इलैक्ट्रो होम्योपैथिक
पैरासेल्सस के प्रथम सिद्धान्त ‘ सम
से सम की चिकित्सा ’ पर डॉ0 हैनिमैन सहाब ने होम्योपैथिक
चिकित्सा का आविष्कार किया, वही उनकी मृत्यु के 22 वर्षो पश्चात पैरासेल्सस के दूसरे सिद्धान्त ‘
वनस्पति जगत में विद्युत शक्ति विद्यमान ’ होती है । इस सिद्धान्त पर इलैक्ट्रो होम्योपैथिक का आविष्कार बोलग्ना
इटली निवासी डॉ0 काऊट सीजर मैटी ने 1865 ई0 किया था किया था । इस चिकित्सा पद्धति
की औषधियों में प्रयुक्त 114 वनस्पतियों का प्रयोग कर डॉ0 मैटी ने 38 मूल
औषधियों का निर्माण किया था , रस रक्ते च शुद्धे प्राणी दीर्धायुराप्नोति अर्थात
रक्त व रस के शुद्ध होने एंव इसकी समानता से व्यक्ति निरोगी व दीर्ध जीवी होता
है, इस सिद्धान्त पर उन्होने अपनी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार किया था उनका
मानना था कि शरीर में उपस्थित रस एंव रक्त
को शरीर को होम्योस्टेटिस प्रक्रिया को शुद्ध व साम्यावस्था में बनाये रखकर व्याधियों
को दूर किया जा सकता है । डॉ0 मैटी सहाब ने प्रारम्भ में मूल 38 औषधियों का
निर्माण किया तथा उन्ही 38 दवाओं को आपस में शारीरिक रोग एंव शरीर के आंतरिक अव्यावों
तथा रोग प्रकृति के अनुसार आपस में मिश्रित कर कुल 60 दवाओं का निर्माण किया जो आज
प्रचलन में है तथा कुछ विद्वान चिकित्सकों ने इन्ही मूल औषधियों को रोग स्थिति
के अनुसार आपस में मिश्रित कर कुछ और नई औषधियों का निर्माण किया है जिससे इनकी संख्या
में वृद्धि हुई है ।
4-इलैक्ट्रो
होम्योपैथिक :- ।
इलैक्ट्रो होम्योपैथिक चिकित्सा
पद्धति के दो सिद्धान्त है
1-वनस्पति जगत में वि़द्धुत शक्ति विधमान होती
है
2- रस और रक्त की समानता एंव शुद्धता
मैटी सहाब ने हानिरहित वनस्पतियों की वि़द्धुत
शक्ति की खोज करते हुऐ 114 वनस्पतियों के अर्क को कोहेबेशन प्रक्रिया से निकाल कर
38 मूल औषधियों का निर्माण किया जो मनुष्य के
रस एंव रक्त के दोषों को दूर कर उन्हे शुद्ध व सम्यावस्था करती है ,
उन्होने उक्त औषधियों के निर्माण में शरीर के अंतरिक अंगों पर कार्य करने वाली
औषधियों के समूह का निर्माण किया जिन्हे आपस में मिला कर मिश्रित कम्पाऊंउ दवा
बनाई गई इस प्रकार इनकी संख्या बढकर कुल 60 हो गयी है ।
इसे सुविधा व कार्यो की दृष्टि से निम्न समूहो
में विभाजित किया जा सकता है । इस विभाजन में मूल औषधियों के साथ मिश्रित किये गये
कम्पाऊड की संख्या भी सम्मलित है ।
1- स्क्रोफोलोसोज
:-प्रथम वर्ग में रस पर कार्य करने वाली मेटाबोलिज्म को संतुलित एंव उसके कार्यो
को सामान्य रूप से संचालित करने वाली एक क्रियामिक औषधिय है जो रस तथा पाचन सम्बन्धित अव्यावों पर कार्य करती है औषधियों को रखा जो स्क्रोफोलोसोज नाम से जानी
जाती है एंव संख्या में कुल 13 है ।
स्क्रोफोलोसो
लैसेटिबों :- इसमें एक दवा स्क्रोफोलोसो लैसेटिबों सम्मलित है इसका कार्य
कब्ज को दूर करना तथा ऑतों की नि:सारण क्रिया को प्रभावित करना है
2-
एन्जिओटिकोज :- दूसरे वर्ग में रक्त पर कार्य करने वाली , औषधियों को रखा जो एन्जिओटिकोज के नाम से जानी
जाती है इस समूह में कुल 5 औषधियॉ है ।
3- लिन्फैटिकोज
:-तीसरे वर्ग में रक्त एंव रक्त दोनो पर कार्य करने वाली औषधियों को रखा गया जो
लिन्फैटिकोज नाम से जानी जाती है इस समूह में 2 औषधियॉ है
4- कैन्सेरोसोज:-
चौथे वर्ग में शरीर पर कार्य करने वाले अवयवों तथा सैल्स एंव टिश्यूज की बरबादी
एंव उनकी अनियमिता से उत्पन्न होने वाले रोगों पर कार्य करती है रखा गया एंव
यह कैन्सेरोसोज के नाम से जानी जाती है
इस समूह में कुल 17 औषधियॉ है ।
5- फैब्रिफ्यूगोज
:- पॉचवे वर्ग में वात संस्थान नर्व सिस्टम पर कार्य करती है
इसे फैब्रिफ्यूगोज नाम से जाना जाता है इस समूह में कुल 2 औषधियॉ है ।
6- पेट्टोरल्स
:- छठे वर्ग में श्वसन तंत्र पर कार्य करने वाली औषधियों को रखा
गया जो पेट्टोरल्स के नाम से जानी जाती है एंव संख्या में 9 औषधियॉ है ।
7-वेनेरियोज –सातवे
वर्ग में वेनेरियोज यह औषधिय सक्ष्या में 6 है एंव इसका कार्य रति सम्बन्धित
,मूत्रसंस्थान ,जननेन्दीय पर प्रभावी है जिसका उपयोग रतिजन्य रोगो व जन्नेद्रीय
मूत्र संस्थान सम्बन्धित पर होता है ।
8-वर्मिफ्युगोज
:–‘ इस वर्ग में में वर्मिफ्युगोज दवा का रखा गया जो संख्या में
2 है इस ग्रुप की दवा का प्रभाव विशेष रूप से ऑतों पर है एंव यह शरीर से किटाणुओं
व कृमियों को शरीर से खत्म कर देती है
9- सिन्थैसिस:-
इस
समूह में सिन्थैसिस (एस वाय) है जो एक कम्पाऊड मेडिसन है जिसका उपयोग सम्पूर्ण
शरीर के आगैनन को सुचारूप से संचालित करने हेतु प्रेरित करती है एंव उन्हे शक्ति
प्रदान करती है इसे एस वाई या सिन्थैसिस नाम से जाना जाता है ।
10-इलैक्ट्रीसिटी:- इस
वर्ग में पॉच इलैक्ट्रीसिटी एंव एक तरल औषधिय अकुवा पैरिला पैली (ए0पी0पी) है ।
इसमें पॉच इलैक्ट्रीसिटी एंव एक त्वचा जल सम्मलित है जो क्रमश: निम्नानुसार है
।
1-व्हाईट
इलैक्ट्रीसिटी :-इसे सफेद बिजली भी कहते है , इसकी क्रिया ग्रेट सिम्पाईटिक
नर्व, सोरल फ्लेक्स,लधु मस्तिष्क तथा वात संस्थान के समवेदिक सूत्रों पर है
,इसलिये यह वातज निर्बलता की विशेष औषधिय है ,इसका प्राकृतिक गुण पीडा नाशक,शक्ति
प्रदान करने बाली , नींद लाने वाली वातज पीडा को ठीक करने वाली एंव ठंडक पहुचाने
वाली है । इसका वाह्रय एंव आंतरिक प्रयोग किया जाता है ।
2- ब्लू
इलैक्ट्रीसिटी :-इसे नीली बिजली भी कहते है ,यह रक्त प्रकृति के अनुकूल है
,इसका प्रभाव हिद्रय के बांये भाग पर है यह रक्त के स्त्राव को चाहे वह वाह्रय
स्थान या अंतरिक अवयव से हो उसे रोक देती है ,नीली बिजली क्योकि यह रक्त
नाडियों का सुकोड देती है इससे रक्त स्त्राव रूक जाता है । यह लकवा ,मस्तिष्क
में रक्त संचय ,चक्कर आना ,खूनी बबासीर , या शरीर से रक्त स्त्रावों के लिये
उपयोगी है ।
3-रेड इलैक्ट्रीसिटी:- इसे
लाल बिजली भी कहते है, यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है इसकी प्रकृति पीडा
नाशक,बल वर्धक उत्तेजक,प्रदाह नाशक, ग्रन्थी रोग नाशक है । इसमें रक्त की मन्द
गति को तीब्र करने का विशेष गुण है ।
4-यलो इलैक्ट्रीसिटी:- इसे
पीली बिजली भी कहते है,यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है इसकी प्रकृति पीडा नाशक,
रक्त की कमी एंव ऐढन को दूर करने वाली,
कै को रोकने वाली एंव कृमि नाशक है तथा वात सूत्रों को बल प्रदान करने वाली
है । यह औषधिय बल वर्धक है तथा अन्य अपनी सजातीय औषधियों के साथ प्रयोग करने पर
शरीर से पसीना लाने वाली है । वात सूत्रों ,ऑतों,और मॉस पेशियों पर इसका विशेष
प्रभाव है ,मिर्गी,हिस्टीरिया,जकडन,पागलपन इत्यादि में एंव उष्णता को शान्त
करने के लिये इसका प्रयोग होता है ।
5-ग्रीन
इलैक्ट्रीसिटी:-इसे हम हरी बिजली भी कह सकते है ,यह रक्त प्रकृति वालों के
लिये अनुकूल है इसका प्रभाव शिराओं एंव उनकी कोशिकाओं और हिद्रय के आधे दाहिने भाग
की बात नाडियों पर है , इसकी क्रिया त्वचा ,श्लैष्मिककला पर होता है, इसके
प्रयोग से किसी भी प्रकार के धॉव, चाहे वे सडनें गलने लगे हो उसमें इसका प्रयोग
किया जाता है जैसे कैंसर, गैगरीन,दूषित धॉव बबासीर ,भगन्दर के ऊभारों में इसका प्रयोग
किया जाता है । मस्स्ो ,चिट्टे इसके प्रयोग से झड जाते है यह जननेन्द्रिय या
मूंत्र मार्ग से पीव निकलने पर अत्यन्त उपयोगी है । इसके प्रयोग से शरीर के अन्दर
या बाहर किसी भी स्थान पर कैंसर हो जाये तो उसकी पीडा को यह दूर कर देती है ।
6-अकुआ पर ला
पेली या ए0पी0पी :- इसे त्वचा जल के नाम से भी जाना जाता
है इसका प्रयोग त्वचा को स्निग्ध, मुलायम, चिकनाई युक्त एंव सुन्दर स्वस्थ्य
बनाने तथा त्वचा के रंग को साफ करने के लिये वाह्रय रूप से (त्वचा पर लगाना)
उपयोग किया जाता है । इस दवा को ऑखों के चारों तरफ की त्वचा पर (ऑखों पर नही)
लगाने से ऑखों को शक्ति मिलती है । इसका प्रयोग चहरे व त्वचा को चिकना मुलायम साफ
चमकदार बनाने में तथा दॉग धब्बे झुरियों अथवा मुंहासे,चहरे के ब्लैक हैड, खुजली
,छीजन,त्वचा के रंग में परिवर्तन आदि में किया जाता है ।
डाँ. कृष्णभूषण सिंह चन्देल
मो.9926436304
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