह दबा न तो विषैली है न ही इसका हानिकारक प्रभाव है इन औषधियों को आपस में मिला कर भी दिया जा सकता है। शरीर में किस शाल्ट की कमी है यह औषधियों के लक्षणों द्वारा आसानी से समक्षा जा सकता है । शरीर में जिस औषधिय की कमी होती है वह औषधिय अन्य औषधियों की अपेक्षा मीठी व जीभ में रखने पर जल्दी धुल जाती है । उसी तत्व की पूर्ति कर देने से रोगी स्वस्थ्य हो जाता है । शारीर में जिस दवा की आवश्यकता नही होती वह देर से घुलती है एंव कडवी लगती है ।
औषधिय निर्माण बायोकेमिक दबाये होम्योपैथिक दबाओं की ही तरह दशमिक अथवा शतमिक क्रम के विचूर्ण अथवा द्रव रूप में तैयार की जाती है स्थूल रसायनिक रूप में शुद्ध धातु ली जाती है जिसे शुगर आफ मिल्क के साथ विचूर्ण किया जाता है । औषधि का एक मात्र नौ गुना शुगर आफ मिल्क के साथ कम से कम दो घन्टे तक खरल करने से 1एक्स शक्ति की दबा तैयार होती है । इसी प्रकार नौ गुना शुगर आफ मिल्क के साथ मिलाकर विचूर्ण करने से 2 एक्स शक्ति प्राप्त होती है । इस क्रमानुसार औषधियों की शक्ति तैयार की जाती है ।
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