एक्युपंचर परिचय
एक्युपंचर दो शब्दो से
मिल कर बना है एक्यु का अर्थ होता है सूई एंव पंचर का अर्थ है चुभाना अर्थात इस चिकित्सा
पद्धति में बारीक सूईयों को शरीर के निर्धारित पाईन्टस पर चुभा कर उपचार किया जाता
है । एक्युपंचर चिकित्सा के अविष्कार का श्रेय हूआंग डी नी जिंग को जाता है एंव इसका
आविष्कार चीन में हुआ था । वही भारतीयों का दावा है कि एक्युपंचर का आविष्कार भारत
में 5000 वर्ष
पूर्व हुआ था । महाभारत व चरक की सर्जरी में इसका उल्लेख है । चीनी भिक्षुओं ने इसके
महत्व को समक्षा एंव अपने साथ इसे चीन ले गये इस चिकित्सा पद्धति को यहाॅ पर अपनी उपयोगिता
को सिद्ध करने का अच्छा मौका मिला व दुनिया के सामने एक नई एक्युपंचर चिकित्सा के रूप
में यह सामने आई । एक्युपंचर का आविष्कार का श्रेष्य चीन को जाता है परन्तु यह दुःख
के साथ कहना पडता है कि हम हमारी अमूल्य धरोंहर को न सम्हाल सके । वही दूसरे देशवासीयों
ने इसकी उपयोगिता को समक्षा । हमारी प्राचीनतम आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतिय के सिद्धान्तों
ने कई चिकित्सा पद्धतियों के मूल सिद्धान्तों को वर्षो पहले सिद्ध कर दिया था परन्तु
हमारा सभ्य व पढा लिखा समाज इसकी उपेक्षा करते आयाए इसके कई सरल परन्तू मूल सिद्धान्तों
का उपहास उडाते न थकता था यहाॅ तक कि वैज्ञानिक समुदायों ने हमारे बहुत से सिद्धान्तों
को अवैज्ञानिक व तर्कहीन कहाॅ परन्तु आयुर्वेद चिकित्सा के कई सिद्धान्तों ने आज कई
चिकित्सा पद्धतियों के जन्म का सूत्रपात किया था । उनमें एक्युपंचर चिकित्सा प्राकृतिक
, होम्योपैथिक चीनीशाॅग
चिकित्सा ,योगा
आदि प्रमुख है । आज से सदियों पहले आयुर्वेद में मर्दने मर्दनम शक्ति का उल्लेख किया
गया था इसका अर्थ होता है किसी बस्तु को जितनी बार घोटा वा पीसा जाता है उसमें कार्य
करने की क्षमता उतनी ही अधिक बढ जाती है । इसी प्रकार सूक्ष्म से सूक्ष्मता का सिद्वान्त
था जिसमें प्राचीन काल में कई असाध्य बीमारीयों का उपचार विष की मारक मात्रा को खत्म
कर उपचार किया जाता था । अर्थात तीब्र विष की मात्रा को कम कर सूक्ष्म कर उसे शक्तिकृत
करने हेतु उसे घोटा व पीसा जाता था तथा उसकी शक्ति बढाने हेतु उसमें प्रहार किया जाता
था । इस सिद्धान्त के अनुसार एक नई चिकित्सा होम्योपैथिक चिकित्सा का आविष्कार हुआ
जिसमें औषधिय निर्माक का मूल सिद्धान्त औषधिय की सुक्ष्मता एंव शक्तिकृत करने हेतु
उसे स्ट्रोक देकर या खरल करते है । चलो यह तो बात हमारे प्राचीनतम आयुर्वेद चिकित्सा
की हुई अब बात करते है एक्युपंचर चिकित्सा की जैसा कि उपर कहाॅ जा चुका है कि एक्युपंचर
चिकित्सा पद्धति में बारीक सूईयों को शरीर के निर्धारित बिन्दूआंे पर चुभा कर उपचार
किया जाता है । इस चिकित्सा पद्धति का मूल सिद्धान्त है प्रत्येक प्राणीयों के शरीर
में जीवन ऊर्जा जिसे एक्युपंचर चिकित्सा में ची कहते है यह प्राणी शरीर में निबार्ध
रूप से अपनी दो विरोधी ऊर्जा जिसे धनात्मक एंक ऋणात्मक ऊजा जिसे चाईनीज भाषा में येन
और याॅग कहते है यह प्राणीयों के सम्पूर्ण शरीर में बिना रूके दोनो ऊर्जाओं को सन्तुलित
कर बहती रहती । कहने का तात्पर्य यह है कि ची अपने सहायक येन और याॅग ऊर्जा के समायोजन
को सन्तुलित बनाये हुऐ सम्पूर्ण शरीर में बहते है जब कभी इन दोनो ऊर्जा के सन्तुलन
में असमानता पाई जाती है तब प्राणी शरीर में रोग उत्पन्न होता है । इस लिय एक्युपंचरिष्ट
चिकित्सक इन असमान्य ऊर्जा को सन्तुलित कर रोग उपचार करते है ।
ची अर्थात जीवन ऊर्जा:- ची जैसाकि पहले ही कहाॅ
जा चुका है ची जिसे हम जीवन ऊर्जा के नाम से जानते है और यह अपने दो सहयोगी ऊर्जा येन
और याॅग के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में निर्बाध रूप से बहती रहती है जब कभी इसके सन्तुलन
में व्याधान उत्पन्न होता है तब रोग उत्पन्न होते है । अब सवाल यह उठता है कि किस प्रकार
से हम इस ऊर्जा के सन्तुलन व इसकी गडबडी को पहचाने
ची............ जीवन शक्ति ,
प्राण शक्ति ,प्राण
ऊर्जा
येन.................................नकारात्मक
ऊर्जा (स्त्री) ;ऋणात्मक
याॅग
...............................सकारात्मक ऊर्जा (पुरूष) घनात्मक
ची अर्थात जीवन शक्ती जो अपने येन और याॅग दो
विरूद्व ऊर्जा को सन्तुलित कर सम्पूर्ण शरीर में निर्बाध रूप से बहती रहती है । यह
जीवन शक्ति फेफडों से प्रारम्भ होकर पूरे शरीर में 14 चैनलों के माध्यम से
( रेखीय मार्गो ) सें होकर निर्बाध रूप से प्रवाहित होती रहती है । इन धाराओं या रेखीय
मार्गो को मेरीडियन या चैनल कहा जाता है । चेतना शक्ति (ची) का प्रवाह जिन धाराओं
(मैरिडियान)पर होता है उन्हे जांग फू कहाॅ जाता है । इन्ही चैनल पर शरीर के आंतरिक अंगों के पाईन्टस
पाये जाते है ।
जांग-शरीर के ठोस अंगो
का प्रतीक है जैसे हिदय ,फेफडे
,गुंर्दे ,जिगर
,और वषण जांग से येन
(़ऋणात्मक) होता है ।
फू-खोखले अंगों का प्रतीक
है जैसे आमाशय ,बडी
आॅत ,छोटी आॅत मूत्राश्य ,तथा
पित्ताश्य ।फू का याॅग (धनात्मक) होता है ।
एक्युपंचर का इंतिहास
एक्युपंचर चीन की परम्परागत चिकित्सा पद्धति है । चीनवासीयों
का मानना हेै कि एक्युपंचर का आविष्कार लगभग 5000 वर्ष पूर्व चीन में हुआ
था । एक्युपंचर चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता होने का श्रेय हुआंग डी नामक राजा को जाता
हेै इस राजा को यलो एम्पयरर कहा जाता है । इस राजा ने एक्युपंचर के विषय में एक पुस्तक
लिखी इसका नाम हुआंग डी नी जिंग था । इस पुस्तक का अग्रेजी नाम ज्ीम ल्मससवू म्उचमतवत
हेै । यह पुस्तक राजा हुआंग डी और उनके प्रधानमन्त्री व कुशल चिकित्सक ची पो के संवाद
के रूप में है यह पुस्तक एक्युपंचर की सबसे पुरानी पुस्तक मानी जाती है ।
इस चिकित्सा का अविष्कार
चीन में हुआ था इस लिये इसके पाईन्टस के नाम तथा अन्य सिद्धान्तों की व्याख्या चीनी
भाषा में थे चानीज एक्युपंचर चिकित्सा में लगभग 900 बिन्दूओं
का विवरण है । एकयुपंचर के विकाश में एकरूपता लाने की दृष्टि से इस विषय में सन 1982
में मनीला (फिलीपीन्स)में विश्व स्वास्थ्य संगठन
;ॅभ्व्द्ध ने एक सम्मेलन
का आयोजन किया जिसमें विश्व के कइ्र्र एक्युपंचर चिकित्सको ने भाग लिया तथा एक अन्तर्राष्ट्रीय
नामकरण का श्रीगणेश हुआ । इस नामकरण में 361 बिन्दूओं
को विश्व स्तरीय नाम से मान्यता प्रदान की गयी । इसका लाभ यह हुआ कि जिस उपयोगी व लाभकारी
चिकित्सा पद्धति का उपयोग चीन तक सीमित था
वह दुनियाॅ भर में प्रचलित होने लगी । प्रारम्भ
में एक्युपंचर चिकित्सा पद्धति को इस चिकित्सा के जानकारों ने अपने तक सीमित रखा परन्तु
इसकी उपयोगिता एंव आशानुरूप परिणामों के कारण इसका प्रचार प्रसार चिकित्सकों के आकृषण
का केन्द्र बना । बीसवी सदी के शुरूआती पांच दशकों के दोैरान एक्युपंचर की कोइ्र्र
खास प्रसिद्धि नही थी । सन 1949 में
माओत्से तुंग के शासन काल के दौरान इसे नये सिरे से बढावा मिला 1971 में
जब अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन यात्रा पर गये तो एक घटना से एक्यूपंक्चर को
ख्याती मिली निक्सन के साथ गये पत्रकार जेम्स रेस्टन जिनके एपेन्डेस का अपरेशन हुआ
था परन्तु उन्हे र्दद बना रहता था साथ ही उनके शरीर में भी र्दद बना रहता था उनके इस
र्दद को एक्युपंचर चिकित्सक ने अपनी चिकित्सा से पूरी तरह से गायब कर दिया फिर क्या
था रेडियो ,अखबार
, तथा पत्र पत्रिकाओं में
इसकी चर्चा ने इसे जन सामान्य की जुबान पर ला दिया जन सामान्य एक्युपंचर चिकित्सा नाम
की चमत्कारी चिकित्सा के बारे में परचित हो चुकी थी । पाल हुडले व्हाइट के नेतृत्व
में सन 1973 में पहली बार वैज्ञानिकों
ने चीन जाकर एक्युपंचर का अध्ययन किया व इसके परिणामों को देखा व समक्षा इसकी उपयोगिता
ने इसे दुनिया भर में मशहूर कर दिया । आज विश्व के हर देशों में एक्युपंचर चिकित्सा
का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है । इसमें बहुत से ऐसे केश जो प्रचलित किसी भी
चिकित्सा पद्धति से ठीक नही होते उनका सफल उपचार एक्युपंचर चिकित्सा पद्धति में मौजूद
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